सुप्रीम कोर्ट ने NMC को भेजा नोटिस, इस मामले को लेकर मांगा है जवाब
सुप्रीम कोर्ट ने नेशनल मेडिकल कमीशन को एक मामले में नोटिस जारी किया है। सुप्रीम कोर्ट में कुछ विदेशी मेडिकल ग्रेजुएट्स की ओर ये एक याचिका डाली गई है।
सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को राजस्थान के 8 मेडिकल कॉलेजों और राम मनोहर लोहिया संस्थान के विदेशी छात्रों द्वारा दायर याचिकाओं पर नेशनल मेडिकल कमीशन (एनएमसी) से जवाब मांगा, जिसमें अन्य इंडियन मेडिकल ग्रेजुएट की तरह इंटर्नशिप के लिए वजीफा देने की मांग की गई है। जस्टिस बी आर गवई और जस्टिस के वी विश्वनाथन की बेंच ने जसवंत सिंह और अन्य द्वारा दायर याचिका पर नोटिस जारी किया।
'मौलिक अधिकारों का उल्लंघन'
जस्टिस बी आर गवई और जस्टिस के वी विश्वनाथन की बेंच ने कहा, "नोटिस जारी करें।" याचिकाकर्ताओं की ओर से पेश एडवोकेट तन्वी दुबे ने कहा कि वजीफा न दिया जाना उनके मौलिक अधिकारों का साफ तौर पर उल्लंघन है। उन्होंने कहा कि यदि कई अन्य कॉलेज विदेशी मेडिकल ग्रेजुएट्स को स्टाइपेंड दे रहे हैं, तो इस भेदभाव का कोई कारण नहीं है। वर्तमान याचिका राजस्थान के सिरोही, अलवर, दौसा और चित्तौड़गढ़ सहित सरकारी मेडिकल कॉलेजों में इंटर्नशिप कर रहे विदेशी मेडिकल ग्रेजुएट्स द्वारा दायर की गई है।
इंडियन मेडिकल ग्रेजुएट्स के समान मिलना चाहिए स्टाइपेंड
एडवोकेट चारु माथुर द्वारा दायर याचिकाओं में कहा गया है, "नेशनल मेडिकल कमीशन (एनएमसी) द्वारा जारी 4 मार्च, 2022 और 19 मई, 2022 के सर्कुलर के मुताबिक यह स्पष्ट रूप से प्रावधान किया गया है कि स्टाइपेंड इंडियन मेडिकल ग्रेजुएट्स के समान दिया जाना चाहिए।" याचिकाओं में कहा गया है कि स्टाइपेंड का प्रावधान नेशनल मेडिकल कमीशन (अनिवार्य रोटेटिंग मेडिकल इंटर्नशिप) विनियम, 2021 के खंड 3 (शेड्यूल IV) के तहत शासित है।
याचिकाकर्ताओं ने कहा कि वे रेगुलर स्टाइपेंड पाने के हकदार हैं। छात्रों को पहले यह अनुमान था कि उन्हें रेगुलेशन के मुताबिक इंटर्नशिप की अवधि के लिए स्टाइपेंड दिया जाएगा। हालांकि, वे यह देखकर हैरान रह गए कि जब वे इंटर्नशिप में शामिल हुए, तो उन्हें एक हलफनामे पर यह एफीडेविट देने के लिए मजबूर किया गया कि इंटर्नशिप बिना किसी स्टाइपेंड के होगी।
'कोई अन्य ऑप्शन नहीं था'
याचिका में कहा गया है, "छात्रों के लिए यह एक दुविधा वाली स्थिति थी, क्योंकि उनके पास उस अंडरटेकिंग पर सिग्नेचर करने के अलावा कोई अन्य ऑप्शन नहीं था। इंटर्नशिप में शामिल होने के दौरान, उन्हें इस बात का बिल्कुल भी अंदाजा नहीं था कि उन्हें आवास, यात्रा आदि सहित दिन-प्रतिदिन के भारी खर्च उठाने होंगे। उन्हें यह जानकर हैरानी हुई कि ग्रामीण पोस्टिंग में शामिल होने वाले खर्च भी उन्हें ही उठाने पड़े।"
(इनपुट- पीटीआई)
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