Death Anniversary: पहली बार औरतों को काम करने का मौका दिया था दादा साहब फाल्के ने
दादा साहब फाल्के की आज पुण्यतिथि है। उन्होंने भारतीय सिनेमा की नींव रखी थी। उन्हें सिनेमा का पितामह कहा जाता है।
भारत में सिनेमा की नींव रखने वाले दाद साहब फाल्के(Dada Saheb Phalke) को सिनेमा का 'पितामह' कहा जाता है। सिनेमा में सबसे बड़ा योगदान देने वाले है दादा साहब ने 16 फरवरी 1944 को इस दुनिया से अलविदा कह दिया था। आज उनकी पुण्यतिथि है। दादा साहब ने सिनेमा की शुरूआत 1913 में आई फिल्म हरिश्चंद्र से की थी। दादा साहब फाल्के की पुण्यतिथि पर आपको उनसे जुड़ी कुछ दिलचस्प बातें बताते हैं।
दादा साहब फाल्के का असली नाम धुंधिराज गोविंद फाल्के था।
अपने 19 साल के करियर में दादा साहब ने 95 फिल्में बनाई थी।
दादा साहब के जीवन में तब बदलाव आया जब उन्होंने जब 1910 में आई 'लाइफ ऑफ क्राइस्ट' देखी थी। उसके बाद से उनके मन में कई ख्याल आने लगे और उन्होंने पहली फिल्म राजा हरिश्चंद्र बनाई। यह एक मूक फिल्म थी।
बीबीसी की रिपोर्ट के मुताबिक दादा साहब ने हिंदी सिनेमा में पहली बार महिलाओं को काम करने का मौका दिया था। उन्होंने अपनी फिल्म भस्मासुर मोहिनी में दो औरतों को काम दिया था। इससे पहले महिलाओं का रोल पुरुष ही किया करते थे।
दादा साहब फाल्के ने अपने करियर की शुरूआत फोटोग्राफर के तौर पर की थी। इसके साथ ही वह एक जर्मन जादूगर का मेकअप भी करते थे। 1909 में जर्मनी जाकर उन्होंने सिनेमा से जुड़ी जानकारी ली थी।
दादा साहब प्रोड्यूसर डायरेक्ट और स्क्रीनराइटर थे। उन्होंने अपनी पहली फिल्म 'राजा हरिश्चंद्र' 15 हजार में बनाई थी।
दादा साहब के भारतीय सिनेमा में दिए योगदान के बाद 1969 में सरकार ने उनके सम्मान में दादा साहब फाल्के अवॉर्ड शुरू किए थे।
पहला दाद साहब फाल्के अवॉर्ड देविका रानी चौधरी को दिया गया था। यह भारतीय सिनेमा का सबसे प्रतिष्ठित अवॉर्ड माना जाता है।