नई दिल्ली: महेश भट्ट की फिल्म ‘कारतूस’ को आसानी से भुला देने वाली फिल्म का दर्जा देने के लिए समीक्षकों नें सेकेंड भर का समय भी नहीं लिया था और यहीं से शुरुआत हुई थी इस फिल्मकार की अधोगति की जिसका कारण ये भी बताया गया था कि उनकी फिल्म आजकल के जमाने से मेल नहीं खाती। ये भी कहा जाने लगा था कि भट्ट के बैनर की फिल्में सिर्फ अंग प्रदर्शन को केंद्रित करती हैं जो इन्हें किसी भी तरह एक सफल फिल्मकार की श्रेणी में नहीं लाती है।
इसके अलावा उनके विवादस्पाद बयान उन्हें सिर्फ उन नायकों की फेहरिस्त में ले गए जो अचानक ही अपने अप्रिय स्वाभाव से लोगों को हैरान कर गए। लेकिन इन सबके बावजूद, महेश उन फिल्मकारों में से एक है जिनकी 80 के दशक में बनी फिल्मों के लिए कोई भी सिनेमा का प्रमी उनकी तरफ सर उठाकर देखेगा। आज उनके 67वें जन्मदिन पर, हम लोग एक नजर डालते हैं उनकी पांच बेहतरीन फिल्मों की तरफ जिन्हें आप और हम हमेशा याद रखेंगे।
सारांश- इसमें कोई दो राय नहीं है कि ये फिल्म अपने वक्त की सबसे प्रभावशाली फिल्मों में से एक थी। सारांश एक बूढ़े पिता की कहानी को पर्दे पर दर्शाती है जो अपने बेटे, जिसको कुछ अपराधी मार देते हैं, को इंसाफ दिलाना चाहता है। फिल्म ने 3 फिल्मफेयर अवार्ड और 1 नेश्नल अवार्ड जीते थे। बूढ़े पिता के रोल के लिए फिल्म के निर्माता राजश्री की पहली पसंद संजीव कुमार थे लेकिन इस रोल के लिए भट्ट ने अनुपम खेर को ही रखा।
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