नई दिल्ली: उत्तर प्रदेश में 12 मई को होने वाले अगले चरण के चुनाव में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) को महागठबंधन की सबसे कठिन चुनौती का सामना करना पड़ेगा क्योंकि चुनावी गणित इस चरण की लगभग सभी 14 सीटों पर समाजवादी पार्टी (सपा) और बहुजन समाज पार्टी (बसपा) गठबंधन के पक्ष में बैठता है।
भाजपा ने 2014 में इन सीटों में से आजमगढ़ को छोड़कर सभी पर कब्जा जमाया था। लेकिन, इस बार इन सीटों पर जीत दर्ज करने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के करिश्मे को असर दिखाना होगा क्योंकि महागठबंधन यहां मजबूत विकेट पर खेल रहा है, कम से कम कागजों पर तो यही प्रतीत होता है।
फुलपूर में, जहां से गठबंधन ने अपने प्रयोग की शुरुआत की थी, भाजपा को यहां पहले ही गठबंधन की मजबूती का एहसास हो चुका है। 2018 उपचुनाव में पार्टी को हार का सामना करना पड़ा था।
अगर सपा व बसपा उम्मीदवारों को 2014 में मिले वोट को देखें और अगर दोनों पार्टियों के पारंपरिक मतदाताओं ने उनका साथ नहीं छोड़ा तो भाजपा संभवत: प्रतापगढ़ को छोड़कर सभी 14 सीटों पर हारने की स्थिति में है।
भाजपा इन सीटों पर काफी हद तक प्रधानमंत्री मोदी के वोट को अपने पक्ष में करने की शक्ति पर निर्भर है, क्योंकि उनका धुआंधार चुनाव प्रचार पारंपरिक वोट बैंक की सीमाओं को तोड़ने वाला साबित हो सकता है।
पांच चरण के चुनाव के बाद उत्तर प्रदेश की 80 में से 53 सीटों पर उम्मीदवारों के भाग्य का फैसला ईवीएम में कैद हो चुका है। आजमगढ़ से अखिलेश यादव का सामना प्रसिद्ध भोजपुरी कलाकार दिनेश लाल यादव निरहुआ से है। इस सीट पर 2014 में मुलायम सिंह यादव ने जीत दर्ज की थी।
इस चरण में भाजपा नेता मेनका गांधी के भी भाग्य का फैसला होगा। वह इस बार सुलतानपुर से चुनाव लड़ रही हैं जहां से उनके बेटे वरुण गांधी मौजूदा सांसद हैं।