नई दिल्ली: मोदी लहर में वंशवाद की राजनीति को सबसे ज्यादा नुकसान हुआ है। उत्तर प्रदेश से मुलायम सिंह यादव और अखिलेश यादव को छोड़कर परिवार के सारे नेता हार गए तो बिहार से भी लालू परिवार का साफ हो गया है। इसके अलावा हरियाणा में हुड्डा परिवार भी चुनाव हार गया। मध्य प्रदेश में तो ज्योतिरादित्य सिंधिया और राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के बेटे भी मोदी लहर के सामने टिक नहीं पाए।
2019 में मोदी लहर ने मध्य प्रदेश और राजस्थान के सियासी खानदानों को हिला कर रख दिया है। एक तरफ मुख्यमंत्री के बेटे तो दूसरी तरफ ग्वालियर के महाराज को हार का सामाना करना पड़ा। मध्य प्रदेश के गुना से कांग्रेस के ज्योतिरादित्य सिंधिया मैदान में थे। यहां से उनकी जीत पक्की थी लेकिन इस बार गुना की जनता ने ऐसी गुगली फेंकी की महाराज क्लीन बोल्ड हो गए।
कहा जाता था कि गुना सीट सिंधिया परिवार का अभेद्य किला है। 1971 से लगातार ग्वालियर राजपरिवार गुना से जीतता आ रहा था। पिछले चार बार से ज्योतिरादित्य गुना से जीते थे। ज्योतिरादित्य से पहले तीन बार उनके पिता माधव राव जीते थे और माधव राव से पहले 4 बार उनकी मां राजमाता विजयराजे सिंधिया जीतीं थीं।
मध्य प्रदेश में राहुल गांधी के खासमखास ज्योतिरादित्य हारे तो उनके गुरु दिग्विजय सिंह भी हार गए। साध्वी प्रज्ञा ठाकुर को बीजेपी ने दिग्विजय सिंह के खिलाफ खड़ा कर मध्य प्रदेश में भगवा कार्ड खेला था जिसमें वो कामयाब रहे। साध्वी प्रज्ञा ने भोपाल से दिग्विजय को 3 लाख 66 हजार वोटों से हराया। हलांकि प्रदेश के मुख्यमंत्री कमलनाथ अपने बेटे नकुलनाथ को विजयी बनाने में कामयाब रहे।
ऊधर राजस्थान में भी वंशवाद की विरासत के सहारे संसद पहुंचने की उम्मीद लगाए बैठे मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के बेटे वैभव गहलोत को भी हार का मुंह देखना पड़ा। जोधपुर सीट से वैभव गहलोत हारे उन्हें गजेंद्र शेखावत ने पौने 3 लाख वोटों से हराया।