आज भी चंबल घाटी में पूर्व बागियों के आगे नतमस्तक होते हैं नेता, जानिए इस बार क्या है माहौल
आइए आपको लेकर चलते हैं राजधानी नई दिल्ली से करीब साढ़े 3 सौ किलोमीटर दूर उसी चंबल में, जो तीन-तीन राज्यों में सैकड़ों एकड़ में फैला हुआ है और जानते हैं इस बार चुनाव को लेकर बीहड़ में क्या माहौल है।
चंबल। चंबल का जिक्र होते है हमारे दिमाग में खतरनाक और खूंखार डकैतों की टोलियों की तस्वीरें बनने लगती हैं। इन डकैतों के घोड़ों की टापों से लोगों के दिल दहल जाते थे, गांवों में सन्नाटा पसर जाता था और जब डकैतों की बंदूकों से गोलियां निकलती थीं तो चंबल घाटी कांप उठती थी। आइए आपको लेकर चलते हैं राजधानी नई दिल्ली से करीब साढ़े 3 सौ किलोमीटर दूर उसी चंबल में, जो तीन-तीन राज्यों में सैकड़ों एकड़ में फैला हुआ है और जानते हैं इस बार चुनाव को लेकर बीहड़ में क्या माहौल है।
12 मई को मध्यप्रदेश के चंबल इलाके की भिंड, मुरैना, ग्वालियर दतिया लोकसभा सीटों पर मतदान होना है। कभी दुर्दांत डाकुओं और बागियों की दहशत से बदनाम रहे इस इलाके में मान सिंह, पानसिंह तोमर, मोहर सिंह, माधव सिंह, माखन सिंह, कल्याण सिंह, हरविलास, मलखान सिंह जैसे डाकुओं की तूती बोला करती थी। चंबल में इंडिया टीवी की टीम सबसे पहले पहुंची मुरैना जिला हेडक्वार्टर से 55 किमी दूर बसे गांव भिरौसा में। भिरौसा पान सिंह तोमर का गांव हैं, जी हां, वहीं पान सिंह तोमर जिनके ऊपर कुछ साल पहले एक फिल्म बनी थी।
जानिए क्या है पान सिंह तोमर के गांव का मूड
भिरौसा सुनसान बीहड़ के बीचोंबीच बसा गांव था। पान सिंह तोमर, भिरौसा की गलियों में ही दौड़ दौड़ कर हिंदुस्तान के सबसे बड़े रेसर बन गए थे लेकिन जमीन विवाद ने इस रेसर को डाकू बना दिया। गांव में चुनावी चर्चा के दौरान पान सिंह तोमर के भतीजे दशरथ तोमर ने बताया, “पहले की तरह अब भी पुलिस काम नहीं आती है। जो लोगों का फायदा करेगा उसको वोट देंगे।”
चुनावों में वोटिंग को लेकर किसी भी तरह का दबाव को लेकर जब सवाल किया गया तो, पान सिंह तोमर के पड़ोस में रहने वाले दर्शन सिंह कहते हैं, “हम तो अपनी मर्जी से जिस पार्टी से बनती थी उसको वोट डालते थे, आपस में किसी से लेना-देना नहीं था, हमारे यहां कोई दबाव नहीं रहा है बाकि इलाकों कि उन लोगों की बात अलग है, हमारे यहां किसी बागी का कोई दबाव नहीं रहा है। ”
हमारी चुनावी चौपाल में पान सिंह तोमर के नाते रिश्तेदार भी आए थे और चुनाव में राष्ट्रीय सुरक्षा को लेकर सवाल किया गय तो उन्होंने कहा, “पहले कांग्रेस भी रही थी, कई बार बम धमाके भी हुए, सब कुछ होता रहा, पाकिस्तान आंखे दिखाता रहा लेकिन कुछ भी नहीं हुआ। अभी जब मोदी जी आए तो हम लोगों को पता चला कि पूरे विश्व में आज भारत का डंका बज रहा है, पूरा विश्व भारत को जान रहा है, मान रहा है। मुद्दा राष्ट्रवाद का है।”
गांवों में हैं कई समस्याएं
भिरौसा गांव के ज्यादतर युवा पानसिंह तोमर की तरह ही फौज में जाना चाहते हैं। मेहनत कर रहे हैं लेकिन बेरोजगारी की खाई गहरी है। वक्त और हालात से परेशान कई नौजवानों के तेवर तो चौंकाने वाले थे। इनमें से कई युवाओं ने तो खुलेआम कह दिया कि अगर नौकरी नहीं मिली तो बागी बन जाएंगे।
भिरौसा गांव के लोग सरकार से बहुत कुछ चाहते हैं,गांव में बहुत सी प्रॉब्लम हैं। हॉस्पिटल नहीं है, बैंक भी नहीं है, ऐसे बहुत से काम नहीं हुए, और बेरोजगारी भी, बच्चे बहुत से पढ़ के बैठे हुए हैं उनके पास काम भी नहीं है, वो गांव में घूम रहे हैं।
पूर्व डाकू बलंवत सिंह तोमर से मुलाकात
डाकू पान सिंह तोमर के गांव भिरौसा का मूड देखने के बाद हमें उस शख्स से भी मिलना था जो इन बीहड़ों में कभी डाकू पान सिंह तोमर का दाहिना हाथ था और उनका हमराज भी..उनका भतीजा। जी हां हम बात कर रहे हैं बलवंत सिह तोमर की। बलवंत सिंह तो तोमर ने बताया कि अगर गांव का प्रधान, इलाके का थानेदार और पटवारी न्याय कर दे तो डाकू समस्या कभी पैदा नहीं हो सकती। इस दौरान बलवंत सिंह तोमर ने पान सिंह तोमर के बारे में भी बात की और बताया कैसे जमीन के टुकड़े के विवाद ने 70 देशों में अपनी रफ्तार से हिंदुस्तान का नाम रौशन करने वाले एक फौजी को डकैत बना दिया।
सरेआम चलता है डाकुओं और नेताओं का गठजोड़
पूर्व दस्यु सरगना बलवंत से बात करते वक्त ये भी पता चला कि किस तरह आज भी डाकुओं और नेताओं का गठजोड़ सरेआम चलता है और कैसे वो चुनाव पर असर डालते हैं। बातचीत के दौरान बलवंत सिंह कहते हैं, “उनकी पकड़ सबसे मजबूत होती है क्योंकि हमारा क्षेत्र है जंगल में 20-20 किमी तक थाना नहीं है चौकी नहीं है, कुछ नहीं है। जंगल हमारा घर है हम कहेंगे किसी पार्टी का अच्छी छवि वाले का हमेशा समर्थन किया जाएगा।”
कई सालों तक निर्विरोध पंचायत अध्यक्ष रहा ये डाकू
यहां से निकल कर हमारी टीम पहुंची भिंड जिले के मेहगांव , जहां हमारी मुलाकात साठ के दशक में बीहड़ में दहशत का नाम बन चुके डाकू मोहर सिंह हुई। मोहर सिंह 20 साल की उम्र में ही परिवार से हुए विवाद का बदला लेने के लिए डाकू बन गए थे। सरेंडर करने के बाद मोहर सिंह ने सियासत में कदम रखा। कई साल तक निर्विरोध जिला पंचायत अध्यक्ष रहे। आज 98 साल के हैं लेकिन सियासत का जज्बा अभी खत्म नहीं हुआ है। मोहर सिंह बताते हैं कि नेता उनके पास आते हैं और अपने पक्ष में प्रचार करने के लिए कहते हैं, लेकिन वो कांग्रेस के लिए प्रचार करते हैं। मोहर सिंह ये भी कहते हैं कि उनके साथियों में से सिर्फ मलखान ने पाला बदला।
बागियों के नाम का होता है सियासत में इस्तेमाल
पुराने बागियों से मुलाकात के बाद ये बात तो साफ हो चुकी थी आज भी बीहड़ के इन बागियों के नाम का सियासत में इस्तेमाल होता है। नेता वोट बैंक के लिए इनके दरवाजे पर भी हाजिरी लगाते हैं। इस बात की तस्दीक खुद पूर्व डीएसपी रामकिशन तिवारी ने भी की। उन्होंने कहा, “डाकू नेताओं की मदद इसलिए करते थे नेता लोग सपोर्ट करते थे इनका, डाकुओं को वो पनाह देते थे, उनको जो-जो सामान देना था पहुंचा देते थे खाने पीने के, हथियारों के। हम यहां बैठे हैं बोल देते थे जाओ सामान जाकर दे आओ।”
सरेंडर करने के बाद चंबल के इलाके में कुख्यात रहे कई डाकू संसद तक का सफर कर चुके हैं। यूपी के धरौहरा से शिवपाल सिंह यादव की पार्टी प्रगतिशील समाजवादी पार्टी से कुख्यात डाकू रहे मलखान सिंह चुनाव लड़ रहे हैं। नेता भी जानते है कि भले ही ये आज आम आदमी की तरह जिंदगी जी रहे हों लेकिन दबदबा अब भी कायम है।
कभी बागी रहे इन लोगों से बातचीत कर ये तो साफ हो चुका है कि चंबल का राजनीति से बहुत ही पुराना रिश्ता है। आजतक ऐसा कोई चुनाव नहीं हुआ जिसमें कि डाकुओं ने कोई हिस्सा नहीं लिया हो।