लखनऊ: उत्तर प्रदेश में हर नेता का सियासत करने का अलग अंदाज है। उन्हीं में से एक मायावती अपनी ड्राइंग रूम पोलिटक्स के लिए जानी जाती है। लेकिन, इस बार जब बहुजन समाज पार्टी (बीएसपी) के लिए करो या मरो के हालात हैं। सियासत में बीएसपी के अस्तित्व पर सवाल उठने लगे हैं क्योंकि वह मौजूदा सियासी पर्दे से एकदम आउट नजर आ रही है। पीएम नरेंद्र मोदी, सीएम योगी अखिलेश यादव और प्रियंका गांधी की सक्रियता और दौरे लगातार बढ़ रहे है लेकिन बावजूद इसके मायावती खामोश हैं। मायावती की खामोशी की वजह क्या है, इसे लेकर यूपी में चर्चाएं होने लगी हैं।
मायवती ने प्रभारियों के साथ की बैठक
मायावती ने आज अपने जिलाध्यक्षों और मंडल प्रभारियों के साथ बैठक की। इस बैठक में चुनावी रणनीति को लेकर चर्चा की गई। पार्टी किन मुद्दों को लेकर चूनावों में जनता के बीच जाएगी, चुनाव प्रचार को लेकर क्या रणनीति रहेगी, इन तमाम मुद्दों पर मायावती ने अपने पदाधिकारियों को निर्देश दिए हैं। फिलहाल, पार्टी की ओर से जनता के बीच सिर्फ सतीष चंद्र मिश्रा ही नजर आ रहे हैं। केवल वही रैलियों में हिस्सा ले रहे हैं। सुरक्षित सीटों पर भी सतीश चंद्र मिश्रा दौरे कर रहे हैं। लेकिन, मायावती कब से रैलियों की शुरुआत करेंगी, इसे लेकर तस्वीर साफ नहीं है।
अस्तित्व की लड़ाई
मायावती ने आज बैठक से पहले साफ कर दिया कि 'जो लोग ज्यादा भाग दौड़ कर रहे हैं, असल में वो घबरा रहे हैं और उन्हे मालूम है कि उनकी सरकार बनने वाली नहीं हैं।' हालांकि, इस बात को नकारा नहीं जा सकता कि बसपा के लिए यह चुनाव अस्तित्व की लड़ाई के बराबर हैं। दरअसल, इस बार जंहा समाजवादी पार्टी (सपा) को भी खुद को यूपी में मजबूत रहने के लिए सत्ता हासिल करनी जरूरी है, वहीं, बसपा के भविष्य के लिए तो ये चुनाव और जरूरी हैं क्योंकि बसपा को अब यूपी की सत्ता से बाहर हुए करीब 10 हो चुके हैं।
दूर होते अपने!
बीएसपी के सामने मुश्किलें बहुत हैं। एक तरफ सामने सपा है, जिसके साथ मिलकर बसपा ने 2019 का लोकसभा चुनाव लड़ा था। बसपा का अपना वोट बैंक भी ढीला होता नजर आ रहा है, जिसे अपने साथ जोड़े रखने की भी चुनौती है। वहीं, अखिलेश यादव सफल तरीके से मुस्लिमों को साधते हुए नजर आ रहे हैं जबकि मायावती की ओर से ऐसा कुछ होता नहीं दिख रहा है. लेकिन, इस बात को भी नहीं नकारा जा सकता है कि पार्टी ब्राह्मण वोटरों को साधने की पूरी कोशिश कर रही है। हरीश चंद्र मिश्रा इस कार्यक्रम को लीड कर रहे हैं।
भीम आर्मी भी मैदान में है!
मायावती को भीम आर्मी के नेता चंद्रशेखर से भी चुनोती मिल सकती है। हालांकि, चंद्रशेखर या उनकी पार्टी ने पहले कोई चुनाव नहीं लड़ा है लेकिन वह खुद को दलित समुदाय के हितैषी के रूप में पेश कर रहे हैं। ऐसे में अलग मायावती की चुनावी मैदार में गैरहाजिरी के दौरान चंद्रशेखर दलित वोटों में सेंधमारी करने में कामयाब हो गए तो यह बसपा के लिए बहुत बड़ा झटका होगा क्योंकि इससे उसका पारंपरिक वोट बैंक टूटेगा।