देहरादून: उत्तराखंड में नैनीताल जिले के हल्दूचौड क्षेत्र के बीजेपी नेता मोहन सिंह बिष्ट को गुरुवार को आए चुनावी नतीजों से पहले तक उनके क्षेत्र के बाहर कम लोग ही जानते थे लेकिन कांग्रेस महासचिव हरीश रावत को लालकुआं सीट पर पटखनी देने के बाद उनका नाम परिचय का मोहताज नहीं रहा है। विधानसभा चुनाव में कांग्रेसी दिग्गज रावत को धूल चटाकर पहली बार विधायक बने बिष्ट ने इससे पहले 2019 में केवल जिला पंचायत का ही चुनाव जीता था।
हरीश रावत को हराने वाले नेता का जमीन से जुड़ाव
हालांकि, स्थानीय होने के नाते बिष्ट का जमीनी स्तर पर लोगों के साथ जुड़ाव है, ऐसे में उन्हें रावत पर ‘बाहरी’ होने के ठप्पे का चुनाव में लाभ मिला। इसके साथ ही ऐन चुनाव से पहले रावत को रामनगर की जगह लालकुआं से उतारे जाने के कांग्रेस के निर्णय को भी इस चुनावी नतीजे की वजह माना जा रहा है। इसके अलावा, रावत से पहले लालकुआं से घोषित कांग्रेस प्रत्याशी संध्या डालाकोटी ने भी पार्टी से विद्रोह कर निर्दलीय के रूप में चुनाव लड़ा और यह भी बिष्ट के पक्ष में ही गया।
बीजेपी को जीताने वाले धामी खुद हार गए चुनाव
चुनावी नतीजों में एक और बडा उलटफेर खटीमा सीट पर देखने को मिला जहां से प्रदेश कांग्रेस के कार्यवाहक अध्यक्ष भुवनचंद्र कापड़ी ने निवर्तमान मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी को 6579 वोटों के अंतर से शिकस्त दी। धामी 2012 से लगातार 2 बार इस सीट से जीत चुके थे और तीसरी बार यहीं से विधानसभा पहुंचने के इच्छुक थे। पिछले चुनाव में धामी ने कापडी को 2709 मतों से हराया था। हरीश रावत की पुत्री अनुपमा ने हरिद्वार ग्रामीण सीट पर धामी सरकार के कैबिनेट मंत्री स्वामी यतीश्वरानंद को 4472 वोटों से हराकर सबको चौंका दिया।
हरीश रावत की बेटी ने लिया पिता की हार का बदला
हरीश रावत ने 2017 में हरिद्वार ग्रामीण और किच्छा से चुनाव लड़ा था लेकिन दोनों ही सीटों पर उन्हें हार का सामना करना पडा था। अनुपमा की जीत पिछले चुनाव में उनके पिता को यतीश्वरानंद के हाथों मिली हार के बदले के रूप में देखी जा रही है। बीजेपी के दिग्गज नेता और पूर्व मुख्यमंत्री भुवन चंद्र खंडूरी की विधायक पुत्री ऋतु खंडूरी भूषण ने भी कोटद्वार सीट पर पूर्व कैबिनेट मंत्री सुरेंद्र सिंह नेगी को 3687 मतों से परास्त किया। उनकी इस जीत को भी अपने पिता की हार का बदला माना जा रहा है।
कांग्रेसी दिग्गज गोविंद सिंह कुंजवाल भी हारे चुनाव
नेगी ने 2012 में उनके पिता को हराया था जिससे न केवल खंडूरी मुख्यमंत्री बनने से चूके बल्कि कांग्रेस से एक सीट से पिछड़कर बीजेपी भी सत्ता से दूर हो गयी। अल्मोड़ा जिले की जागेश्वर सीट पर भी बड़ा उलटफेर देखने को मिला जहां पूर्व विधानसभा अध्यक्ष और 2002 से अब तक अजेय रहे कांग्रेसी दिग्गज गोविंद सिंह कुंजवाल को अपने ही राजनीतिक शिष्य मोहन सिंह के हाथों 5883 मतों से परास्त होना पडा। कभी कुंजवाल के करीबी रहे सिंह बाद में भाजपा शामिल हो गए थे।