लखनऊ: उत्तर प्रदेश के चुनावी रण में हर राजनीतिक दल लोक लुभावन वादों के जरिए जनता का साथ पाने में जुटा हुआ है। चुनावी सांप सीढ़ी के खेल में किसी भी दल के लिए सीढ़ी का काम वादों के जरिए ही होता है। ऐसे में अखिलेश भी एक ऐसे ही एक वादे के सहारे वोटों की सीढ़ी पर चढ़ने की जुगत में लगे हैं। दरअसल, हाल ही में सपा प्रमुख अखिलेश यादव ने एक रैली के दौरान जनता से वादा किया कि उनकी सरकार बनने के 3 महीने के अंदर वो जाति आधारित जनगणना कराएंगे। चुनाव की मंच से अखिलेश ने इस दांव को पहली बार चला है।
मैनपुरी में विजय रथ यात्रा के दौरान अखिलेश ने कहा कि चुनाव के बाद राज्य में पार्टी की सरकार बनने पर 3 महीने के अंदर जाति आधारित जनगणना कराकर आबादी के हिसाब से सभी को हक और सम्मान दिया जाएगा। इसी घोषणा के दौरान अखिलेश ने ये बात भी जनता से कही कि 'हम और आप पर आरोप लगता है कि हम किसी का हक छीन रहे हैं, लेकिन जातीय जनगणना से सब कुछ साफ हो जाएगा।'
चुनावी चश्मे से इसके मायने
हालांकि ये कोई पहली बार नही है जब अखिलेश ने जातीय जनगणना के पक्ष में अपनी राय को रखा हो। इससे पहले भी पूरा विपक्ष इस मुद्दे पर एक ही सुर में केंद्र पर जातीय गनगणना कराने का दबाव बना चुका है। अखिलेश लगातार इस बात को उठा रहें हैं कि जातीय जनगणना देशहित में है। ऐसी कई जातियां हैं जो लगातार आर्थिक तौर पर पिछड़ रही हैं, ऐसे में अगर जनगणना होती है तो उन्हे भी विकास की धारा के साथ जोड़ने में मदद मिलेगी। अब समझें इस दांव के मायने। दरअसल देश के सबसे बड़े सूबे में हो रहे चुनाव में ये मुद्दा काफी अहम है। इस पक्ष में खड़े अखिलेश लगातार ये बात कह रहे हैं कि जनगणना कराने से ओबीसी की संख्या के साथ-साथ छोटी से छोटी जनसांख्यिकीय जानकारी भी सामने आ पाएगी। जिसके बाद उस वर्ग की आर्थिक, सामाजिक और शैक्षिक स्थिति को सुधारा जा सकता है।
लालू यादव का मिला साथ
अखिलेश इस मुद्दे पर अकेले लड़ाई नही लड़ रहे हैं हाल ही में उन्हे राजद सूप्रीमो और बिहार के पूर्व सीएम लालू यादव का समर्थन भी हासिल हुआ है। लालू यादव ने आरोप लगाते हुए कहा कि बीजेपी जातीय जनगणना के हक में नही हैं। जबकि जनगणना किसी जाति के खिलाफ नही बल्कि देश और राज्यों के हित में है। लालू ने बीजेपी को मंडल कमीशन का वक्त याद दिलाते हुए चेताया कि जैसे उस वक्त विपक्ष ने लड़ाई लड़ी थी वैसा संघर्ष जातीय जनगणना के लिए भी करना पड़ेगा।