वो कैसे निकल गया..हमारे सैनिक तो आंखों में तेल डालकर पहरा डालकर बैठे थे! ओह्हो..लगता है, उसी तेल में फिसल्ल के निकल गया होगा..है ना! तानाजी -द अनसंग वारियर में इस डायलॉग को बोलते वक्त उदयभान बने सैफ अली खान के चेहरे पर क्रूरता बनाम विद्रूपता का इतना जोरदार संगम था कि दिमाग से एकबारगी अजय देवगन फिसल गए और सैफ की वो चमकती सी आंखें जेहन में बैठ गईं।
फिल्म देखने के बाद आप फिल्म के एक्शन की तारीफ तो करेंगे ही लेकिन आप सैफ का जिक्र करना नही भूलेंगे... क्योंकि इस फिल्म में उनकी खलनायिकी लंबे समय तक दिमाग में जिंदा रहेगी। फिल्म में उदयभान बने सैफ दर्शकों के दिलों पर अपनी अदाकारी के जरिए जादू करने में कामयाब रहे हैं। फिल्म समीक्षकों ने सैफ की खलनायकी को पूरे नंबर दिए हैं और ये साबित करता है कि सैफ वर्सेटाइल एक्टर हैं और वो चाहें तो फ्यूचर में खलनायकी पर फोकस कर सकते हैं।
Movie Review: अजय-सैफ का दमदार एक्शन देखना है तो देखिए 'तानाजी- द अनसंग वॉरियर'
तानाजी - द अनसंग वॉरियर देखने के बाद एक बात स्पष्ट हो जाती है कि बॉलीवुड में विशुद्ध खलनायकी फिर से जिंदा हो रही है और उसके बहुत बड़े खिलाडी साबित हो सकते हैं सैफ। सैफ ओमकारा में लंगड़ा त्यागी के रोल में अपनी शानदार एक्टिंग का सबूत दे चुके हैं। संयोग से उस फिल्म में भी सैफ के साथ अजय देवगन थे और तानाजी में खलनायिकी के कीर्तिमान जब सैफ ने कायम किए, तब भी उनके सामने अजय देवगन थे।
पिछले दशक की शुरूआत और मध्य में ऐसी फिल्में आई जहां विलेन का वजूद ही नहीं था। कुछ फिल्मों में हीरो ही ग्रे शेड में नजर आए। लेकिन दशक के अंत में पद्मावत, पानीपत और अब तानाजी जैसी फिल्मों ने साबित कर दिया कि विशुद्ध खलनायकी पर फिर से फोकस करने का समय आ गया है।
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तानाजी में उदभान का करेक्टर आपको उससे नफरत करने पर मजबूर करता है। फिल्म देखते वक्त आप उदयभान की नफरत भरी चालों, उन्मादी हंसी, क्रूरता भरे कदमों, काइयां चमकती आंखों, चीनी जैसी मुस्कुराहट के पीछे का कमीनापन समझ कर सीट पर बैठे बैठे मुट्ठियां भींच कर रोष जताते रहेंगे लेकिन उदयभान को जेहन से निकाल नहीं पाएंगे। ये अदाकारी ही है जो दर्शकों को किसी करेक्टर से इतनी नफरत करने को मजबूर करती है।
पद्मावत में जितनी नफरत दर्शकों को 'खिलजी' से नहीं हुई थी, जितनी उदयभान से होने लगती है। आप लंगड़ा त्यागी को देख चुके हैं तो उदयभान लंगड़ा त्यागी का अपडेट वर्जन है, पहले से ज्यादा क्रूर, हिंसक, अय्याश, जिद्दी, मेनिपुलेटिंग, षडयंत्रकारी औऱ हद दर्जे का काइयां। काफी वक्त बाद ऐसा खलनायक दिखा है जो शुरू से अंत तक खलनायक ही रहा है। उसकी हर हरकत पर खीजा है दर्शक। तानाजी का उदयभान पूरे वक्त खलनायक की तरह की बिहेव करता है, फिल्म उसका कोई भावनात्मक पक्ष, अतीत का सच कुछ नहीं दिखाती, ये ही सबसे बड़ी बात है।
सैफ करियर के उस मोड़ पर हैं जहां उन्हें सोच समझ कर भूमिकाएं चुननी चाहिए। ऐसे में अगर दर्शक उनकी किसी खास छवि औऱ खास रोल को पसंद कर रहे हैं तो उन्हें उस तरफ संभावनाएं खोजनी चाहिए। सेक्रेड गेम्स में सैफ की अदाकारी की तारीफ हो चुकी है और उन्हें इस तरह के रोल सूट कर रहे हैं।
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