लोकसभा चुनाव 2019: जानें, क्या हैं डिंपल यादव की कन्नौज सीट के समीकरण
समाजवादी पार्टी का किला कन्नौज इस बार के लोकसभा चुनाव में भी समीकरण के लिहाज से मौजूदा सांसद डिंपल यादव के पक्ष में खड़ा दिखाई देता है।
कन्नौज: समाजवादी पार्टी (सपा) का किला कन्नौज इस बार के लोकसभा चुनाव में भी समीकरण के लिहाज से मौजूदा सांसद डिंपल यादव के पक्ष में खड़ा दिखाई देता है। हालांकि चचिया ससुर शिवपाल यादव की पार्टी 'वोट कटुआ' बनकर डिंपल को जीत का अंतर ज्यादा बढ़ाने से रोक सकती है। सपा प्रमुख व पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव की पत्नी का मुकाबला यहां भाजपा प्रत्याशी सुब्रत पाठक से है। सुब्रत पिछली बार 'मोदी लहर' के बावजूद हार गए थे। संयोगवश दोनों प्रतिद्वंद्वी एक बार फिर आमने-सामने हैं।
डिंपल को पिछली बार सुब्रत से कड़ी टक्कर मिली थी, इसलिए उन्हें ज्यादा अंतर से नहीं, बल्कि मात्र 19 हजार 907 वोट की बढ़त पर जीत हासिल हुई थी। इस बार हालात मगर बदले हुए हैं। पिछले चुनाव के समय अखिलेश प्रदेश के मुखिया थे। प्रदेश में अबकी भाजपा सरकार है। लेकिन इस तथ्य को भी नजरअंदाज नहीं किया जा सकता कि पिछली बार सपा मैदान में अकेली थी, मगर इस बार उसके साथ बहुजन समाज पार्टी (बसपा) और राष्ट्रीय लोकदल (रालोद) भी है।
सुब्रत पाठक के लिए इस बार अच्छी बात यह है कि बसपा से उम्मीदवार रहे निर्मल तिवारी इस बार भाजपा खेमे में हैं। पिछली बार उन्हें यहां से 1,27785 वोट मिले थे। भाजपा में शामिल हुए तिवारी पर बसपा के वोट बैंक में सेंधमारी की बड़ी जिम्मेदारी होगी तो सपा से अलग होकर शिवपाल यादव ने जो नई पार्टी बनाई है, वह सपा के यादव वोट बैंक में सेंधमारी के लिए तैयार बैठी है। शिवपाल की प्रगतिशील समाजवादी पार्टी (प्रसपा) से सुनील कुमार राठौर प्रत्याशी हैं। मगर कांग्रेस ने यहां अपना प्रत्याशी न उतारकर डिंपल का पलड़ा भारी कर दिया है।
वरिष्ठ राजनीतिक विश्लेषक आशुतोष कुमार का कहना है कि डिंपल मौजूदा सांसद हैं। यह उनके लिए मजबूत आधार है, लेकिन क्षेत्र में उनकी उपस्थित कम रही है। खास बात यह कि डिंपल मोदी लहर के बावजूद इस सीट से जीत गई थीं। इस बार तो समीकरण भी उनके पक्ष में हैं। क्षेत्र में लगभग 2 लाख 30 हजार के आस-पास यादव व कमोबेश इतने ही मुसलमान भी हैं। इनमें सपा की गहरी पैठ है। लगभग 2 दो लाख 50 हजार दलित किसी भी प्रत्याशी की हार-जीत में निर्णायक हैं। इस बार सपा-बसपा का गठबंधन है। साथ ही कांग्रेस ने 'वाकओवर' दिया है। इसलिए मुस्लिमों और दलितों का आकर्षण भी डिंपल की ओर है।
पिछले चुनाव में छिबरामऊ, तिर्वा, बिधूना और कन्नौज सदर से डिंपल को ज्यादा वोट नहीं मिले थे, बल्कि बसपा प्रत्याशी तिवारी को ज्यादा वोट मिले थे। इन इलाकों में दलितों और मुस्लिमों की अच्छी-खासी संख्या है। इसलिए इन इलाकों के मत सपा-बसपा गठबंधन की ओर जा सकते हैं। आइए, अब जरा मुद्दों की बात करें। तिरवा के किसान दुलारे का कहना है कि अवारा पशुओं से फसल की सुरक्षा बहुत करनी पड़ती है। इसके लिए सरकार को ठोस कदम उठाए जाने चाहिए। वहीं, आलू किसान रमेश का कहना है कि पैदवार अधिक होने से आलू फेंकना पड़ता है। यहां कोई बड़ी मंडी नहीं हैं।
उधर, इत्र व्यापारी दीना प्रकाश जैन विदेशी निवेश न होने से आहत हैं तो कन्नौज सदर के फारूक अली की शिकायत सपा सरकार में शुरू हुए कामों को भाजपा सरकार द्वारा रोक दिए जाने को लेकर है। सांसद प्रतिनिधि नवाब सिंह यादव का कहना है, ‘बीते 5 साल में भाजपा ने एक भी काम नहीं किया। सपा के समय हुए कामों पर अपने बोर्ड लगाकर योगी सरकार शिलान्यास कर रही है। परफ्यूम पार्क, कार्डियोलॉजी, बड़ी मंडी के कई कामों को इस सरकार ने रोक रखा है। विद्वेष के चलते काम नहीं हो रहे हैं। सपा सरकार के पास कामों की उपलब्धि है। हमें उनकी जीत की नहीं, बस मर्जिन बढ़ाने की चिंता है।’
भाजपा जिला अध्यक्ष आनंद सिंह कहते हैं कि योगी सरकार में बहुत काम हुए हैं। आलू किसानों के लिए ठठिया में चिप्स फैक्ट्री लगाई जा रही है। एक्सप्रेस-वे के पास एक नया ट्रॉमा सेंटर बनाया जा रहा है। सरकार ने एक सौरी कट बनाया है। कन्नौज वासियों की सुविधा का पूरा ख्याल रखा जा रहा है। कन्नौज लोकसभा सीट में पांच विधानसभा सीटें हैं। कन्नौज जिले में तीन विधानसभा क्षेत्र- कन्नौज, तिरवा और छिबरामऊ हैं। इसके अलावा कानपुर देहात की रसूलाबाद और औरेया जिले की बिधूना विधानसभा सीट भी इस लोकसभा सीट का हिस्सा है। वर्ष 2017 के विधानसभा चुनाव में इन पांच में से चार सीटों पर भाजपा और एक पर सपा जीती थी।
इतिहास के झरोखे से देखें तो वर्ष 1998 में सपा ने यह सीट भाजपा के सांसद चंद्रभूषण सिंह से छीनी थी। उसके बाद से लगातार हुए चुनावों में यह सीट सपा की झोली में रही। अखिलेश यादव ने अपनी सियासी पारी का आगाज कन्नौज संसदीय सीट पर 2000 में हुए उपचुनाव से किया था। इसके बाद अखिलेश यादव ने लगातार 3 बार यहां से जीत हासिल की।
डिंपल यादव ने इससे पहले वर्ष 2009 में फिरोजाबाद लोकसभा उपचुनाव में अपनी किस्मत आजमाई थी, लेकिन उन्हें सपा से बागी होकर कांग्रेस में गए अभिनेता राज बब्बर से पराजय का सामना करना पड़ा था। साल 2012 में अखिलेश ने प्रदेश का मुख्यमंत्री बनने के बाद कन्नौज से सांसद पद से इस्तीफा दिया था। उसके बाद हुए उपचुनाव में डिंपल पहली बार निर्विरोध निर्वाचित हुईं। साल 2014 में वह दोबारा कन्नौज से जीतीं।
जातीय समीकरण पर नजर डालें तो यहां 16 फीसदी यादव व 36 प्रतिशत मुस्लिम वोटरों के अलावा ब्राह्मण मतदाता 15 फीसदी से ज्यादा हैं और करीब 10 फीसदी राजपूत मतदाता हैं। क्षेत्र में अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) के मतदाताओं में लोधी, कुशवाहा, पटेल व बघेल समुदाय की तादाद भी अच्छी है। कुल मतदाताओं की संख्या 1,808,886 है, जिनमें महिला मतदाता 808,799 हैं और पुरुष मतदाताओं की संख्या 1,000,035 है। कन्नौज संसदीय क्षेत्र में मतदान चौथे चरण में 29 अप्रैल को होगा।