Movie Review: दमदार कास्ट लेकिन 'सरकार 3' में नहीं है दम
साल 2005 में राम गोपाल वर्मा ने ‘सरकार’ नाम की एक फिल्म बनाई थी। अमिताभ बच्चन को लेकर बनाई गई यह फिल्म लोगों को काफी पसंद आई थी।
फिल्म समीक्षा: साल 2005 में राम गोपाल वर्मा ने ‘सरकार’ नाम की एक फिल्म बनाई थी। अमिताभ बच्चन को लेकर बनाई गई यह फिल्म लोगों को काफी पसंद आई थी। साल 2008 में इस फिल्म का दूसरा भाग ‘सरकार राज’ नाम से आया। अब 9 साल बाद राम गोपाल वर्मा एक बार फिर से ‘सरकार सीरीज’ के साथ लौट आए हैं। अमिताभ बच्चन के अलावा इस बार फिल्म में कई और नए किरदारों की एंट्री हुई है। कैसी है राम गोपाल वर्मा की ‘सरकार 3’ आइए इसकी समीक्षा करते हैं।
कहानी- फिल्म की कहानी सुभाष नागरे (अमिताभ बच्चन) की है, जनता नागरे को सरकार नाम से बुलाती है। सरकार को जो सही लगता है वही करता है। उसके कानून के आगे न सीएम की चलती है न किसी मंत्री की। साम, दाम, दंड या भेद अपनी सत्ता को बचाने के लिए सरकार किसी भी तरीके को अपनाने से गुरेज नहीं करते । सरकार के दो विश्वासपात्र हैं, गोकुल (रोनित रॉय) और गोरख (भरत दाभोलकर)। सबकुछ सही चल रहा होता है लेकिन फिल्म में एंट्री होती है सरकार के पोते शिवाजी नागरे (अमित साध) की। शिवाजी के आने से गोकुल को अपनी जगह छिन जाने का डर होता है और वो शिवाजी को रास्ते से हटाना चाहता है। शिवाजी की एक गर्लफ्रेंड है अनु (यामी गौतम), जो सरकार के दुश्मन की बेटी है और वो सरकार से अपने पिता की मौत का बदला लेना चाहती है। फिल्म में सरकार के कई दुश्मन भी हैं, दुबई बेस्ड बिजनेसमैन माइकल (जैकी श्रॉफ) और राजनेता देशपांडे (मनोज बाजपेयी) और देवेन गांधी (बजरंग बली) जो सरकार को मारना चाहते हैं।
फिल्म में ये सस्पेंस क्रिएट करने की कोशिश की गई है कि कौन किसके साथ है? लेकिन सिनेमाहॉल में बैठा हर दर्शक आसानी से सस्पेंस समझ सकता है। फिल्म के क्लाइमेक्स में आप अपना सिर पकड़कर बैठ जाएंगे।
अभिनय- बात करे अभिनय की तो सुभाष नागरे के किरदार में अमिताभ ने एक बार फिर यह साबित कर दिया कि जिस फिल्म में अमिताभ हैं वहां सिर्फ एक ही सुपरस्टार होता है। सरकार की भूमिका अमिताभ से अच्छी कोई और निभा भी नहीं सकता है। जैकी श्रॉफ के लिए मैं यही बोलना चाहूंगी, इससे पहले मैंने उन्हें इतनी खराब भूमिका करते नहीं देखा है। न ही जैकी कॉमेडी करते अच्छे लगे हैं और न ही अच्छे विलेन लगे हैं। फिल्म में उनके किरदार का अंत भी इतना बुरा होता है कि देखकर आपको हंसी आती है। मनोज बाजपेयी इंटरवल के पहले तक थे, उन्होंने अपना किरदार बखूबी निभाया है। रोनित रॉय ने भी अभिनय अच्छा किया है लेकिन लगता है राम गोपाल वर्मा ने अमिताभ के अलावा किसी और कैरेक्टर पर ज्यादा मेहनत नहीं की इस वजह से रोनित का किरदार भी निखर कर सामने नहीं आ पाया है। फिल्म में अमित साध का लंबा और स्ट्रॉन्ग रोल है, लेकिन अमित ने बेहद औसत अभिनय किया है। न ही उनके खून में पिता की मौत का उबाल दिखता है, न ही गर्लफ्रेंड के साथ उनका रोमांस नजर आता है। एक तो अमित की टक्कर अमिताभ से होती है इस वजह से उनका कैरेक्टर और कमजोर लगने लगता है। इस रोल के लिए राम गोपाल वर्मा को किसी अच्छे अभिनेता की जरूरत थी। यामी गौतम के पास भी करने के लिए कुछ खास नही था। उन्होंने अपना रोल ठीक ठाक निभाया है।
निर्देशन- फिल्म का निर्देशन औसत है। इंटरवल तक तो फिल्म बहुत ही बोरिंग थी, इंटरवल के बाद भी दर्शक कुछ खास इम्प्रेस नहीं हो पाते। सीरियस फिल्म में भी आपको हंसी आती है। फिल्म में बेवजह का सस्पेंस दिखाया गया है। 'शिवा', 'सत्या', 'कंपनी' और 'सरकार' का पहला भाग बनाने वाले वर्मा इस फिल्म में अपने निर्देशन से निराश करते हैं।
डायलॉग्स- फिल्म के कुछ डायलॉग बहुत अच्छे हैं। जिस पर आप ताली बजा सकते हैं। जैसे ‘एक हाथ में माला है तो दूसरे हाथ में भाला है’। लेकिन ज्यादातर डायलॉग पुराने और घिसे पिटे हैं, जो आप कई फिल्मों में सुन चुके होंगे। जैसे, ‘जो वसूलों पर चलते हैं उनके दोस्त कम होते हैं और दुश्मन ज्यादा’ और ‘ये खेल शुरू उसने किया है खत्म मैं करूंगा।‘
संगीत- फिल्म के गाने अच्छे हैं, खास तौर पर ‘गोविंदा-गोविंदा’ का बैकग्राउंड स्कोर और अमिताभ की आवाज में गाई गणेश आरती सुनकर आप मंत्रमुग्ध हो जाएंगे। कैलाश खेर की आवाज में गाया गाना ‘साम, दाम, दंड, भेद’ आप सिनेमाहाल से बाहर निकलकर भी गुनगुनाएंगे।
सिनेमेटोग्राफी- फिल्म की सिनेमेटोग्राफी बचकानी लगती है। ‘सरकार सीरीज’ की बाकी फिल्मों की तरह इस फिल्म भी धूप और छाया का इस्तेमाल किया गया है जो अच्छा है। लेकिन कुछ सीन में बार-बार अभिषेक की तस्वीर दिखाना और निर्जीव चीजों पर फोकस करना बोर करता है। कप के हैंडल और टेबल के नीचे से फिल्माए गए सीन जरूरत से ज्यादा नाटकीय लगते हैं।
फिल्म देखें या नहीं- अगर आप ‘सरकार सीरीज’ के फैन हैं तो यह फिल्म देख सकते हैं। अमिताभ बच्चन की दमदार एक्टिंग की वजह से ‘सरकार 3’ देखी जा सकती है। लेकिन फिल्म में कहानी की उम्मीद रखकर मत जाइएगा। इस फिल्म को मैं 2 स्टार दूंगी।