कर्नाटक चुनाव 2018: जानिए क्यों है कर्नाटक सियासी तौर पर महत्वपूर्ण, क्या रहेंगे चुनावी मुद्दे
पिछले विधानसभा चुनाव से इस बार के चुनाव में दोनों पार्टियों के लिए काफी कुछ समीकरण बदल गए हैं।
बेंगलुरू: कर्नाटक में होने वाले विधानसभा चुनाव की तारीखों का ऐलान मंगलवार यानि आज चुनाव आयोग द्वारा कर दिया गया। राज्य की सभी 224 सीटों लिए 12 मई को मतदान और 15 मई को गतगणना की जाएगी। चुनाव आयोग ने प्रेस कॉन्फ्रेंस करके अपनी तैयारियों और चुनाव से जुड़ी महत्वपूर्ण जानकारी मीडिया के माध्यम से देश के सामने रखी। त्रिपुरा के बाद कर्नाटक में भी चुनाव आयोग सभी सीटों पर वीवीपीएटी वाली ईवीएम मशीनें इस्तेमाल करने जा रहा है। ऐसी स्थिति में परिणाम के बाद कोई भी दल चुनाव आयोग पर सवाल खड़े नहीं कर पाएगा। दोनों राष्ट्रीय दलों बीजेपी और कांग्रेस के अलावा जनता दल सेक्युलर यहां पर एक दूसरे को राजनीतिक चुनौती पेश करती दिखेंगी। राज्य में पहले से ही राजनीतिक पारा चढ़ा हुआ है।
क्यों है कर्नाटक महत्वपूर्ण
बीजेपी और कांग्रेस दोनों के लिए कर्नाटक चुनाव बेहद महत्वपूर्ण हैं। कांग्रेस इस समय लगभग पूरे देश से साफ हो चुकी है। छोटे राज्यों को छोड़ दें तो पार्टी के पास सिर्फ पंजाब और कर्नाटक दो ही बड़े राज्य बचे हैं। कर्नाटक को कांग्रेस हर हाल में जीतना चाहेगी। अगर कांग्रेस ये राज्य हार जाती है तो बीजेपी एक तरह की मनोवैज्ञानिक बढ़त के साथ मतदाताओं के बीच में ये संदेश देने में कामयाब हो जाएगी कि कांग्रेस 2019 चुनाव होने से पहले ही रेस से बाहर हो चुकी है। वहीं राहुल गांधी पर फिर से सवाल उठने लाजमी।
वहीं अगर बीजेपी की बात करें तो पार्टी के लिए कर्नाटक दक्षिण भारत का एकमात्र राज्य है जहां वो अपने दम पर सरकार बना सकती है। बीजेपी हमेशा से कर्नाटक को दक्षिण के गेट के तौर पर देखती आई है। अगर पार्टी एक बार फिर इस राज्य में सरकार बना पाती है तो दक्षिण के दूसरे राज्यों में अपनी पकड़ मजबूत कर पाएगी। साथ ही इस राज्य में स्थिति बेहतर होने पर 2019 में उत्तर भारत से होने वाले नुकसान की भरपाई भी की जा सकगी।
क्या है प्रमुख मुद्दे
लिंगायत समुदाय- लिंगायत समुदाय को अलग धर्म मानने की स्वीकृति देने के बाद ये मुद्दा राज्य में प्रमुख चुनावी मुद्दा बन गया है। लिंगायत राज्य में करीब 20 प्रतिशत आबादी है जो 224 में से 100 विधानसभा सीटों पर प्रभाव डालती है। आमतौर पर इस समुदाय को बीजेपी का समर्थक माना जाता रहा है। बीजेपी की तरफ से मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार येदियुरप्पा खुद इस समुदाय से आते हैं। ऐसे में बीजेपी का जनाधार खिसकाने के लिए कांग्रेस ने लिंगायतों की अलग धर्म की पुरानी मांग को स्वीकृति दे दी है। वहीं बीजेपी ने अभी इस मामले पर कोई स्पष्ठ रुख नहीं अपनाया है। अब देखना होगा लिंगयात किसके पक्ष में मतदान करते हैं।
राज्य के लिए अलग झंडा- कांग्रेस की सिद्दारमैया सरकार हालही में राज्य के अलग झंडे के स्वीकृति दे चुके हैं। जहां एक तरफ कर्नाटक के बाहर इसे क्षेत्रवाद के तौर पर देखा जा रहा है तो वहीं राज्य में इसकी क्या प्रतिक्रिया रहती है देखना होगा।
किसानों की आत्महत्या- किसानों की आत्महत्या राज्य की एक बड़ी समस्या है। हाल ही में अमित शाह ने प्रेस कॉन्फ्रेंस करके वादा किया है कि अगर बीजेपी सरकार में आती है तो किसानों के हित ध्यान में रखकर काम किया जाएगा। वहीं कांग्रेस पहले ही किसानों का कर्ज माफ कर चुकी है।
इसके अलावा भ्रष्टाचार, महंगाई, बिजली, कन्नड भाषा भी प्रमुख चुनावी मुद्दे रहेंगे।
क्या है सियासी गणित
राज्य में तीन प्रमुख पार्टियां बीजेपी कांग्रेस और राष्ट्रीय जनता दल सेक्युलर हैं। पिछेल चुनाव की बात करें तो साल 2013 में चुनाव में कांग्रेस 224 में से 36 प्रतिशत वोट के साथ 122 सीटें जीतने में कामयाब रही थी। उस समय सत्ता में रही बीजेपी को सिर्फ 20 प्रतिशत वोट के साथ 40 सीटें ही मिली थी वहीं जनता दल सेक्युलर भी 28 से बढ़कर 40 सीटें जीतने में कमायब रही थी। साल 2013 में बीजेपी के सबसे बड़े नेता येदियुरप्पा बीजेपी से अलग हो गए थे जिस कारण पार्टी का करारी हार झेलनी पड़ी थी।