A
Hindi News लोकसभा चुनाव 2024 लोकसभा चुनाव 2019 दिल्ली में मुस्लिम वोट का सीक्रेट क्या है? बहुत कुछ कहती है दरगाह

दिल्ली में मुस्लिम वोट का सीक्रेट क्या है? बहुत कुछ कहती है दरगाह

कहते हैं कि दिल्ली के जिस किसी सुल्तान ने अमीर खुसरो के गुरु निजामुद्दीन औलिया से आंखें फेरी, उसकी सल्तनत ज्यादा दिन नहीं टिक पाई। इस इलाके के मुसलमानों ने विधानसभा चुनाव में आम आदमी पार्टी को सर-आंखों पर बिठाया था, लेकिन अब केजरीवाल को लेकर यहां के मुसलमानों का मूड भी बदला हुआ है। 

दिल्ली में मुस्लिम वोट का सीक्रेट क्या है? बहुत कुछ कहती है दरगाह- India TV Hindi दिल्ली में मुस्लिम वोट का सीक्रेट क्या है? बहुत कुछ कहती है दरगाह

नई दिल्ली: कहते हैं कि हजरत निजामुद्दीन औलिया हैं तो दिल्ली है, वरना दिल्ली नहीं है। निजामुद्दीन औलिया के शहर दिल्ली के लिए सियासी फैसले की घड़ी बेहद नजदीक है। निजामुद्दीन से लेकर यमुना पार शाहदरा तक का इलाका पूर्वी दिल्ली लोकसभा में आता है, जहां हर पांचवां शख्स मुसलमान है। पिछली बार प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के सर पर दिल्ली का ताज रखने वाले यहां के 18 फीसदी मुसलमान क्या इस बार भी उन पर भरोसा जताएंगे? मुसलमानों का यही मूड समझने के लिए इंडिया टीवी दिल्ली के निजामुद्दीन इलाके में पहुंचा जिसका नाम तेरहवीं शताब्दी के सूफी संत हजरत निजामुद्दीन के नाम पर पड़ा है।

कहते हैं कि दिल्ली के जिस किसी सुल्तान ने अमीर खुसरो के गुरु निजामुद्दीन औलिया से आंखें फेरी, उसकी सल्तनत ज्यादा दिन नहीं टिक पाई। इस इलाके के मुसलमानों ने विधानसभा चुनाव में आम आदमी पार्टी को सर-आंखों पर बिठाया था, लेकिन अब केजरीवाल को लेकर यहां के मुसलमानों का मूड भी बदला हुआ है। 

निजामुद्दीन के मुस्लिम दुकानदार मिराज हुसैन ने कहा, “60 साल से दुकान चला रहा हूं। यहां कुछ नहीं बदला, वैसा ही है सबकुछ। पुरानी दुकाने, पुरानी बस्ती, पुराने मकान। हम वोट उसी को देंगे जो अच्छा हो। बड़ी तगड़ी जंग चल रही है। अब तो पता ही नही चल रहा है। केजरीवाल ने काम अच्छा किया है। मोदी ने क्या किया? बताओ कुछ भी तो नहीं किया। प्रधानमंत्री बनने का तो राहुल गांधी का ही सुन रहे हैं।“

हजरत निजामुद्दीन की दरगाह से करीब 6 किलोमीटर दूर मौजूद संसद में पूर्वी दिल्ली से कौन पहुंचेगा, इस फैसले पर यहां के मुसलमान उलझन में भी हैं और बंटे हुए भी दिख रहे हैं। निजामुद्दीन में हिंदू-मुस्लिम राजनीति और ध्रुवीकरण की कोई हवा नहीं है। यहां के मुसलमानों का पैगाम सीधा और साफ है कि वो उसी को वोट देंगे जो विकास के लिए काम करेगा।

हुई मुद्दत की ग़ालिब मर गया पर याद आता है वो हर एक बात पर कहना कि यूं होता तो क्या होता। गालिब की मजार हो या हजरत निजामुद्दीन की दरगाह, हिंदू और मुसलमान दोनों के दिल में इनका कद और मुकाम सियासत से बढकर है। इसी तरह नामदार और कामदार होने के दावे करने वाली पार्टियों के वायदों और नारों से कहीं ज्यादा यहां के मुसलमान उम्मीदवारों के नाम और काम को तरजीह दे रहे हैं।