मध्य प्रदेश: दिग्विजय, सिंधिया, तोमर सहित कई दिग्गजों के भाग्य का फैसला 12 मई को
लोकसभा चुनाव के छठे और मध्य प्रदेश के तीसरे चरण में 12 मई को कांग्रेस के दिग्गज नेता दिग्विजय सिंह, ज्योतिरादित्य सिंधिया और भाजपा के केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर और साध्वी प्रज्ञा ठाकुर के राजनीतिक भाग्य का फैसला होने वाला है।
भोपाल: लोकसभा चुनाव के छठे और मध्य प्रदेश के तीसरे चरण में 12 मई को कांग्रेस के दिग्गज नेता दिग्विजय सिंह, ज्योतिरादित्य सिंधिया और भाजपा के केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर और साध्वी प्रज्ञा ठाकुर के राजनीतिक भाग्य का फैसला होने वाला है। इस चरण में राज्य की आठ सीटों पर मतदान होना है। इनमें सात सीटें फिलहाल भाजपा के कब्जे में हैं।
राज्य में लोकसभा की 29 सीटें हैं। इनमें से 13 सीटों पर दो चरणों में मतदान हो चुका है। आगामी 12 मई को आठ संसदीय सीटों- भिंड, मुरैना, ग्वालियर, गुना, राजगढ़, सागर, भोपाल और विदिशा में मतदान होना है। इनमें सिर्फ गुना संसदीय क्षेत्र ऐसा है, जिस पर कांग्रेस का कब्जा है। बाकी सभी सीटों पर भाजपा के उम्मीदवार पिछले चुनाव में जीते थे।
सबसे रोचक मुकाबला भोपाल संसदीय सीट पर है, जहां भाजपा ने साध्वी प्रज्ञा ठाकुर को चुनाव मैदान में उतारा है और कांग्रेस की ओर से पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह उम्मीदवार हैं। यहां चुनाव में ध्रुवीकरण की हर संभव केाशिश हो रही है। दोनों ओर से धर्म का सहारा लिया जा रहा है। वर्ष 1984 के बाद से भाजपा के कब्जे वाली इस सीट पर साधु-संत दोनों उम्मीदवारों के लिए मोर्चा संभाले हुए हैं। भोपाल संसदीय क्षेत्र में 19.50 लाख मतदाता हैं। इसमें चार लाख मुस्लिम, साढ़े तीन लाख ब्राह्मण, साढ़े चार लाख पिछड़ा वर्ग, दो लाख कायस्थ, सवा लाख क्षत्रिय वर्ग से हैं।
गुना संसदीय क्षेत्र कांग्रेस और खासकर ग्वालियर के सिंधिया राजघराने का गढ़ माना जाता है। यहां से चार बार से सांसद ज्योतिरादित्य सिंधिया कांग्रेस के उम्मीदवार हैं। इस बार उनका मुकाबला भाजपा के के. पी. यादव से है। यादव कभी सिंधिया के करीबी हुआ करते थे और उनके सांसद प्रतिनिधि रहे हैं। इस लोकसभा क्षेत्र से सिंधिया राजघराने के सदस्यों ने 14 बार प्रतिनिधित्व किया है। इसी तरह ग्वालियर संसदीय क्षेत्र को भी सिंधिया राजघराने के प्रभाव वाला माना जाता है, मगर यहां से बीते तीन चुनावों से भाजपा उम्मीदवार जीतते आ रहे हैं। इस बार मुकाबला कांग्रेस के अशोक सिंह और भाजपा के विवेक शेजवलकर के बीच है। अशोक सिंह बीते दो चुनावों से हारते आ रहे हैं। इस संसदीय क्षेत्र का प्रतिनिधित्व अटल बिहारी वाजपेयी, विजया राजे सिंधिया, माधवराव सिंधिया, यशोधरा राजे सिंधिया और नरेंद्र सिंह तोमर कर चुके हैं।
ग्वालियर-चंबल क्षेत्र की चर्चित सीटों में से एक मुरैना भी है, जहां से इस बार केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर चुनाव लड़ रहे हैं। तोमर ने पिछला चुनाव ग्वालियर से जीता था। तोमर का यहां मुकाबला कांग्रेस के राम निवास रावत से है। रावत अभी हाल ही में विधानसभा चुनाव हारे थे। रावत की गिनती सिंधिया के करीबियों में होती है। इस सीट पर 1996 से भाजपा का कब्जा है।
राजगढ़ संसदीय क्षेत्र पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह के प्रभाव वाली सीट मानी जाती है। यही कारण है कि स्वयं सिंह इस सीट से चुनाव लड़ना चाह रहे थे, मगर पार्टी ने उन्हें भोपाल भेज दिया। कांग्रेस ने मोना सुस्तानी को उम्मीदवार बनाया है, तो दूसरी ओर पार्टी कार्यकर्ताओं के विरोध के बावजूद भाजपा ने यहां से मौजूदा सांसद रोडमल नागर को दोबारा मैदान में उतारा है।
राज्य की विदिशा संसदीय सीट की अपनी पहचान है। यहां मुकाबला इस बार दो नए चेहरों के बीच है। भाजपा ने जहां रमाकांत भार्गव को मैदान में उतार है तो कांग्रेस ने शैलेंद्र पटेल पर दांव लगाया है। इस सीट पर पिछली बार सुषमा स्वराज ने जीत दर्ज की थी, मगर स्वास्थ्य कारणों से इस बार वह चुनाव नहीं लड़ रही हैं। इस सीट का प्रतिनिधित्व अटल बिहारी वाजपेयी, शिवराज सिंह चौहान जैसे नेता कर चुके हैं।
भिंड और सागर संसदीय सीटों पर मुकाबला नए चेहरों के बीच है। भिंड से भाजपा ने संध्या राय और कांग्रेस ने देवाशीष जरारिया को मैदान में उतारा है। वहीं सागर में भाजपा के राजबहादुर सिंह का मुकाबला कांग्रेस के प्रभु सिंह ठाकुर से है।