‘फुकरे 2’ की ऋचा चड्ढा बोल्ड और बिंदास नहीं बल्कि हैं ऐसी, बताई अपने बारे में खास बातें
ऋचा चड्ढा इन दिनों अपनी आगामी 'फुकरे 2' के प्रमोशन में काफी व्यस्त हैं। इस फिल्म में उन्हें एक बार फिर भोली पंजाबन का किरदार निभाते हुए देखा जाएगा। ऋचा अब तक के फिल्मी करियर में कई ऐसी भूमिकाएं निभाई हैं, जिन्हें दर्शक शायद ही कभी भूल पाएंगे।
नई दिल्ली: बॉलीवुड अभिनेत्री ऋचा चड्ढा इन दिनों अपनी आगामी 'फुकरे 2' के प्रमोशन में काफी व्यस्त हैं। इस फिल्म में उन्हें एक बार फिर भोली पंजाबन का किरदार निभाते हुए देखा जाएगा। ऋचा अब तक के फिल्मी करियर में कई ऐसी भूमिकाएं निभाई हैं, जिन्हें दर्शक शायद ही कभी भूल पाएंगे। 'गैंग ऑफ वासेपुर', 'मसान' और 'फुकरे' जैसी फिल्मों में अपने अभिनय से छाप छोड़ चुकीं ऋचा चड्ढा मानती हैं कि देश में महिला सशक्तिकरण की बड़ी-बड़ी बातें हो रही हैं, लेकिन फिल्म इंडस्ट्री में अभी भी महिलाओं और पुरुषों के बीच संतुलन बिगड़ा हुआ है। खुद को लंबी रेस का घोड़ा मानने वाली ऋचा कहती हैं कि इंडस्ट्री में अच्छे लेखकों और निर्माताओं की कमी है, जिस वजह से अच्छी फिल्में नहीं बन पा रही हैं। ‘फुकरे’ की भोली पंजाबन दो टूक कहती हैं कि वह कोई भी फिल्म साइन करने से पहले फिल्म की पटकथा और अपने किरदार को तवज्जो देती हैं।
लेकिन फिल्म का निर्माता कौन है, आजकल यह भी उनके लिए मायने रखने लगा है। इसकी वजह पूछने पर ऋचा कहती हैं, "फिल्म के निर्माता पर ही निर्भर करता है कि वह फिल्म का प्रचार किस तरीके से करता है। निर्माता में इतना दम होना चाहिए कि वह अच्छे से फिल्म रिलीज करा सके।" फिल्मों में तेज-तर्रार और बोल्ड किरदारों का पर्याय बन चुकीं ऋचा ने कहा, "लोग चाहते हैं कि वे जल्दी से किसी पर भी लेबल लगा दें कि फलां आदमी ऐसा है, फलां वैसा है, ताकि उनके समझने के लिए आसान हो जाए, लेकिन असल में कोई भी शख्स फिल्म में अपने किरदारों जैसा नहीं होता। मैं खुद को बोल्ड नहीं ईमानदार मानती हूं।" वह कहती हैं, "निर्माता सिर्फ वही नहीं होता, जो फिल्म में पैसा लगाए, बल्कि निर्माता पर पैसा लाने की भी जिम्मेदारी होती है, जो फिल्म को बेहतर तरीके से प्रमोट करे उसे ठीक से रिलीज करा पाए। बहुत तकलीफ होती है जब आप मेहनत करते हैं और निर्माता में अच्छे से फिल्मों को रिलीज करने की हिम्मत या दिमाग नहीं होता। उनमें दिमाग होना भी जरूरी है।"
ऋचा ने अपने करियर की शुरुआत दरअसल 2008 में की थी, लेकिन वह 2012 में आई फिल्म 'गैंग ऑफ वासेपुर' को अपने करियर की असल शुरुआत मानती हैं। इसके पीछे का तर्क समझाते हुए ऋचा कहती हैं, "मैं 2012 की फिल्म 'गैंग ऑफ वासेपुर' को अपनी असल शुरुआत मानती हूं। क्योंकि उसी के बाद मैंने मुंबई शिफ्ट होकर फिल्मों में काम करने का मन बनाया। 2012 से 2017 तक इन 5 सालों में काफी काम किया है। हर तरह के किरदारों को जीया है। अब तक के करियर से खुश हूं, लेकिन मैं लंबी रेस का घोड़ा हूं तो जानती हूं कि आगे भी बेहतरीन किरदार मिलेंगे। मैं ड्रीम रोल का इंतजार करने वालों में से नहीं हूं, बल्कि मेरी कोशिश रहती है कि ऐसा क्या करूं कि उस किरदार को ड्रीम रोल बना दूं।"
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