आपके पास कौन-कौन से हैं मौलिक अधिकार और मौलिक कर्त्तव्य? ये दोनों अलग-अलग अधिकार हैं
आज के दिन को देश में संविधान दिवस के रूप में मनाया जाता है। इस अवसर आज हम आपको मौलिक अधिकार और मौलिक कर्त्तव्य के बारे में बताएंगे जो हमें संविधान से मिले हैं।
समूचे देश में हर वर्ष आज यानी 26 नवंबर के दिन को संविधान दिवस के रूप में मनाया जाता है। बता दें कि इस दिवस को मनाने की शुरुआत वर्ष 2015 से हुई। इस मौके पर आज हम आपको मौलिक अधिकार और मौलिक कर्त्तव्य के बारे में बताएंगे, जो कि हमें संविधान से मिले हैं। कई लोगों को तो ये दोनों अधिकार एक ही लगते हैं लेकिन ये बिलुकल अलग-अलग हैं। आज हम आपको बताएंगे कि हमारे पास कौन-कौन से मौलिक अधिकार और मौलिक कर्त्तव्य हैं। तो चलिए जानते हैं।
मौलिक अधिकार
भारतीय संविधान द्वारा 6 मौलिक अधिकार प्रदान किए गए हैं, जो कि इस प्रकार हैं:
- समानता का अधिकार(Right to Equality)
- स्वतंत्रता का अधिकार (Right to freedom)
- शोषण के विरुद्ध अधिकार(Right against exploitation)
- धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार (Right to freedom of Religion)
- सांस्कृतिक और शैक्षिक अधिकार(Cultural and Educational Rights)
- संवैधानिक उपचारों का अधिकार(Right to constitutional Remedies)
मौलिक कर्त्तव्य
मौलिक कर्तव्य भारत के नागरिकों की नैतिक ज़िम्मेदारियां हैं। संविधान के अनुच्छेद 51(A) में 11 मौलिक कर्तव्यों का वर्णन किया गया है।
- संविधान का पालन करें और उसके आदर्शों, संस्थाओं, राष्ट्रध्वज एवं राष्ट्रीय गान का आदर करना।
- स्वतंत्रता के लिए राष्ट्रीय आंदोलन को प्रेरित करने वाले महान आदर्शों को संजोये रखना और उनका पालन करना।
- भारत की संप्रभुता, एकता और अखंडता की रक्षा करना तथा उसे अक्षुण्ण रखना।
- देश की रक्षा करना और आह्वान किए जाने पर राष्ट्र की सेवा करना।
- भारत के सभी लोगों के बीच धार्मिक, भाषाई और क्षेत्रीय या वर्गीय विविधताओं से परे सद्भाव और समान भाईचारे की भावना को बढ़ावा देना; महिलाओं की गरिमा के लिए अपमानजनक प्रथाओं का त्याग करना।
- हमारी सामासिक संस्कृति की गौरवशाली परंपरा का महत्त्व समझना और उसका संरक्षित करना।
- प्राकृतिक पर्यावरण जिसके अंतर्गत वन, झील, नदी और वन्य जीव आते हैं, की रक्षा करना और और उसका सुधार करना तथा जीवित प्राणियों के प्रति दया रखना।
- वैज्ञानिक दृष्टिकोण से मानववाद और ज्ञानार्जन तथा सुधार की भावना का विकास करना।
- सार्वजनिक संपत्ति को सुरक्षित रखें और हिंसा से दूर रहें।
- व्यक्तिगत और सामूहिक गतिविधियों के सभी क्षेत्रों में उत्कर्ष की ओर बढ़ने का सतत प्रयास करना जिससे राष्ट्र प्रगति की और निरंतर बढ़ते हुए उपलब्धि की नई ऊंचाइयों को छू ले।
- 6 से 14 वर्ष तक की आयु के बीच के अपने बच्चों को शिक्षा के अवसर उपलब्ध कराना।
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