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कोरोनाकाल में एक बेहतर करियर ऑप्शन बनकर उभरा उत्थान मनोविज्ञान

दुनियाभर में कोविड का सामाजिक-आर्थिक प्रभाव विनाशकारी रहा है। भारत में लाखों की संख्या में कोरोना मामले दर्ज किए गए और मई के मध्य तक कोरोना से 2.87 लाख मौतें दर्ज की गई हैं।

<p>कोरोनाकाल में एक...- India TV Hindi Image Source : FILE कोरोनाकाल में एक बेहतर करियर ऑप्शन बनकर उभरा उत्थान मनोविज्ञान

नई दिल्ली| दुनियाभर में कोविड का सामाजिक-आर्थिक प्रभाव विनाशकारी रहा है। भारत में लाखों की संख्या में कोरोना मामले दर्ज किए गए और मई के मध्य तक कोरोना से 2.87 लाख मौतें दर्ज की गई हैं। कोरोना महामारी से पहले साल 2017 में विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) ने भारत को दुनिया का सबसे निराशाजनक देश करार दिया था। यह अनुमान लगाया गया था कि सात में से एक भारतीय किसी न किसी रूप में मानसिक बीमारी से पीड़ित है।

देश में कोरोनावायरस महामारी की दूसरी लहर के बीच इस संख्या में निश्चित रूप से इजाफा हुआ होगा। देश में चिकित्सा व्यवस्था पर इस कदर दबाव बढ़ा है कि एक बुनियादी देखभाल और सहायता प्रदान करने में भी काफी मशक्कत करनी पड़ रही है।

तनाव, चिंता और अवसाद का होना लाजिमी है क्योंकि लोग अपनी सेहत को लेकर काफी चिंतित हैं। एक विद्यार्थी ने हाल ही में स्वीकारा कि "मुझे ऐसा लग रहा है कि जैसे कि अप्रैल, 2020 से अब तक की इस समयावधि में मैं जबरदस्ती से हूं। जैसे कि मुझे किसी ने यहां बिना मेरी मर्जी के फेंक दिया है। ऐसा लग रहा है कि इससे पहले कि हम इस मौजूदा परिस्थिति को पचा सके, इतिहास खुद को दोहराने की कोशिश में लगा हुआ है।"

एक-दूसरे से दूरी बनाकर रखना और अलग रहना वाकई में बेहद समस्याग्रस्त है। इससे डर, गुस्सा, चिड़चिड़ापन, बोरियत और आक्रोश की भावना पैदा होती है। इनके अलावा, कोरोनाकाल में लोगों में असामान्य व्यवहार की भी वृद्धि हुई है। यूनाइटेड नेशंस एंटिटी फॉर जेंडर इक्वलिटी एंड द एम्पावरमेंट ऑफ वीमेन ने हाल ही में महिलाओं के खिलाफ हो रही हिंसा में भी इजाफा पाया है।

डब्ल्यूएचओ के द्वारा प्रति 1,00,000 लोगों पर कम से कम तीन मानसिक स्वास्थ्य पेशेवरों की सिफारिश की गई है। भारत में प्रति 1,00,000 व्यक्तियों पर मानव व्यवहारों का अध्ययन करने वाले मनोवैज्ञानिकों की संख्या 0.07 फीसदी है। मनोवैज्ञानिकों और मानसिक स्वास्थ्य की देखभाल करने वाले पेशेवरों की यह कमी एक बहुत बड़ी चिंता का विषय है क्योंकि कोरोना के चलते मानसिक स्वास्थ्य से जुड़ी परेशानियों की वृद्धि जारी रहेगी। ऐसे में मनोविज्ञान का अध्ययन करने वाले युवाओं की मांग आने वाले समय में बढ़ेगी।

अगस्त, 2021 में ओपी जिंदल ग्लोबल यूनिवर्सिटी के जिंदल स्कूल ऑफ साइकोलॉजी एंड काउंसलिंग (जेएसपीसी) द्वारा विद्यार्थियों के लिए अपने पहले बैच का उद्घाटन किया जाएगा। इसके तहत तीन साल की अवधि वाले इस बी.ए. (ऑनर्स) साइकोलॉजी प्रोग्राम की पढ़ाई किसी भी स्ट्रीम का कोई भी विद्यार्थी कर सकता है। इसके लिए बस 12वीं की पढ़ाई का पूरा होना जरूरी है।

जेएसपीसी से स्नातक की पढ़ाई कर लेने के बाद विद्यार्थियों के लिए करियर के कई रास्ते खुलेंगे, जिनमें काउंसिलिंग और क्लिनिकल साइकोलॉजी, न्यूरोसाइकोलॉजी, कॉग्निटिव साइकोलॉजी, डेवलपमेंट साइकोलॉजी, इंडस्ट्रियल और ऑगेर्नाइजेशनल साइकोलॉजी, फॉरेन्सिक और क्रिमिनल साइकोलॉजी और एजुकेशन साइकोलॉजी शामिल हैं।इससे न केवल छात्रों के लिए नए अवसर पैदा होंगे, बल्कि मानसिक स्वास्थ्य से उबरने में भी देश को मदद मिलेगी।

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