World Teachers' Day: अगर स्कूल जाने से डरता है बच्चा तो आप भी बन जाएं 'तारे जमीन पर' जैसे 'निकुंभ सर'
शिक्षा के महत्व से पूरी दुनिया अवगत है। शिक्षा के बिना मनुष्य जी तो सकता है लेकिन कायदे का इंसान नहीं बन सकता। मनुष्य को इंसान बनाने में शिक्षक का योगदान अतुलनीय है। सम्पूर्ण विश्व में शिक्षक के योगदान को रेखांकित करने के लिए प्रति वर्ष 5 अक्टूबर को विश्व शिक्षक दिवस मनाया जाता है।
World Teachers' Day: छात्र पौधे के समान होते हैं, विद्यालय बगीचा के समान होता है और शिक्षक होते हैं माली के समान। यदि ऐसा हो लर्निंग और टीचिंग का माहौल तो कितना आसान हो जाएगा न पढ़ना और पढ़ाना! दरअसल छात्र और शिक्षक के बीच जब मित्रवत रिश्ते होते हैं तब खेल-खेल में पढ़ा और पढ़ाया जा सकता है। आज लर्निंग बाय डूइंग यानी करके सीखने पर ज़्यादा जोर दिया जा रहा है; यह नई पीढ़ी के लिए शुभ संकेत है। तनाव में पढ़ाई किसी काम की रह नहीं जाती हैं। रटकर पढ़ना बच्चों के भविष्य के लिए शुभ संकेत नहीं माने जाते हैं। एक अच्छा शिक्षक डांटता कम और समझाता ज़्यादा है। मानव सभ्यता को सभ्य बनाने में शिक्षक हमेशा आगे रहे हैं।
यूँ तो शिक्षा, शिक्षक और शिक्षार्थी पर अनेकों फ़िल्में बनी हैं लेकिन 'तारे जमीन पर' की बात ही कुछ और है। इस फ़िल्म ने शिक्षकों के लिए मानो मानक पद चिन्ह स्थापित किया है; जिन पर सभी शिक्षकों को चलना चाहिए। इस फ़िल्म के 'निकुंभ सर' खेल-खेल में पढ़ाने के लिए जाने जाते हैं। डिस्लेक्सिया बीमारी से पीड़ित 'ईशान' सीखने में कठिनाई का सामना करता है किंतु निकुंभ सर की रचनात्मक कोशिश से वह सीखने में एक्सपर्ट हो जाता है। दरअसल एक उम्दा शिक्षक कमजोर छात्र को बौद्धिक रूप से परिपूर्ण करता है। देश निर्माण में शिक्षक लगातार कक्षा में डटे रहते हैं। अलग-अलग विधियों से छात्र को पाठ्यपुस्तक के अमूर्त ज्ञान को मूर्त रूप में प्रदान करते रहते हैं। यही संदेश देते है निकुंभ सर।
हाल के दिनों में 'तारे जमीन पर' के निकुंभ सर जैसा कई भारतीय शिक्षक खूब सुर्खियां बटोर रहे हैं। विश्व शिक्षक पुरस्कार से सम्मानित रंजीत दिसाले सर, फिजिक्स वाला के नाम से मशहूर अलख पांडेय सर, सुपर थर्टी के आनंद कुमार सर और मैथेमैटिक्स गुरू के नाम से मशहूर आरके श्रीवास्तव सर ऐसे शिक्षक हैं जो शिक्षा के क्षेत्र में क्रांति ला रहे हैं। यदि आप किसी के जीवन में सुधार ला रहे हैं तो इससे बढ़कर मानवता का कार्य क्या हो सकता है भला! भारत आज यदि विश्व पटल पर महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है तो इसमें योगदान भरतीय शिक्षा व्यवस्था और शिक्षकों का भी है।
बच्चे जिस ढंग से सीखना चाहे शिक्षक होने के नाते हमें उन्हीं ढंग से सिखाना चाहिए। बच्चे को खुलकर बोलने की छूट देना अच्छे शिक्षकों की निशानी होती है। बच्चों के अंदर जिज्ञासा को पनपने देना चाहिए। एक अच्छा शिक्षक गलतियों पर छात्र को डांटता कम जबकि समझाता ज़्यादा है। बच्चे गलतियों से भी सीखते हैं और शिक्षा का मूल उद्देश्य सिखाना ही तो है। इसलिए यदि कॉन्सेप्ट को बच्चे अपने ढंग से कोरिलेट करते हैं और यदि वह कोरिलेशन तर्कसंगत है तो इसमें बुरा क्या है? तर्कसंगत न है तब उदार ढंग से बच्चों को समझाना चाहिए।
दरअसल जिसे हम टीचिंग कहते हैं वह माइक्रो स्तर से गुजरता है। तब जाकर बच्चे शत-प्रतिशत विषयवस्तु को आत्मसात कर पाते हैं। 'तारे जमीन पर' के 'निकुंभ सर' बनना है तो 'ईशान' जैसे असक्षम बालक को भी जीनियस बनाना होगा। इस साल अंतर्राष्ट्रीय शिक्षक दिवस का थीम है "शिक्षा का परिवर्तन शिक्षकों के साथ शुरू होता है।" इसलिए उम्मीद है कि, परिवर्तन लाने के परिचायक सभी शिक्षक कमोबेश 'निकुंभ सर' की भूमिका निभा रहे होंगे।