लखनऊ: उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनावों में समाजवादी पार्टी को एक बार फिर हार का सामना करना पड़ा है। हालांकि 2017 के विधानसभा चुनावों से तुलना की जाए, तो इस बार पार्टी का प्रदर्शन काफी अच्छा रहा, लेकिन सीटों की संख्या इतनी नहीं हो पाई कि वह किसी भी स्तर पर भारतीय जनता पार्टी को चुनौती दे सके। माना जा रहा है कि उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव 2022 में अखिलेश यादव की पार्टी का मुसलमानों ने खुलकर समर्थन किया था, लेकिन फिर भी उसे हार का सामना करना पड़ा। आइए, समझने की कोशिश करते हैं कि ऐसा क्यों हुआ।
यूपी में कितना असरदार है मुस्लिम मतदाता
दरअसल, उत्तर प्रदेश की 403 विधानसभा सीटों में से 143 सीटें ऐसी हैं जहां मुस्लिम मतदाताओं की अच्छी-खासी संख्या है। लगभग 70 सीटों पर मुस्लिम आबादी 20 से 30 पर्सेंट हैं जबकि 73 सीटें ऐसी हैं जहां यह 30 पर्सेंट से ज्यादा है। प्रदेश की लगभग 3 दर्जन सीटों पर मुसलमान अपने दम पर किसी भी उम्मीदवार की जीत तय कर सकते हैं। मुसलमानों के प्रभाव वाली ज्यादातर सीटें पश्चिमी उत्तर प्रदेश, तराई वाले इलाके और पूर्वी उत्तर प्रदेश में हैं जिनमें मुजफ्फरनगर, शामली, सहारनपुर, बरेली, बिजनौर, मेरठ, अमरोहा, मुरादाबाद, रामपुर, संभल, मऊ और आजमगढ़ जैसे जिले शामिल हैं।
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मुसलमानों ने सपा को खुलकर दिया समर्थन
2022 के विधानसभा चुनावों के आंकडों को देखकर लगता है कि मुसलमानों ने समाजवादी पार्टी को खुलकर समर्थन दिया है। वोटिंग पैटर्न को देखकर साफ हो जाता है कि अधिकांश मुसलमानों ने समाजवादी पार्टी को वोट दिया है। मुजफ्फरनगर से लेकर आजमगढ़ तक, अधिकांश मुस्लिम बहुल जिलों में समाजवादी पार्टी गठबंधन को मुसलमानों ने खुलकर वोट दिया है और कई जिलों में ये वोट सीटों में भी तब्दील हुआ है। यही वजह है कि 2017 के विधानसभा चुनावों में 50 सीटों के आसपास सिमट जाने वाली समाजवादी पार्टी इन चुनावों में अपनी सीटों की संख्या दोगुनी तक करने में सफल होती दिख रही है।
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मुसलमानों के जबरदस्त समर्थन के बावजूद क्यों हारी सपा?
ऐसे में सवाल उठता है कि समाजवादी पार्टी मुसलमानों के जबरदस्त समर्थन के बावजूद चुनाव क्यों हार गई। दरअसल, उत्तर प्रदेश में कई जगहों पर मुसलमानों का सपा के पक्ष में ध्रुवीकृत होना बीजेपी के लिए फायदेमंद साबित हो गया। बीजेपी फ्लोटिंग वोटर्स के मन में यह बात बैठाने में सफल दिखी कि यदि समाजवादी पार्टी की सत्ता में वापसी होती है तो वह मुस्लिम तुष्टिकरण की राह पर जाएगी। ऐसे में ध्रुवीकरण दूसरी तरफ भी हुआ और उसने मुसलमानों द्वारा सपा के समर्थन को बेअसर कर दिया। एक और वजह यह रही कि ज्यादातर जगहों पर मुसलमानों बड़ी संख्या में सिर्फ यादव और मुस्लिम वोट ही सपा को मिले और यह अखिलेश को यूपी की सत्ता में वापसी दिला पाने में नाकाफी साबित हुए।
बीजेपी की कल्याणकारी योजनाएं भी पड़ गईं भारी
ऐसा नहीं है कि बीजेपी ने सिर्फ सांप्रदायिक ध्रुवीकरण की बुनियाद पर जीत दर्ज की है। दरअसल, वोटिंग पैटर्न को देखते हुए कहा जा सकता है कि यह उसकी जीत के स्तंभों में से एक है। बीजेपी को सत्ता में वापस लाने में सबसे अहम भूमिका उसकी कल्याणकारी योजनाओं ने निभाई है। जहां पहले की सरकारों में इन योजनाओं की डिलीवरी में काफी भ्रष्टाचार देखने को मिलता था, वहीं योगी की सरकरा के दौरान यह कम से कम रहा। इसके अलावा महीने में 2 बार राशन, शौचालय और मकान जैसी योजनाओं ने भी बीजेपी के पक्ष में माहौल बनाया।