Zindagi Na Milegi Dobara: ट्रैवलिंग, दोस्ती, बैगवती और 4 कविताएं.. इस वजह से यादगार रहेगी ये फिल्म
'ज़िंदगी ना मिलेगी दोबारा' साल 2011 में रिलीज हुई थी। इसे ज़ोया अख़्तर ने डायरेक्ट किया था। फिल्म ने कई अवॉर्ड्स भी अपने नाम किए थे।
मुंबई: 'ज़िंदगी ना मिलेगी दोबारा' (Zindagi na milegi dobara).. एक ऐसी फिल्म, जो शायद ही दोबारा बन सकती है। ये सिर्फ एक फिल्म नहीं है, जिदंगी में दोस्तों की अहमियत से लेकर डर बाहर निकालकर जीने तक... ये जिंदगी जीने के कई सबक सिखाती है। एक नया नजरिया देती है। ये बताती है कि जिंदगी काटो नहीं, बल्कि जियो, क्योंकि जिंदगी दोबारा नहीं मिलेगी। 15 जुलाई 2011 में रिलीज हुई इस फिल्म में बेहतरीन स्क्रिप्ट थी। ऋतिक रोशन (Hrithik Roshan), फरहान अख़्तर (Farhan Akhtar) और अभय देओल (Abhay Deol) जैसे उम्दा कलाकार थे। विदेशों की खूबसूरत लोकेशंस थीं। दोस्ती थी.. लड़ाईयां थीं... एक बैगवती थी और कुछ ऐसी कविताएं थीं, जिन्हें सुनकर आप कहीं खो से जाते हैं। कहीं न कहीं आप सच से रूबरू हो जाते हैं।
इस फिल्म में चार कविताएं सुनाई गई हैं। इनके बोल तो फरहान अख़्तर के थे, लेकिन उनके पिता जावेद अख़्तर (Javed Akhtar) ने ये कविताएं लिखी थीं। जिंदगी में आगे बढ़ना है, संघर्षों से चट्टानों की तरह लड़ते रहना है और कुछ कर दिखाना है, तो ये कविता आपको जरूर प्रेरणा देगी।
दिलो में तुम अपनी बेताबियां लेके चल रहे हो तो ज़िंदा हो तुम..
नज़र में ख़्वाबों की बिजलियां लेके चल रहे हो तो ज़िंदा हो तुम..
हवा के झोकों के जैसे आज़ाद रहना सीखो..
तुम एक दरिया के जैसे लहरों में बहना सीखो..
हर एक लम्हें से तुम मिलो खोले अपनी बाहें
हर एक पल एक नया समां देखे ये निगाहें..
जो अपनी आंखों में हैरानियां लेके चल रहे हो तो ज़िंदा हो तुम..
दिलो में तुम अपनी बेताबियां लेके चल रहे हो तो ज़िंदा हो तुम..
जब-जब आप हार मानने लगे, जब आप परेशान होने लगे, जब आपका दिल रो रहा हो तो ये कविता जरूर सुनें...
जब जब दर्द का बादल छाया,
जब गम का साया लहराया
जब आंसू पलकों तक आया,
जब ये तनहा दिल घबराया
हमने दिल को ये समझाया,
दिल आखिर तू क्यों रोता है..
दुनिया में यही होता है..
ये जो गहरे सन्नाटे हैं..
वक्त ने सब को ही बांटे हैं
थोड़ा गम है सबका किस्सा..
थोड़ी धूप है सब का हिस्सा
आंख तेरी बेकार ही नम है,
हर पल एक नया मौसम है
क्यूं तू ऐसे पल खोता है..
दिल आखिर तू क्यूं रोता है..
फिल्म में ये कविता तब सुनाते हैं, जब अर्जुन लैला से बिछड़ जाता है, तब वो ऐसे अपने दिल का दर्द बयां करता है...
एक बात होठों तक है जो आई नहीं
बस आंखों से है झांकती
तुमसे कभी मुझसे कभी
कुछ लब्ज है वो मांगती
जिनको पहन के होठों तक आ जाए वो
आवाज़ की बाहों में बाहें डाल के इठलाये वो
लेकिन जो ये एक बात है एहसास ही एहसास है
खुशबु सी जैसे हवा में है तैरती
खुशबु जो बेआवाज़ है
जिसका पता तुमको भी है, जिसकी खबर मुझको भी है
दुनिया से भी छुपता नहीं, ये जाने कैसा राज है।
अपना डर बाहर निकालने के बाद जिंदगी कितनी हसीन है, इसका अहसास होता है, जब ये कविता सुनाई देती है...
पिघले नीलम सा बहता हुआ ये समां
नीली नीली सी खामोशियां
न कहीं है ज़मीन, न कहीं आसमान
सरसराती हुई टहनियां, पत्तियां
कह रही हैं कि बस एक तुम हो यहां..
सिर्फ मैं हूं.. मेरी सांसें हैं.. मेरी धड़कने
ऐसी गहराइयां, ऐसी तन्हाइयां,
और मैं... सिर्फ मैं..
अपने होने पे मुझको यकीन आ गया..
'ज़िंदगी ना मिलेगी दोबारा' को रिलीज़ हुए भले ही 8 साल हो गए हों, लेकिन जब भी चार यार इकट्ठा होते हैं तो इस फिल्म का ज़िक्र ज़रूर होता है। बॉलीवुड में कई और फिल्म्स हैं, जो आपको दोस्ती करना नहीं, बल्कि निभाना सिखाती हैं। इनमें 'दिल चाहता है', 'दोस्ती' और 'आनंद' जैसी फिल्मों के नाम शामिल हैं।
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