आजकल बॉलीवुड (Bollywood) और मीडिया में प्रेम (Love)और थप्पड़ (slap) पर खूब बहस हो रही है। दरअसल जब से शाहिद कपूर (Shahid Kapoor) की सुपरहिट फिल्म कबीर सिंह (Kabir SIngh) के डायरेक्टर संदीप रेड्डी वंगा ने प्रेम में थप्पड़ को जायज बताते हुए अपनी बात कही है तबसे प्रेम बनाम थप्पड़ पर बहस गर्मा गई है। एक तरफ जहां फेमिनिस्ट इसे घरेलू हिंसा और डोमेनेटिंग पॉवर का प्रतीक बताकर इसका विरोध कर रहे हैं तो वहीं संदीप अपनी बात पर कायम है कि प्रेम में थप्पड़ मारने की आजादी होनी चाहिए। कबीर सिंह में चुंबन की तो भरमार है ही, थप्पड़ भी हैं।
एक तरफ बॉलीवुड एक्ट्रेस रेणुका शहाणे और विदेशी एक्ट्रेस मंदाना करीमी इसके विरोध में आ गई हैं। मीडिया में भी इसे लेकर बहस छिड़ गई है। बहरहाल हम इस बहस में नहीं पड़ेंगे, संदीप का बयान उनकी अभिव्यक्ति की आजादी का हिस्सा है, वो प्रेम को कैसे देखते हैं, और विरोध करने वालों के पास भी अपने तर्क हैं।
तर्क कुतर्क से परे हटें तो जानेंगे कि बॉलीवुड में थप्पड़ का अहम स्थान है। थप्पड़ जहां प्रेम में रूठी मेहबूबा को मनाने का जरिया है तो वहीं नफरत जाहिर करने का तरीका भी है। भारतीय सिनेमा में दरअसल थप्पड़ भावनाएं प्रकट करने का अहम तरीका है, रूठो तो थप्पड़, नाराज हो तो थप्पड़, नफरत हो या प्यार, इतना ही नहीं कई बार तो कॉमेडी भी बिना थप्पड़ों के पूरी नहीं पड़ती।
विलेन से लेकर सुपरस्टार खान तिकड़ी ने भी खूब दनादन थप्पड़ खाए हैं। बॉलीवुड में जहां डॉक्टर डैंग को दिलीप कुमार का थप्पड़ याद रहा वहीं रांझणा ने बीसियों थप्पड़ मारने के बाद भी हीरो को यकीन है कि ये थप्पड़ ही प्यार हासिल करवा देंगे।
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