लखनऊ: उत्तर प्रदेश में भारतीय जनता पार्टी के नेतृत्व वाली सरकार से बगावत कर इस्तीफा देने वाले स्वामी प्रसाद मौर्य ने कुछ पूर्व मंत्रियों के साथ समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव की मौजूदगी में पार्टी की सदस्यता ग्रहण की। बीजेपी छोड़कर आने वाले कुछ विधायक भी पार्टी कार्यालय में सपा में शामिल हो गए। स्वामी प्रसाद मौर्य के अलावा, सपा के पाले में जाने वाले अन्य मंत्री धर्म सिंह सैनी भी शामिल थे। हालांकि इस कार्यक्रम में मौर्य ने सूबे की पूर्व मुख्यमंत्री मायावती के बारे में एक ऐसा बयान दे दिया, जो दलित मतदाताओं को नाराज कर सकता है।
‘जिसका साथ छोड़ता हूं, उसका कहीं अता-पता नहीं रहता है’
बसपा सुप्रीमो मायावती पर निशाना साधते हुए मौर्य ने कहा, ‘मैं जिसका साथ छोड़ता हूं, उसका कहीं अता-पता नहीं रहता है। बहनजी (मायावती) इसकी जिंदा मिसाल हैं। जब तक साथ था, बार-बार मुख्यमंत्री बनती थीं। उनको घमंड हो गया था। बाबा साहब के मिशन से हट गईं। कांशीराम को भूल गईं। कांशीराम के सामाजिक परिवर्तन आंदोलन को डुबोने का काम करने लगी। कांशीराम के आंख मूंदते ही उनका नारा बदल दिया था। कांशीराम का नारा था, 'जिसकी जितनी संख्या भारी, उसकी उतनी भागीदारी', मायावती ने उनके नारे को बदलकर दूसरा नारा इजाद किया कि 'जिसकी जितनी तैयारी, उसकी उतनी भागीदारी', मतलब थैली वालों के पीछे खड़ी हो गईं।’
फ्लोटिंग दलित वोटरों को नाराज कर सकता है ये बयान
जानकारों का मानना है कि स्वामी प्रसाद मौर्य का यह बयान उन दलित वोटरों को नाराज कर सकता है जो क्षेत्र विशेष में बसपा के कमजोर होने की हालत में दूसरी पार्टी को मतदान करते हैं। दरअसल, मायावती देश के सबसे बड़े दलित नेताओं में गिनी जाती हैं और वर्तमान में वह निश्चित तौर पर इस समुदाय की बड़ी आइकॉन हैं। कमजोर होने के बावजूद बसपा का वोट प्रतिशत 20 पर्सेंट के आसपास बना हुआ है। उनसे दूरी बनाने वाले दलित मतदाता भी समुदाय के उत्थान के लिए किए गए उनके कार्यों का सम्मान करते नजर आते हैं। ऐसे में उन्हें यह मानने में परेशानी हो सकती है कि मौर्य की वजह से मायावती बार-बार मुख्यमंत्री बनती रहीं।
बसपा छोड़कर बीजेपी में आए थे मौर्य
बता दें कि अन्य पिछड़ा वर्ग के प्रभावशाली नेता माने जाने वाले मौर्य का पूर्वांचल के कई क्षेत्रों में दबदबा माना जाता है। वह वर्ष 2017 के विधानसभा चुनाव से पहले बहुजन समाज पार्टी (बसपा) छोड़कर भाजपा में शामिल हुए थे और कुशीनगर की पडरौना सीट से चुनाव जीतकर श्रम मंत्री बने थे।