MP: "मामा" से लेकर "दादा", "दीदी", "भाभी" और "बाबा" भी चुनावी मैदान में कूदे, पढ़िए ‘मजेदार’ स्टोरी
मध्य प्रदेश में 28 नवम्बर को होने वाले विधानसभा चुनावों के घमासान में नाम का किस्सा काफी अलग है।
इंदौर: "वॉट्स इन ए नेम?" यानी नाम में क्या रखा है, विलियम शेक्सपियर की रूमानी, लेकिन दुखांत कृति "रोमियो एंड जूलियट" के एक मशहूर उद्धरण की शुरूआत इन्हीं शब्दों से होती है। लेकिन, मध्य प्रदेश में 28 नवम्बर को होने वाले विधानसभा चुनावों के घमासान में नाम का किस्सा काफी अलग है। इन चुनावों के दौरान मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान समेत कई उम्मीदवार आम जनमानस में प्रचलित अपने उपनामों को जमकर भुनाने की कोशिश कर रहे हैं।
लगातार चौथी बार सूबे की सत्ता में आने के लिए पूरे जोर लगा रही भाजपा के चुनावी चेहरे शिवराज जनता के बीच "मामा" के रूप में मशहूर हैं। अपनी परंपरागत बुधनी सीट से मैदान में उतरे मुख्यमंत्री चुनावी सभाओं के दौरान भी खुद को इसी उपनाम से संबोधित कर रहे हैं।
विधानसभा में प्रतिपक्ष के नेता और राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री अर्जुन सिंह के बेटे अजय सिंह ने "अजय अर्जुन सिंह" के रूप में चुनावी पर्चा भरा है। हालांकि, सियासी हलकों में उन्हें ज्यादातर लोग "राहुल भैया" के नाम से जानते हैं। वह अपने परिवार की परंपरागत चुरहट सीट से चुनाव लड़ रहे हैं।
सूबे के एक अन्य पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह के बेटे जयवर्धन सिंह भी अपने परिवार की परंपरागत राघौगढ़ सीट से फिर चुनावी मैदान में हैं। 32 वर्षीय कांग्रेस विधायक को क्षेत्रीय लोग और उनके परिचित "छोटे बाबा साहब", "जेवी" या "बाबा" पुकारते हैं।
कई उम्मीदवारों ने चुनावी दस्तावेजों में अपने मूल नाम के साथ प्रचलित उपनाम का भी इस्तेमाल किया है। इनमें प्रदेश के पूर्व कृषि मंत्री रामकृष्ण कुसमरिया शामिल हैं। चुनाव आयोग की आधिकारिक वेबसाइट पर उम्मीदवारों की सूची में उनका नाम "डॉ. रामकृष्ण कुसमरिया बाबाजी" है।
दाढ़ी रखने वाले कुसमरिया को लोग "बाबाजी" के नाम से भी पुकारते हैं। इस बार भाजपा से टिकट कट जाने के कारण "बाबाजी" बागी तेवर दिखाते हुए निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में दो सीटों-दमोह और पथरिया से किस्मत आजमा रहे हैं।
उज्जैन (उत्तर) सीट से बतौर भाजपा उम्मीदवार चुनाव लड़ रहे प्रदेश के ऊर्जा मंत्री का वास्तविक नाम पारसचंद्र जैन है। कुश्ती का शौक रखने वाले इस राजनेता को क्षेत्रीय लोग "पारस दादा" या "पहलवान" के नाम से पुकारते हैं।
वरिष्ठ पत्रकार और जन संचार विशेषज्ञ प्रकाश हिन्दुस्तानी ने रविवार को कहा, "आमफहम पहचान के स्थानीय समीकरणों के चलते उम्मीदवार चुनावों में अपने उपनाम का खूब सहारा ले रहे हैं। उनको लगता है कि चुनाव प्रचार के दौरान उनके उपनाम के इस्तेमाल से मतदाता उनसे अपेक्षाकृत अधिक जुड़ाव महसूस करते हैं।"
उन्होंने कहा, "कई बार ऐसा भी होता है कि चुनावों में किसी उम्मीदवार को नुकसान पहुंचाने के लिए उससे मिलते-जुलते नाम वाले प्रत्याशियों को मैदान में उतार दिया जाता है। ऐसे में संबंधित उम्मीदवार का उपनाम उसके लिए बड़ा मददगार साबित होता है। उसके नाम के साथ उपनाम जुड़ा होने के कारण EVM पर बटन दबाते वक्त मतदाताओं को उसकी पहचान के बारे में भ्रम नहीं होता।"
चुनावों के दौरान सूबे के हर अंचल में नए-पुराने उम्मीदवारों द्वारा अपने उपनाम का इस्तेमाल किया जा रहा है। मालवा क्षेत्र के इंदौर जिले की अलग-अलग सीटों से चुनावी मैदान में उतरे कई प्रत्याशी स्थानीय बाशिदों में अपने असली नाम से कम और अपने उपनाम से ज्यादा पहचाने जाते हैं।
प्रदेश के पूर्व मंत्री और मौजूदा भाजपा विधायक महेंद्र हार्डिया "बाबा" (65), इंदौर की महापौर और भाजपा विधायक मालिनी लक्ष्मणसिंह गौड़ "भाभी" (57), भाजपा विधायक रमेश मैंदोला "दादा दयालु" (58), भाजपा विधायक ऊषा ठाकुर "दीदी" (52), प्रदेश कांग्रेस के कार्यकारी अध्यक्ष और कांग्रेस विधायक जितेंद्र पटवारी "जीतू" (45), पूर्व विधायक और कांग्रेस उम्मीदवार सत्यनारायण पटेल "सत्तू" (51) और इंदौर विकास प्राधिकरण के पूर्व चेयरमैन महादेव वर्मा "मधु" (66) के नाम से जाने जाते हैं।
वैसे "दीदी" उपनाम पर ऊषा ठाकुर के साथ प्रदेश की महिला और बाल विकास मंत्री अर्चना चिटनीस (54) का भी अधिकार है। निमाड़ अंचल की वरिष्ठ भाजपा नेता चिटनीस अपनी परंपरागत बुरहानपुर विधानसभा सीट से चुनाव लड़ रही हैं।
बुंदेलखंड के छतरपुर जिले की राजनगर सीट से फिर ताल ठोक रहे कांग्रेस विधायक विक्रम सिंह "नाती राजा" (47) के रूप में मशहूर हैं, तो इसी विधानसभा क्षेत्र से समाजवादी पार्टी के प्रत्याशी के रूप में किस्मत आजमा रहे नितिन चतुर्वेदी (44) "बंटी भैया" के रूप में जाने जाते हैं। "बंटी भैया" कांग्रेस के वरिष्ठ नेता सत्यव्रत चतुर्वेदी के बेटे हैं।