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अभिनेता के अनुसार, "यह फिल्म वास्तविकता को दर्शाती है और इसमें सारी 'बेशर्मी' है, जिससे बचने की कोशिश की जाती है। समाज में चारों ओर आडंबर करने वाले भरे पड़े हैं, जो कहते हैं कि उन्हें ये सब चीजें नहीं देखनी, लेकिन मौका पाकर एकांत में वे ये सब देखते हैं और जब समाज में बाहर निकलते हैं तो 'शरीफ' बन जाते हैं।" अभिनेता ने कहा, "यह फिल्म सारी वर्जनाएं तोड़ देती है और मैं कहूंगा कि 'बहुत ही बेशरम फिल्म है ये'।" वहीं फिल्म 'मंटो' में वह लेखक की सादगी और नफासत को पर्दे पर उतारते नजर आएंगे, जो (सआदत हसन मंटो) अभिव्यक्ति की आजादी के जबरदस्त पैरोकार थे।
नवाजुद्दीन के अनुसार, "मैं उस तरह की भूमिकाएं कर रहा हूं, जो मैं वास्तव में करना चाहता हूं। फिल्म उद्योग मुझे ऐसी भूमिकाएं दे रहा है। मैं कभी भी ज्यादा नायक या खलनायक परक वाली फिल्में नहीं करना चाहता, हमारी हिंदी फिल्मों के नायक को ऐसी भूकिाएं मिलने में बिल्कुल असुविधा नहीं होती है..इसलिए मुझे ऐसे किरदारों में कोई दिलचस्पी नहीं है।"
नवाजुद्दीन ने कहा, "मैं ऐसे किरदार भी नहीं करना चाहता, जहां एक खलनायक में सारी बुराइयां होती हैं। मुझे ऐसे किरदार में कोई दिलचस्पी नहीं है, मुझे वास्तविक जीवन के करीब के चरित्रों को निभाना पसंद है, जिनमें नायक और खलनायक दोनों समाहित है..मुझे ऐसे किरदार पसंद हैं।" अभिनेता राजधानी में पीएंडजी की सीएसआर(कॉर्पोरेट सोशल रिस्पॉन्सिबिलिटी) पहल शिक्षा का समर्थन करने आए थे, और यहीं उन्होंने ये बात की।
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