ममता बनर्जी और राज्यपाल की लड़ाई के बीच पिस रहे हैं कुलपति
कानूनी विशेषज्ञों ने चेतावनी दी है कि पश्चिम बंगाल सरकार ने 24 अन्य राज्य यूनिवर्सिटियों के मामले में संबंधित खंड में एक गलत आवेदन किया था और जब तक राज्य सरकार तुरंत उस गलत आवेदन को ठीक नहीं करती है, तब तक संभावना है कि वहां के वाइस चांसलरों को एक समान कार्रवाई का सामना करना पड़ेगा।
कलकत्ता की लोकप्रिय यूनिवर्सिटी हाल ही में इस बात का एक बड़ा उदाहरण बन गई है कि कैसे एक राज्य द्वारा संचालित यूनिवर्सिटी का कुलपति (Vice Chancellor) राज्य सरकार और गवर्नर के बीच चल रहे झगड़े का शिकार हो सकता है। जिसके कारण वाइस चांसलर की नियुक्ति या पुनर्नियुक्ति के संबंध में शक्तियों का अनुप्रयोग होता है। कानूनी विशेषज्ञों ने चेतावनी दी है कि पश्चिम बंगाल सरकार ने 24 अन्य राज्य यूनिवर्सिटियों के मामले में संबंधित खंड में एक गलत आवेदन किया था और जब तक राज्य सरकार तुरंत उस गलत आवेदन को ठीक नहीं करती है, तब तक संभावना है कि वहां के वाइस चांसलरों को एक समान कार्रवाई का सामना करना पड़ेगा।
विधेयक की वजह से तेज हुई खींच-तान
कलकत्ता यूनिवर्सिटी की पूर्व वाइस चांसलर सोनाली चक्रवर्ती बनर्जी और राज्य सरकार दोनों ने यह सुनिश्चित करने के लिए कानूनी कदम उठाए कि पुनर्नियुक्ति का फैसला बरकरार रहे। लेकिन पहले कलकत्ता हाई कोर्ट की खंडपीठ और फिर सुप्रीम कोर्ट ने उनकी पुनर्नियुक्ति को रद्द कर दिया। कलकत्ता यूनिवर्सिटी के पूर्व रजिस्ट्रार राजगोपाल धर चक्रवर्ती को लगता है कि राज्य सरकार ने उनकी पुनर्नियुक्ति में इस खंड को लागू करने के लिए तत्कालीन राज्य के गवर्नर जगदीप धनखड़ को दरकिनार करने की इच्छा जताई थी।
गवर्नर और राज्य सरकार के बीच यह खींचतान तब तेज हो गई जब सरकार ने विधानसभा में एक विधेयक पारित किया, जिसमें गवर्नर को मुख्यमंत्री के साथ सभी राज्य-संचालित यूनिवर्सिटियों में वाइस चांसलर के रूप में बदलने की मांग की गई थी। इसी तरह, राज्य के सभी निजी यूनिवर्सिटियों में गवर्नर के स्थान पर शिक्षा मंत्री को अतिथि के रूप में बदलने के लिए एक और विधेयक पारित किया गया। अब बनर्जी को पुनर्नियुक्ति देने में राज्य सरकार ने कलकत्ता यूनिवर्सिटी अधिनियम, 1979 की धारा 60 के तहत 'कठिनाइयों का निवारण' खंड लागू किया है।
कैसे हो सकती है कुलपति की नियुक्ति
हाई कोर्ट के वकील ज्योति प्रकाश खान जैसे कानूनी विशेषज्ञों का मानना है कि 'कठिनाइयों का निवारण' खंड केवल आपातकालीन स्थितियों के मामले में लागू होता है, जहां वाइस चांसलर का पद अचानक उनके इस्तीफे या किसी ऐसे कारण से खाली हो जाता है जो मानव नियंत्रण से परे है। ऐसे में राज्य सरकार नई नियुक्ति होने तक किसी को कार्यकारी वाइस चांसलर के रूप में नियुक्त करने के लिए इस खंड को लागू कर सकती थी। ऐसी स्थिति में गवर्नर की सहमति की आवश्यकता नहीं होती है, क्योंकि नियुक्ति अंतरिम अवधि के लिए की जाती है।
कानूनी विशेषज्ञों का मानना है कि पूर्णकालिक वाइस चांसलर की नियुक्ति या मौजूदा वाइस चांसलर की पुनर्नियुक्ति के मामले में राज्य सरकार को यूनिवर्सिटी अनुदान आयोग अधिनियम, 1956 का पालन करना होगा और उस स्थिति में गवर्नर की सहमति अनिवार्य है। बनर्जी की पुनर्नियुक्ति के मामले में राज्य सरकार ने तत्कालीन गवर्नर जगदीप धनखड़ को दरकिनार करते हुए उस खंड को लागू किया था। दरअसल, कलकत्ता हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट दोनों की डिवीजन बेंच के फैसलों ने इस गलत क्लॉज एप्लीकेशन को उनकी दोबारा नियुक्ति को रद्द करने का कारण बताया।
पश्चिम बंगाल शिक्षा विभाग के रिकॉर्ड के अनुसार, बंगाली कवि दिवंगत निरेंद्रनाथ चक्रवर्ती की बेटी और राज्य के पूर्व मुख्य सचिव और राज्य सरकार के वर्तमान मुख्य सलाहकार अलपन बनर्जी की पत्नी बनर्जी को पहली बार 2017 में नियुक्त किया गया था। यह नियुक्ति तत्कालीन गवर्नर केशरी नाथ त्रिपाठी की सहमति लेकर यूजीसी के मानदंडों के अनुसार की गई थी। हालांकि, 2021 में उन्हें तत्कालीन गवर्नर जगदीप धनखड़ की सहमति के बिना राज्य सरकार द्वारा फिर से नियुक्त किया गया था।