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तमिलनाडु: जातीय जटिलताओं में उलझा लोकसभा चुनाव, ये रहा पूरा गणित

तमिलनाडु में चौतरफा मुकाबले से नए फैक्टर सामने आ रहे हैं, जिस वजह से जातिगत जटिलताओं ने चुनाव को कई पेंचों में उलझा दिया है।

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चेन्नई: तमिलनाडु में चौतरफा मुकाबले से नए फैक्टर सामने आ रहे हैं, जिस वजह से जातिगत जटिलताओं ने चुनाव को कई पेंचों में उलझा दिया है। चार कोणों में से एक अन्नाद्रमुक नीत राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (NDA) है, जिसमें भाजपा, पट्टाली मक्कल कांची, विजयकांत की देसिया मुरपोक्कु द्रविड़ कड़गम शामिल हैं। दूसरा द्रमुक-कांग्रेस गठबंधन है, जिसमें वाइको के एमडीएमके, मुस्लिम लीग और वाम दल शामिल हैं। वहीं तीसरा कोण कमल हासन की मक्काल नीधि मैयम और चौथा अन्ना द्रमुक से अलग हुए टी टी वी दिनाकरन गुट का है।

CSDS के एक अध्ययन के अनुसार, जाति और समुदाय मतदाता पैटर्न से 2014 के चुनाव में अन्नाद्रमुक को फायदा हुआ था, जिसने 39 लोकसभा सीट में से 37 पर जीत दर्ज की थी, जिसमें से पार्टी ने 50 प्रतिशत थेवार और 60 प्रतिशत उदयार के वोट हासिल किए थे। पार्टी ने इसके अलावा 40 प्रतिशत वन्नियार, 44 प्रतिशत मुदलियार, 49 प्रतिशत ओबीसी और 42 प्रतिशत मुस्लिम वोट हासिल किए थे। पार्टी को ओबीसी मतों के एकजुट होने से फायदा हुआ था।

द्रमुक ने दूसरी तरफ सबसे ज्यादा समर्थन ऊंची जातियों (47 प्रतिशत), मुदलियार (34 प्रतिशत) और मुस्लिम (31 प्रतिशत) से प्राप्त किया था। वहीं, राज्य के कन्याकुमारी से एकमात्र सीट जीतने वाली भाजपा को पोन राधाकृष्णन ने जीत दिलाई थी। उन्होंने 1.26 लाख मतों के अंतर से जीत दर्ज की थी। पार्टी को ईसाई मछुआरों और नादार जाति के अलावा सबसे ज्यादा थेवार और उदयार से 35-35 प्रतिशत वोट और वेनियार समुदाय से 40 प्रतिशत मत मिले थे।

इस वर्ष महत्वपूर्ण अंतर यह है कि दो राष्ट्रीय पार्टियों कांग्रेस और भाजपा ने क्षेत्रीय पार्टियों अन्नाद्रमुक, द्रमुक के साथ गठबंधन किया है। इसके साथ ही दिनाकरन गुट और कमल हासन भी चुनौती दे रहे हैं। आर के नगर उपचुनाव में प्रभावशाली उपस्थिति दर्ज कराकर दिनाकरन दिवंगत मुख्यमंत्री जे जयललिता की विरासत की लड़ाई लड़ रहे हैं, जो उन्हें 2019 के चुनाव में एक महत्वपूर्ण फैक्टर बनाती है।

2011 की जनगणना के अनुसार, तमिलनाडु में 7.21 करोड़ की आबादी है, जिसमें 20.1 प्रतिशत अनुसूचित जाति (एससी) के लोग हैं। राज्य में कुल 5.86 करोड़ मतदाता हैं, जिसमें इसकी 18 प्रतिशत आबादी एससी की है, जोकि देश में सबसे ज्यादा है। यहां सात लोकसभा सीटें आरक्षित हैं। बड़े राज्यों में, तमिलनाडु में एससी आबादी में सबसे ज्यादा साक्षरता दर 73.3 प्रतिशत है। तमिलनाडु में थिरुवरुर, नीलगिरी, नागापट्टनम, पेरमबालु ऐसे जिले हैं, जहां एससी की आबादी 30-40 प्रतिशत से कम हैं। इसके अलावा दो जिलों विलुप्पुरम और कुद्दालोर में एससी आबादी 25-30 प्रतिशत से कम है।

थेवार, उपजातियां केल्लार, मारावार और अगमुदियार ऐसे महत्वपूर्ण समुदाय हैं, जो तमिलनाडु में खासकर दक्षिण तमिलनाडु में मजबूत राजनीतिक प्रभाव रखते हैं। अन्नाद्रमुक को इस समुदाय का हमेशा पूरा समर्थन मिलता रहा है, लेकिन जयललिता के निधन के बाद थेवार मतों में विभाजन हो सकता है। तमिलनाडु में सात आरक्षित सीटें (अनुसूचित जाति) है, जिसमें तिरुवल्लुवर, कांचीपुरम, विलुप्पुरम, निलगिरी, चिदंबरम, नागापट्टनम, तेनकासी शामिल हैं।

तेनकासी में पिछली बार अन्नाद्रमुक के एम वसंती ने 1.61 लाख मतों से जीत दर्ज की थी। इसबार द्रमुक के धनुष कुमार इस सीट से चुनाव मैंदान में हैं। पार्टी ने 28 वर्ष बाद इस सीट से किसी उम्मीदवार को उतारा है। तिरुवल्लुर चेन्नई के पास है, और यहां से अन्नाद्रमुक से पी वेणुगोपाल प्रतिनिधित्व करते हैं। उन्होंने 2009 में भी इस सीट पर जीत दर्ज की थी। इस सीट पर वन्नियार की अच्छी-खासी संख्या मौजूद है।

निलगिरी से 2014 में हार का स्वाद चखने के बाद ए राजा इस सीट से अपना भाग्य दोबारा आजमा रहे हैं। वहीं, अन्नाद्रमुक ने भी अपने मौजूदा सांसद सी गोपालकृष्णन को हटा कर एम त्यायागराजन पर विश्वास जताया है। कांचीपुरम में अन्नाद्रमुक से के मराठा एक बार फिर से यहां से जीत दर्ज करना चाहते हैं। उन्हें यहां द्रमुक से जी सेल्वम से चुनौती मिल रही है।

विल्लुपुरम आरक्षित सीट सांप्रदायिक और जातिगत हिंसा की गवाह रही है, जबकि मंदिर नगरी चिदंबरम में वीसीके प्रमुख थोल थिरुमवलवन और अन्नाद्रमुक के पी. चंद्रशेखर के बीच मुकाबला होगा।