मुझे संगीत के दिग्गजों और माहिर कलाकारों ने इस कामयाबी के काबिल बनाया-मेघदीप बोस
''मुंबई में खुशक़िस्मती से मुझे राजू सिंह जैसे संगीतकार का आर्शीवाद की तरह साथ मिला। उन्होंने गुरू की भूमिका निभाते हुए म्यूज़िक प्रॉडक्शन और बैकग्राउंड स्कोर्स के महत्वपूर्ण कामों में जमकर तराशा और आज भी तराश रहे हैं।''
बॉलीवुड के कुछ टॉप म्यूज़िक प्रोड्यूसरों में से एक मेघदीप बोस को इस साल, फिल्म- ‘नूर’ के गीत; "उफ ये नूर" और ग़ैर फिल्मी अलबम-‘टैगोर फॉर टुडे’ के गीत- ‘तोमार होलो शुरु’ के लिये इंडियन रिकॉर्डिंग आर्ट्स एकेडमी एवार्ड्स (IRAA Awards ) ने,म्युज़िक प्रोड्यूसर ऑफ़ दी ईयर, के 2 अवार्ड्स से नवाज़ा है। मेघदीप और उनके परिवार से बरसों जुड़े शकील अख़्तर ने उनकी इस उपलब्धि पर हाल ही में बातचीत की जिसमें मेघदीप ने उन्हें अपनी कामयाबी की पूरी कहानी बताई है। शकील अख़्तर इंडिया टीवी के सीनियर एडिटर और लेखक हैं। मेघदीप और उनके पिता दिलीप बोस ने उनके कई गीतों को भी कंपोज़ किया है।
मेघदीप को जब (IRAA Awards ) के दो अवार्ड मिले तो मेरा भी खुश होना स्वाभाविक था। मेरा पहला ही सवाल था मेघदीप तुम्हारी इस सफलता पर क्या कहना है? मेघदीप ने सहजता से कहा - " आप जानते ही हैं, मैं जो कुछ भी हूं, उसके पीछे संगीत के उन माहिर कलाकारों और गुरूजनों का हाथ है, जो मुझे मेरे पिता यानी बाबा दिलीप बोस की वजह से मिले । उन दिग्गज कलाकारों में भोपाल से लेकर मुंबई और दक्षिण भारत तक के कई प्रमुख संगीतज्ञ शामिल रहे । बाबा की वजह से दक्षिण भारत के कुछ सर्वश्रेष्ठ संगीत कलाकारों के काम को भी सीखा। उनमें केरल के मशहूर संगीतकार और बाबा के फेवरेट म्यूज़िक अरेंजर, जरसन एंटनी भी रहे। उनके काम का मुझपर गहरा प्रभाव पड़ा।इसी तरह भोपाल में मैंने श्री अभिजीत राउत से गिटार की बेसिक शिक्षा ली और श्रीमती माधुरी मुखर्जी से रबिन्द्र संगीत सीखा। बहुत कम वक़्त ही सही लेकिन मुझे पंडित किरण देशपांडे जी से तबला और शास्त्रीय संगीत के बारे में बेशक़ीमती जानकारियां मिलीं। इसी दौर में मैं मुंबई भी आता-जाता रहा। मुंबई में मैंने डॉ.फादर चार्ल्स वास सेवेस्टर्न क्लासिकल संगीत की शिक्षा ली। 2013 में जब मैं मुंबई आया, तब यहां खुशक़िस्मती से मुझे बॉलीवुड के संगीतकार राजू सिंह जी के असिस्टेंट के रूप में काम करने का मौका मिला । ये सभी मेरे गुरूजन हैं, जिन्होंने संगीत के क्षेत्र में मेरी काम और पहचान की इबारत लिखी।‘ दो पीढ़ियों से बाबा के परिवार में संगीत का माहौल और विरासत रही लेकिन संगीत को सबसे पहले बाबा दिलीप बोस ने पेशे के रूप में अपनाया। इंदौर में वे कॉलेज के दिनों से ही एक लोकप्रिय गायक के रूप में पहचान बना चुके थे। बाबा, स्वर्गीय श्री गोपाल राव गरुड़ के शिष्य रहे। इसके बाद वो ‘सत्प्रकाशन इंदौर’ से जुड़े। जहां उन्होंने कई शानदार और रचनात्मक कार्यक्रमों की स्वतंत्र रूप से रिकॉर्डिंग्स की। मध्य भारत के स्टूडियो जगत और संगीत सिस्टम में "म्यूजिक अरेंजमेंट" के अनुशासन को स्थापित करने का श्रेय मेरे पिताजी दिलीप बोस को ही जाता है। उन्हीं के ज़रिये म्युज़िक अरेंजमेंट की समझ भी मिली।
मेरी माँ मेरी सबसे बड़ी आलोचक
मेघदीप ने इन बातों के दौरान मुझे भाभी, यानी अपनी माँ श्रीमती श्रद्धा बोस के बारे में भी बताया। मेघदीप ने कहा- "उन दिनों सिंथेसाइज़र प्रोग्रामिंग सिस्टम के ज़रिये संगीत बनाने की पंरपरा ज़ोर पकड़ चुकी थी और घर में ही उसका काम चलता था। मैं ये सब कुछ देख कर सीख रहा था । माँ जान चुकी थीं कि मुझे संगीत की लत लग चुकी है । माँ ने उस ही वक़्त साफ़ कह दिया कि ग्रेजुएशन ख़त्म किये बिना संगीत में कुछ भी करने की आज़ादी नहीं दी जाएगी। बात सही भी थी, स्कूल में पढ़े फ़िज़िक्स और मैथ्स के कई सिद्धांत मुझे साउंड डिज़ाइन और रिदम अरेंजमेंट में आज भी काम आते हैं, वहीं कॉलेज में सीखे बिज़नेस के नुस्खों से अपने संगीत का कमर्शियल आकलन करना आसान हो जाता है। माँ आज भी मेरी एक सख़्त आलोचक हैं। उन्होंने आगे चलकर इस बात पर ज़ोर दिया कि मैं संगीत की फॉर्मल ट्रेनिंग और शिक्षा लूं। यह बात मेरी असली ताक़त बनी।"
विदेश में संगीत की तालीम का सपना
बातों-बातों में मुझे मेघदीप का वो सपना याद आया जब वो विदेश जाकर संगीत में शिक्षा लेने की कोशिश कर रहे थे। वो 2010 से 2013 के बीच के दिन थे। भाई दिलीप और भाभी श्रद्धा की कोशिशें भी जारी थीं। मेघदीप ने बताया –‘मेरा सपना था,मैं बर्कली कॉलेज ऑफ़म्यूज़िक (बॉस्टन) में संगीत की शिक्षा
हासिल कर सकूं। मेरा सेलेक्शन भी हो चुका था। साथ ही ‘ट्यूशन फी’ पर लगभग फिफ्टी परसेंट स्कॉलरशिप भी मिल चुकी थी। मैं 2011से ही इस कोशिश में जुटा था लेकिन सेलेक्शन होने और स्कॉलरशिप मिलने के बावजूद उस वक्त पूरा खर्च उठा पाना मुश्किल था। आख़िर में मैंने बॉस्टन जाने का इरादा छोड़ दिया और 2013 में मैंने मुंबई आने का फैसला कर लिया। हालांकि उस वक्त भी मां और बाबा पूरी कोशिश कर रहे थे कि मैं बोस्टन जाकर संगीत की शिक्षा हासिल कर सकूं। अब सोचता हूँ कि कभी वहाँ पर लेक्चर ज़रूर दूंगा।‘
मुंबई में मिला संगीतकार राजू सिंह का साथ
मुंबई में खुशक़िस्मती से मुझे राजू सिंह जैसे संगीतकार का आर्शीवाद की तरह साथ मिला। उन्होंने गुरू की भूमिका निभाते हुए म्यूज़िक प्रॉडक्शन और बैकग्राउंड स्कोर्स के महत्वपूर्ण कामों में जमकर तराशा और आज भी तराश रहे हैं। मैं तीन साल तक उनके लिए बतौर असिस्टेंट काम करता और सीखता रहा। वो वक्त काफी कठिन भी था, रात और दिन का फ़र्क़ ख़त्म हो गया था। धीरे-धीरे उनका भरोसा और उनके प्रॉडक्शन की ज़िम्मेदारी, मुझपर बढ़ने लगे। रे लिए यह बात हर तरह से काफी मददगार साबित हुई। बड़ी बात ये भी है कि उन्होंने औरों के साथ काम करने की आज़ादी भी दी और इस ही वजह से एक फ्रीलांसर के रूप में भी मेरा काम आगे बढ़ता रहा।
ऐसे शुरू हुई कम्पोज़र अमाल मल्लिक के साथ ट्यूनिंग
लेकिन अमाल के साथ..वो कहानी भी तो बेहद दिलचस्प है.. मेघदीप ने बताने लगा- , हां.. अंकल..आप जानते हीं..मैं 2014 से अमाल के साथ बतौर वोकल अरेंजर जुड़ गया था। उनकी फिल्म "खूबसूरत" के गीत "नैना" और आगामी फिल्म "हीरो" के गीत "ओ खुदा" का वोकल अरेंजमेंट मैंने किया था, उस प्रोजेक्ट में अरमान मेरे को-वोकलिस्ट थे । गीत "ओ खुदा" से जुडी एक दिलचस्प संयोग की बात ये हुई की शाम को जिस वक़्त मेरा वोकल अरेंजमेंट सेशन था, उसके ठीक एक घंटे पहले फीमेल लीड वोकल्स का रिकॉर्डिंग रखा गया था। मुझे पता नहीं था की अमाल ने किस आवाज़ को वो गाना सौंपा था। मैं जैसे ही कंट्रोल रूम में आया, ज़ोर से आवाज़ आई, "रॉबी भैया !!" देखा तो माइक पर मेरी बचपन की दोस्त पलक मुछाल थी। हम लगभग दस साल बाद मिले थे। पलक ने अपने स्टूडियो रिकॉर्डिंग करियर की शुरुआत बाबा के प्रशिक्षण में की थी । बाबा ने पलक को स्टूडियो रिकॉर्डिंग की दुनिया से रूबरू कराया और उसके दो सबसे पहले एल्बम कम्पोज़ किये थे। एक अलबम ‘चाइल्ड फॉर चिल्ड्रन’ के गाने अंकल आपने ही लिखे थे।
उस वक्त तक अमाल को ये नहीं पता था की मैं म्यूजिक अरेंज और प्रोड्यूस करता हूँ। 2015 में अमाल मलिक को फिल्म "हीरो" के टाइटल ट्रैक का काम मिला और वह एक नए साउंड की तलाश करने लगे । इस ही दौरान मेरा एक ट्रैक, जो कि मैंने एक लंदन के एक कंपोज़र के लिए प्रोड्यूस किया था, यशराज स्टूडियो में मिक्स हो रहा था । अमाल ने वह सुना और तुरंत मुझे कॉल किया और ट्रैक के प्रॉडक्शन की ज़िम्मेदारी मुझे दे दी । इस तरह मैंने गीत, ‘मैं हूं तेरा हीरो’ को अर्रेंज और प्रोड्यूस किया । अमाल के बाद विशाल-शेखर, शंकर-एहसान-लॉय, सलीम-सुलेमान, शिवमणि, अनु मलिक, अमित त्रिवेदी, राम सम्पत और क्लिंटन सेरेहो जैसे संगीतकारों के लिये काम करने का मौका मिलता चला गया ।
मेघदीप के लिये IRAA के 2 अवार्ड का मतलब
और जब मैंने रॉबी से कहा, इस बार तो दो-दो अवार्ड...कमाल किया यार तुमने..मेघदीप ने कहा –‘अंकल मेरे लिये यह डबल कामयाबी स्पेशल है लेकिन इन अवार्ड्स का मतलब यह भी है कि अब मुझे और भी बेहतर करना है। सुनने वालों का ध्यान मेरी ओर है,मुझे उन्हें निराश नहीं करना है। मेरे लिये बड़ी बात यह है कि दोनों अवार्ड मुझे एआर रहमान,सोनू निगम, एहसान, लॉय जैसी संगीत हस्तियों की मौजूदगी में मिले। अवार्ड,शिवमनी जैसे प्रख्यात संगीतज्ञ के हाथों मिले, मेरे लिये यह बात भी किसी अवार्ड से कम नहीं।’
प्रेशर में क्रिएटिव काम आसान नहीं
बॉलीवुड में कमर्शियल प्रेशर झेलकर हिट गीत प्रोड्यूस करना, वह भी उसके क्रिएटिव आयाम को ज़िंदा रखते हुए, एक चुनौती भरा काम है। इस यंग प्रोफेशनल से मैंने जब सहज ये बात पूछ ली..तो मेघदीप ने कहा.."प्रोड्यूसर का काम एक कंपोज़र की धुन के साथ इंसाफ़ तो करना ही है, पर बाज़ार या ट्रेंड के मुताबिक उसे एक बेहतरीन साउंडट्रैक बनाना भी है। ऐसे में कई बार एक गीत को प्रोड्यूस करते वक्त कई तरह के रिजेक्शन, प्रेशर और रचनात्मक संघर्षों से गुज़रना पड़ता है। बदलाव और प्रयोगों के लिये तैयार रहना पड़ता है। खासी मेहनत होती है लेकिन फिर नतीजा भी उतना ही शानदार निकलता है।"..अब एक सवाल आया..’बाबा की तरह तुम भी एक अच्छे सिंगर और कंपोज़र भी हो...क्या गायक और फुल फ्लेजेड संगीतकार का अवतार भी आने वाला है...मेघदीप ने हंसते हुए कहा..’ बिल्कुल मैं एक अच्छे संगीतकार के रूप में अपनी पहचान बनाना चाहता हूं.. अगर मौका मिलता है तो मैं खुद अपनी कंपोज़िशन्स पर काम करने और एक मक्कमिल संगीतकार के बतौर भी काम की चुनौती लेने को तैयार हूं।‘