मजेदार हुआ बिहार चुनाव, अकेले चुनाव लड़ेगी LJP, जानिए कैसी हो सकती है भविष्य की तस्वीर
अपने दम पर बिहार चुनाव लड़ने के एलजेपी के फैसले ने बिहार में नई संभावनाएं पैदा कर दी है। एलजेपी ने स्पष्ट किया है कि उसके बीजेपी से कोई समस्या नहीं है, इसलिए भाजपा के प्रत्याशियों के खिलाफ पार्टी कोई उम्मीदवार नहीं उतारेगी।
नई दिल्ली. बिहार विधानसभा चुनाव को लेकर पटना से लेकर दिल्ली तक राजनीतिक सरगर्मियां तेज हैं। रविवार को बिहार की राजनीति में बड़ा घटनाक्रम उस समय देखने को मिला जब एनडीए के घटक दल एलजेपी ने बिहार के चुनावी रण में अकेले उतरने का फैसला किया। एलजेपी नेताओं ने पार्टी के इस फैसले के लिए जदयू को जिम्मेदार ठहराया है। एलजेपी के इस फैसले ने बिहार के चुनाव को मजेदार बना दिया है। बिहार की राजनीतिक को समझने वाले राजनीतिक पंडित भी अब चुनाव के परिणाम को लेकर कोई स्पष्ट अनुमान लगा पाने की स्थिति में नहीं दिखाई दे रहे हैं।
बिहार में पैदा हुईं नई संभावनाएं
अपने दम पर बिहार चुनाव लड़ने के एलजेपी के फैसले ने बिहार में नई संभावनाएं पैदा कर दी है। एलजेपी ने स्पष्ट किया है कि उसके बीजेपी से कोई समस्या नहीं है, इसलिए भाजपा के प्रत्याशियों के खिलाफ पार्टी कोई उम्मीदवार नहीं उतारेगी, लेकिन जदयू को एलजेपी की चुनौतियों का सामना करना ही पड़ेगा। बिहार में 28 अक्टूबर से तीन चरणों में चुनाव होना है। राजनीतिक जानकारों का कहना है कि जदयू के खिलाफ एलजेपी द्वारा उम्मीदवार उतारना नीतीश कुमार के लिए नुकसानदायक हो सकता है, चुनाव में नीतीश कुमार को इसका खामियाजा भुगतना पड़ सकता है।
क्यों अकेले चुनाव लड़ना चाहती है एलजेपी?
इन हालातों में अगर जदयू को उतनी सीटें नहीं मिलती हैं, जितनी उसको उम्मीद है तो बिहार में एनडीए का नेतृत्व नीतीश कुमार के हाथों पर बने रहने पर सवाल उठने लगेंगे। एलजेपी सूत्रों ने साफ कर दिया है कि वह किसी विपक्षी गठबंधन का हिस्सा नहीं बनेगी। उन्होंने कहा कि एलजेपी ने कई वजहों से राजग से अलग होने की घोषणा की है। इनमें 37 वर्षीय चिराग पासवान की अपनी क्षमता साबित करने की इच्छा भी शामिल है, जिन्होंने अपने पिता रामविलास पासवान से पार्टी की कमान अपने हाथ में ली है। इसके अलावा पार्टी जद (यू) से भी मुकाबले को तैयार है क्योंकि उसका मानना है कि नीतीश कुमार उसके राजनीतिक आधार को कमजोर करने के लिए काम करते रहे हैं।
क्या महागठबंधन को होगा फायदा?
राजनीतिक पंडितों का मानना है कि एलजेपी के इस कदम से लालू प्रसाद की राजद, कांग्रेस और वाम दलों का मुख्य विपक्षी गठजोड़ अपनी संभावनाएं बढ़ती देखेगा। विपक्षी गठबंधन को लगेगा कि केंद्रीय मंत्री रामविलास पासवान की पार्टी का यह फैसला एनडीए के वोट कम कर सकता है।
राष्ट्रीय स्तर पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और राज्य में नीतीश के नेतृत्व तथा राजग के व्यापक सामाजिक गठजोड़ के कारण सत्तारूढ़ गठबंधन को विपक्षी गठजोड़ के मुकाबले थोड़ा मजबूत माना जा रहा था लेकिन लोजपा के फैसले ने अब नए समीकरणों को जन्म दे दिया है।
पासवान की पार्टी लगातार मोदी की सराहना कर रही है और राज्य में भी भाजपा से नेतृत्व की कमान संभालने का आह्वान करती आ रही है। वहीं, उसके नए निर्णय से राजग के परंपरागत मतदाताओं के बीच भ्रम की स्थिति पैदा हो सकती है। उन क्षेत्रों में यह स्थिति ज्यादा प्रखर होगी जहां विपक्षी दलों के साथ-साथ जद (यू) और एलजेपी दोनों ही अलग-अलग अपने उम्मीदवार उतारेंगे।
क्या एलजेपी को होगा भारी नुकसान?
जेडी(यू) के एक वरिष्ठ नेता ने नाम जाहिर नहीं होने की शर्त के साथ कहा कि भाजपा अध्यक्ष जे पी नड्डा और केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह समेत पार्टी के आला नेताओं ने राज्य में गठबंधन की अगुवाई के लिए नीतीश पर भरोसा जताया है, वहीं मोदी ने भी हाल में कुछ कार्यक्रमों में अनेक बार बिहार के मुख्यमंत्री की प्रशंसा की है। उन्होंने कहा, ‘‘एलजेपी अपनी ताकत कुछ ज्यादा ही आंक रही है। एक बार मोदी और नीतीश कुमार चुनाव प्रचार के दौरान राज्य में कुछ संयुक्त जनसभाओं को संबोधित कर देंगे तो सारा संशय दूर हो जाएगा।’’
क्या इसबार नहीं चलेगी नीतीश कुमार का जादू?
दूसरी तरफ एलजेपी का मानना है कि राज्य में राजनीतिक शक्ति के रूप में नीतीश का असर फीका हो गया है और बड़ी संख्या में राजग के मतदाता चाहते हैं कि नए नेता को मौका मिले। एलजेपी के परंपरागत समर्थन आधार में दलित वोटों की बड़ी संख्या गिनी जाती है और राज्य के विभिन्न हिस्सों में कुछ उच्च जाति के प्रभावशाली नेताओं में भी उसका प्रभाव है।
इससे पहले भी यही रणनीति अपना चुकी है एलजेपी
एलजेपी ने राज्य में फरवरी 2005 में हुए चुनाव में भी इसी तरह की रणनीति अख्तियार की थी। तब वह केंद्र में कांग्रेस नीत संप्रग गठबंधन का हिस्सा थी लेकिन बिहार में संप्रग के प्रमुख घटक दल राजद के खिलाफ लड़ी थी। शुरू में तो उसकी रणनीति काम आई और त्रिशंकु विधानसभा में लोजपा के 29 विधायक चुनकर आए। हालांकि, बाद में विधानसभा भंग हो गयी और नए सिरे से चुनाव हुए। एलजेपी एक बार फिर अलग होकर लड़ी, लेकिन वह केंद्र में यूपीए में शामिल रही। हालांकि, इस बार जनता ने नीतीश कुमार की अगुवाई वाले एनडीए को स्पष्ट जनादेश दिया और 2005 में राज्य में लालू प्रसाद की राजद का 15 साल का शासन समाप्त हो गया। (With inputs from Bhasha)
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