मुंबई: बॉलीवुड अभिनेता संजय दत्त कुछ वक्त पहले ही वर्ष 1993 के सीरियल बम ब्लास्ट में जेल की सजा पूरी कर रिहा हो चुके हैं। लेकिन एक याचिका दर्ज कर उनकी रिहाई पर पक्षपात का आरोप लगाया गया था, लेकिन अब बम्बई उच्च न्यायालय ने इस याचिका को खारिज कर दिया है। बॉम्बे हाईकोर्ट की न्यायिक पीठ ने गुरुवार को संजय दत्त की तरफ से पक्षपात का हवाला देते हुए याचिका को खारिज कर दिया, क्योंकि आधिकारिक रिकॉर्ड से PIL के पास दावे को साबित करने के लिए पर्याप्त सबूत की कमी थी। विरोध में अभिनेता का पक्ष लेने के लिए राज्य के खिलाफ एक जनहित याचिका दायर की गई थी।
जनहित याचिका में संजय दत्त को विशेष व्यवहार का दावा किया गया था, क्योंकि कई अन्य कैदियों के अनुकरणीय आचरण के बावजूद केवल अभिनेता को जल्दी छुट्टी की रियायत दी गई थी। याचिकाकर्ता ने अक्सर पैरोल और रियायत पर आपत्ति जताई थी, जिसे अदालत ने खारिज कर दिया है। उच्च न्यायालय के फैसले से राहत पा चुके संजय दत्त ने कहा, "यह एक बड़ी राहत है। माननीय हाईकोर्ट ने ऐसे सभी निराधार आरोपों को रद्द कर दिया है। सत्य को जीत हो गई है।" न्यायमूर्ति एस.सी. धर्माधिकारी और भारती डांगरे की अध्यक्षता वाली खंडपीठ ने पहले कहा, "हमें राज्य गृह विभाग द्वारा प्रस्तुत रिकॉर्ड में और राज्य द्वारा प्रस्तुत स्पष्टीकरण के विपरीत कुछ भी नहीं मिला। विवेकाधीन शक्तियों का कोई उल्लंघन या दुरुपयोग नहीं पाया गया।"
गौरतलब है कि 1993 के सीरियल बम विस्फोट मामले में संजय दत्त को हथियारों के अवैध कब्जे के लिए दोषी ठहराया गया था। अभिनेता ने एक साल और चार महीने का वक्त विचाराधीन कैदी के रूप में जेल में बिताया और एक अपराधी के रूप में ढाई साल का लंबा समय जेल में व्यतीत किया। अभिनेता को 25 फरवरी, 2016 को येरवदा जेल से बरी कर दिया गया था, चूंकि उनकी पांच साल की सजा पूरी होने में आठ महीने 16 दिन का समय बाकी था।
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