झारखंड नतीजे: बीजेपी को लगा बड़ा झटका, पार्टी को भारी पड़ गईं ये 5 बड़ी गलतियां
कभी विजयरथ पर सवार एक के बाद एक राज्यों को अपने कब्जे में करने वाली भारतीय जनता पार्टी धीरे-धीरे राज्यों की सत्ता से बाहर होती जा रही है।
रांची: कभी विजयरथ पर सवार एक के बाद एक राज्यों को अपने कब्जे में करने वाली भारतीय जनता पार्टी धीरे-धीरे राज्यों की सत्ता से बाहर होती जा रही है। बीते लगभग एक साल में पार्टी महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, राजस्थान और झारखंड में सत्ता खो दी है। इस बीच कर्नाटक में बीजेपी ने भले ही सरकार बना ली हो, लेकिन बड़े कैनवस पर देखा जाए तो बीजेपी के लिए बीते एक साल कुछ अच्छे नहीं रहे। चुनाव नतीजों का विश्लेषण करने के बाद जीत-हार के कुछ कारण सामने आते हैं। आइए, जानते हैं झारखंड में बीजेपी के प्रदर्शन को प्रभावित करने वाले 5 ऐसे ही कारणों के बारे में:
1: AJSU पार्टी से गठबंधन न करना
झारखंड के गठन के समय से ही भारतीय जनता पार्टी और ऑल झारखंड स्टूडेंट्स यूनियन पार्टी के बीच गठबंधन था। इन चुनावों में सीट बंटवारे के मुद्दे पर दोनों पार्टियों के बीच बात नहीं बनी और नतीजे में दोनों को ही घाटा उठाना पड़ा। भारतीय जनता पार्टी ने 2014 के विधानसभा चुनावों में 37 सीटों पर जीत दर्ज की थी, जबकि आजसू को 5 सीटों पर जीत मिली थी। 2019 के विधानसभा चुनावों में बीजेपी खबर लिखे जाने तक 24 सीटों पर आगे थी, वहीं आजसू के भी खाते में सिर्फ 3 सीटें आई थीं। खास बात यह है कि इस बार के विधानसभा चुनावों में दोनों ही पार्टियों का वोट प्रतिशत बढ़ा था। इसलिए कहा जा सकता है कि यदि दोनों पार्टियां साथ मिलकर चुनाव लड़तीं तो नतीजा कुछ और भी हो सकता था।
2: 'अपनों' की नाराजगी
भारतीय जनता पार्टी को अपनों की नाराजगी भी काफी भारी पड़ी है। सबसे बड़ा झटका तो बीजेपी के वरिष्ठ नेता रहे सरयू रॉय ने मुख्यमंत्री रघुवर दास को ही दे दिया। टिकट न मिलने से नाराज सरयू ने मुख्यमंत्री रघुवर दास के खिलाफ ही चुनाव लड़ने का ऐलान कर दिया। उस समय शायद ही किसी को अंदाजा रहा होगा कि रघुवर दास जमशेदपुर ईस्ट की सीट को सरयू के हाथों गंवा देंगे। खबर लिखे जाने तक सरयू ने रघुवर पर निर्णायक बढ़त हासिल कर ली थी और जीत की तरफ बढ़ रहे थे। सरयू के अलावा भी कई ऐसे नेता रहे जिन्होंने बीजेपी से अपना दामन छुड़ा लिया जिनमें
3: आदिवासियों की नाराजगी
आदिवासियों की नाराजगी ने भी बीजेपी की हार में एक अहम भूमिका निभाई। आपको बता दें कि सूबे में 26.3 प्रतिशत आबादी आदिवासियों की है और 28 सीटें उनके लिए आरक्षित हैं। कई सीटें ऐसी हैं जहां आदिवासी ही जीत-हार का फैसला करते हैं। ऐसे में भारतीय जनता पार्टी ने गैर-आदिवासी रघुवर दास को मुख्यमंत्री बनाया। आदिवासियों को यह लगा कि 5 साल कार्यकाल के दौरान रघुवर की नीतियां आदिवासी विरोधी रही हैं और इसका खामियाजा पार्टी को भुगतना पड़ा।
4: विपक्ष का गठबंधन बनाकर लड़ना
2014 के विधानसभा चुनावों में जहां भारतीय जनता पार्टी AJSU पार्टी के साथ गठबंधन करके मैदान में उतरी थी, वहीं झारखंड मुक्ति मोर्चा, कांग्रेस और राष्ट्रीय जनता दल ने अकेले-अकेले चुनाव लड़ा था। इस बार स्थिति पूरी तरह से बदल गई। बीजेपी और AJSU पार्टी ने अपनी राहें जुदा कर लीं जबकि JMM, कांग्रेस और RJD ने गठबंधन करके चुनाव लड़ने का फैसला किया। यही वजह है कि इस बार नतीजा भी काफी अलग रहा और जेएमएम ने अपने सहयोगियों के साथ मिलकर झारखंड चुनावों में एक बड़ी जीत दर्ज की।
5: केंद्र पर ज्यादा निर्भरता
इन सबके अलावा केंद्र पर हद से ज्यादा निर्भरता भी पिछले कुछ चुनावों में बीजेपी को भारी पड़ी है। भारतीय जनता पार्टी ने राज्य के नेतृत्व को तो चुनाव में लगाया ही, लेकिन ज्यादातर फोकस केंद्रीय नेताओं और उसकी योजनाओं पर रखा। चूंकि केंद्र एवं राज्य के मुद्दे अलग-अलग होते हैं, इसलिए लोकसभा चुनावों में शानदार प्रदर्शन करने वाली पार्टी बीजेपी को विधानसभा चुनावो में करारी मात मिली। इसके अलावा रघुवर दास द्वारा कार्यकर्ताओं की कथित उपेक्षा और प्रतियोगी परीक्षाओं को लेकर छात्रों की नाराजगी को भी बीजेपी की हार के प्रमुख कारणों में गिना जा सकता है।