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Hindi News एजुकेशन आखिर घड़ी हमेशा बाएं से दाएं क्यों चलती है? पुरातन काल से जुड़ा है इसका नाता

आखिर घड़ी हमेशा बाएं से दाएं क्यों चलती है? पुरातन काल से जुड़ा है इसका नाता

आपके घरों की दीवारों व हाथों में घड़ी जरूर लगी होगी, अब उसमें समय देखते होंगे, पर क्या आपने सोचा कि आखिर घड़ी हमेशा बाएं से दाएं क्यों चलती है?

Clock- India TV Hindi Image Source : FREEPIK मार्डन घड़ी

घड़ियां हमारे दैनिक जीवन का हिस्सा बन गई हैं। ज्यादातर लोग उसे अपने कलाइयों में बाँधें रखना पसंद करते हैं। साथ ही उनके घरों की दीवारों पर भी बड़ी-बड़ी घड़ियां लगाई जाती हैं। अब इन्हीं घड़ियों के कारण लोग अपने काम पर तय किए समय पर आते और तय समय पर घर जाते हैं। घड़ियां की वजह से लोगों का जीवन थोड़ा आसान-सा हो गया है। पर शायद ही किसी के मन में यह सवाल आया हो कि घड़ी बाएं से दाएं क्यों चलती है, दाएं से बाएं क्यों?

घड़ी की सुइयां जिस दिशा में घूमती हैं, जिसे "घड़ी की सुई की दिशा या क्लॉकवाइज" कहा जाता है, वह उत्तरी गोलार्ध में समय-निर्धारण के ऐतिहासिक विकास से जुड़ी है। जानकारी हैरानी होगी कि यह परंपरा प्राचीनतम सूर्यघड़ियों से चली आ रही है, जो समय मापने के लिए इस्तेमाल की जाने वाली पहली उपकरणों में से एक थी।

बाएं से दाएं क्यों चलती है घड़ी?

सूर्यघड़ी या सन डायल एक सपाट, क्रम में लिखे नंबर के सतह पर एक ग्नोमोन (सूचक) के साथ परछाई डालकर काम करती है। दरअसल उत्तरी गोलार्ध में, जब सूर्य पूर्व से पश्चिम की ओर आकाश में घूमता है, तो सन डायल पर छाया बाएं से दाएं एक गोलाकार पथ में चलती है। आज की मॉर्डन घड़ी से पहले सूर्य घड़ी का ही हर तरफ इस्तेमाल किया जाता था। चूंकि घड़ियों का अविष्कार उत्तरी गोलार्ध के आस पास क्षेत्र में हुआ तो 

जब 14वीं शताब्दी में यूरोप में मैकेनिकल घड़ियों का विकास किया गया, तो आविष्कारकों ने स्वाभाविक रूप से उन्हें सूर्यघड़ी की परछाई की गति की नकल करने के लिए डिजाइन किया। भार से चलने और एस्केपमेंट द्वारा नियंत्रित सबसे पुरानी यांत्रिक घड़ियों में हाथ बाएं से दाएं की ओर चलते थे, ठीक वैसे ही जैसे सन डायल की परछाई चलती थी। यह डिज़ाइन विकल्प मनमाना नहीं था, बल्कि सौर गति पर आधारित समय बताने की सदियों पुरानी परंपरा की एक छवि है।

दाएं से बाएं क्यों नहीं चलती घड़ी?

अगर इन मैकेनिकल घड़ियों का आविष्कार पहले दक्षिणी गोलार्ध में हुआ होता, जहां सूर्य की छाया विपरीत दिशा (दाएँ से बाएँ) में चलती है, तो "घड़ी की दिशा" की हमारी अवधारणा पूरी तरह से अलग हो सकती थी और शायद यह एंटीक्लॉक वाइज चलती। हालांकि, कुछ संस्कृतियों ने ऐसी घड़ियां बनाईं भी, जो एंटी क्लॉकवाइज चलती हैं, जो उनके पढ़ने और लिखने की दिशा के साथ मेल खातीं थी।

जब यांत्रिक घड़ियां यूरोप और बाद में पूरे विश्व में व्यापक रूप फैल गईं तो इस दिशात्मक परंपरा को अपनाना और अधिक मजबूत हो गया। फिर जैसे-जैसे ये घड़ियाँ चर्च टावरों और टाउन हॉल जैसे सार्वजनिक स्थानों पर लगाई जाने लगीं, उनका डिज़ाइन मानकीकृत हो गई, जिससे समय मापने वाले उपकरणों के लिए घड़ी की दिशा में घूमना ही आदर्श बन गया। आज, भले ही डिजिटल तकनीक ने बड़े पैमाने पर मैकेनिकल सिस्टम की जगह ले ली है, पर शुरुआती सनडायल्स और मैकेनिकल घड़ियों की विरासत आज भी समय की कसौटी पर खरी उतरती है।

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