‘36 कौमों’ में बंटे वोटरों को रिझाने के लिए सर्वसमाज का नारा
सामाजिक न्याय व आधिकारिता विभाग के अनुसार अनुसूचित जाति वर्ग में 59 जातियां, अनुसूचित जनजाति वर्ग में 12 जातियां, ओबीसी में 82 जातियां, पिछड़ा वर्ग में 78 जातियां हैं। उस पर भी मतदाता राजपूत, जाट, गुर्जर, मीणा, मेघवाल और ब्राह्मण समुदाय में बंटे हैं।
जयपुर: विधानसभा चुनाव पास आते ही राजस्थान में ‘सर्वसमाज और 36 कौमों को साथ लेकर चलने’ का नारा गूंजने लगा है। दसेक समुदायों में ढाई सौ से अधिक जातियों में बंटे मतदाताओं को रिझाने के लिए पार्टियां सर्वसमाज की बात तो कर रही हैं लेकिन राजनीतिक पंडितों का मानना है कि हर दल टिकट देते समय जातीय समीकरणों का पूरा ध्यान रखता है और यह बात किसी से छुपी नहीं है।
राज्य की मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे ने हाल ही में अपनी लगभग डेढ़ महीने की गौरव यात्रा के दौरान बार बार कहा कि भाजपा राज्य की ‘36 कौमों’ को साथ लेकर चलेगी। यात्रा के समापन पर अजमेर में आयोजित विजय संकल्प सभा में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की उपस्थिति में भी उन्होंने यह बात दोहराई। पूर्व मुख्यमंत्री और कांग्रेस महासचिव अशोक गहलोत ने इस पर चुटकी लेते हुए कहा, ‘राजे बार-बार 36 कौमों को साथ लेकर चलने का जुमला बोलती हैं पर वे पांच कौमों के नाम तो बता दें जिनको साथ लेकर चली हों।’
इसके साथ ही गहलोत ने राजे पर आरोप लगाया कि ‘जातीय राजनीति को ही अपना आधार मानने वाली राजे अलग-अलग जाति समूहों में अपना वोट बैंक खोजने में लगी हुई हैं।’ आधिकारिक तौर पर, राज्य में ढाई सौ से अधिक जातियां विभिन्न श्रेणी में हैं। सामाजिक न्याय व आधिकारिता विभाग के अनुसार अनुसूचित जाति वर्ग में 59 जातियां, अनुसूचित जनजाति वर्ग में 12 जातियां, ओबीसी में 82 जातियां, पिछड़ा वर्ग में 78 जातियां हैं। उस पर भी मतदाता राजपूत, जाट, गुर्जर, मीणा, मेघवाल और ब्राह्मण समुदाय में बंटे हैं।
भारत वाहिनी पार्टी के प्रदेश संगठन महामंत्री दयाराम महरिया कहते हैं कि जातीय समीकरणों के आधार पर चुनाव लड़ने वाले और प्रत्याशी तय करने वाले दल सर्वसमाज की बात करते अच्छे नहीं लगते। एक निजी महाविद्यालय में सहायक प्रोफेसर डॉ महेश नावरिया ने कहा कि राज्य के मौजूदा राजनीतिक परिदृश्य में सर्वसमाज तथा 36 कौमों को साथ लेकर चलने की बात बेमानी है। उन्होंने कहा कि जब टिकट वितरण और प्रत्याशी तय करने का एक मात्र आधार जाति हो तो सर्वसमाज का नारा कोई मायने नहीं रखता।
वैसे ‘36 कौम’ का यह जुमला कहां से आया, इस बारे में न तो राजनीतिक पंडित और न ही इतिहास के जानकार कुछ कहने की स्थिति में हैं। राज्य में विधानसभा की कुल 200 सीटें हैं। इनमें से 34 सीटे अनुसूचित जाति, 25 सीटें अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित हैं जबकि 141 सीटें सामान्य वर्ग के लिए हैं। राज्य में विधानसभा चुनाव के लिए मतदान सात दिसंबर को होगा जबकि 11 दिसंबर को परिणाम आएगा।
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