एक ही क्लास में दो-दो साल तक रह जाया करते थे जगजीत सिंह, घुड़दौड़ का भी रखते थे शौक
गजल गायकी के बादशाह कहे जाने वाले जगजीत सिंह 6 साल से हमारे बीच नहीं हैं, लेकिन उनकी मखमली आवाज के लोग आज भी दिवाने हैं। जगजीत सिंह का नाम लोकप्रिय गजल गायकों में शुमार है। गजलों को आम आदमी के बीच लोकप्रिय बनाने का श्रेय किसी को दिया जाना हो...
नई दिल्ली: दुनियाभर में अपनी आवाज के दम पर लोगों के दिलों में एक खास पहचान बनाने वाले जगजीत सिंह का 8 फरवरी को जन्मदिन है। गजल गायकी के बादशाह कहे जाने वाले जगजीत सिंह 6 साल से हमारे बीच नहीं हैं, लेकिन उनकी मखमली आवाज के लोग आज भी दिवाने हैं। जगजीत सिंह का नाम लोकप्रिय गजल गायकों में शुमार है। गजलों को आम आदमी के बीच लोकप्रिय बनाने का श्रेय किसी को दिया जाना हो, तो जगजीत सिंह का ही नाम आता है। जगजीत का जन्म 1941 को राजस्थान के गंगानगर में हुआ था। इनके पिता सरदार अमर सिंह धमानी भारत सरकार के कर्मचारी थे। जगजीत का परिवार पंजाब के रोपड़ में बसता था। इनकी मां का नाम बच्चन कौर था। जगजीत के बचपन का नाम जीत था, लेकिन अपनी मधुर आवाज से लोगों के दिल में उतरने वाले जीत कुछ ही दशकों में जग को जीतने वाले यानी जगजीत बन गए। जगजीत ने अपनी शुरुआती पढ़ाई गंगानगर के खालसा स्कूल से की और इसके बाद वह जालंधर चले गए। डीएवी कॉलेज से स्नातक की डिग्री लेने के बाद उन्होंने कुरुक्षेत्र विश्वविधालय से इतिहास में स्नातकोत्तर की डिग्री प्राप्त की।
अपने पुराने दिनों को याद करते हुए उन्होंने कहा था कि पढ़ाई में दिलचस्पी नहीं थी, जिस कारण कुछ कक्षाओं में दो-दो साल तक भी रहना पड़ा। जगजीत ने एक बार खुद स्वीकार किया था कि जालंधर में पढ़ाई के दिनों में वह डीएवी गर्ल्स कॉलेज के आस-पास चक्कर लगाया करते थे। पिता की इजाजत के बगैर फिल्में देखना और टॉकिज के गेट पर गेटकीपर को एक घूंसा देकर हॉल में घुसना उनकी आदत थी। संगीत उन्हें बचपन में ही पिता से विरासत में मिला था। जगजीत ने गंगानगर में पंडित छगन लाल शर्मा के सान्निध्य में दो साल तक शास्त्रीय संगीत सीखने की शुरुआत की। इसके बाद जगजीत ने जमाल खान साहब से ख्याल, ठुमरी और ध्रुपद की बारीकियां सीखीं। उनके पिता चाहते थे कि उनका बेटा भारतीय प्रशासनिक सेवा (आईएएस) में जाए, लेकिन जगजीत पर गायकी की धुन सवार थी। कुरुक्षेत्र में पढ़ाई के दौरान कुलपति सूरजभान ने जगजीत की संगीत में लगन देख उन्हें बहुत प्रेरित किया और उनके कहने पर वह 1965 में मुंबई आ गए।
मुंबई में यह विज्ञापनों में जिंगल्स और शादी में गाकर रोजी-रोटी की जुगाड़ करते थे। वहीं 1967 में इनकी मुलाकात चित्रा जी से हुई और दो साल साथ रहने के बाद दोनों ने 1969 शादी कर ली। जगजीत पाश्र्वगायन का सपना लेकर फिल्मी दुनिया में आए थे। तब लोग तलत महमूद, मोहम्मद रफी के गीतों को पसंद करते थे। 1976 में जगजीत सिंह ने अपनी पहली हिट अलबम 'द अनफॉरगेटेबल्स' रिलीज किया। जगजीत सिंह ने गजलों को फिल्मी गानों की तरह गाना शुरू किया, उसके बाद आम-आदमी ने गजलों में दिलचस्पी दिखानी शुरू की। लेकिन जगजीत सिंह की यह बदलाव गजल के शुद्धतावादियों को रास नहीं आया और जगजीत पर आरोप भी लगाया गया था कि उन्होंने गजल की शुद्धता के साथ छेड़छाड़ की है। सन् 1981 में जगजीत नें रमन कुमार द्वारा निर्देशित फिल्म 'प्रेमगीत' और 1982 में महेश भट्ट की फिल्म 'अर्थ' से फिल्मों में गाना शुरू किया और इन दो फिल्मों के गाने लोगों की जुबान पर चढ़ गए, लेकिन इसके बाद से जगजीत फिल्मों में हिट संगीत देने में नाकामयाब रहे।
जगजीत अपने गायकी के सफर में अनेक विवादों में भी रहे थे। अपने संघर्ष के दिनों में इतने टूट गए थे कि इन्होंने कई प्लेबैक सिंगरों पर तीखी टिप्पणी कर दी थी। इसके बाद जगजीत ने राजनीति में भी अपनी दिलचस्पी दिखानी शुरू की। उनके हिट गानों में 'होठों से छू लो तुम मेरा गीत अमर कर दो', 'ओ मां तुझे सलाम', 'ये तेरा घर, ये मेरा घर', 'होशवालों को खबर क्या बेखुदी क्या चीज है', 'हाथ छूटे भी तो रिश्ते छूटा नहीं करते', 'कोई फरियाद तेरे दिल में दबी हो जैसे' और 'मेरी आंखों ने चुना है तुझको दुनिया देखकर' आदि सम्मिलित है। जगजीत गजल गायकी के शौक के अलावा रेसकोर्स में घुड़दौड़ का शौक भी करते थे। इसी तरह लॉस वेगास के कसीनो भी जगजीत को खूब भाते थे। जगजीत ही पहले गायक थे, जिन्होंने चित्रा जी के साथ लंदन में पहली बार 'डिजिटल रिकॉर्डिग' करते हुए 'बियांड टाइम' अलबम जारी किया। उन्होंने क्लासिकी शायरी के अलावा साधारण शब्दों में ढली आम-आदमी की जिंदगी को भी सुर दिए। 23 सितंबर, 2011 को ब्रेन हैमरेज होने के कारण जगजीत को मुंबई के लीलावती अस्पताल में भर्ती कराया गया और 10 अक्टूबर, 2011 की सुबह 8 बजे वहीं उन्होंने दुनिया को अलविदा कह दिया।