मेडिकल कॉलेजों में एडमिशन के लिए मोदी सरकार ने उठाया ये बड़ा कदम, अब दाखिले के राह होगी आसान
मेडिकल कॉलेजों में एडमिशन के लिए अब मारामारी खत्म होने वाली है। सरकार ने इसे लेकर एक बड़ा कदम उठाया है।
देश में मेडिकल कॉलेजों में एडमिशन के लिए छात्रों को काफी मशक्कत करनी पड़ती है। इसी मारामारी को खत्म करने के लिए केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने बड़ी पहल की है। हाल ही में केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने देश के बड़े प्राइवेट हॉस्पिटल के साथ एक मीटिंग की है। इस में केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री खुद मौजूद रहे। इस मीटिंग में देश के 62 हास्पिटल ने भाग लिया। देश के कई छात्र सरकारी मेडिकल कॉलेज में सीट न मिलने और प्राइवेट मेडिकल कालेज की ज्यादा फीस के कारण विदेश पढ़ने चले जाते हैं। इसी प्रवास को कम करने के लिए केंद्रीय मंत्री ने मीटिंग की।
सरकार ने उठाया कदम
बता दें कि कई देशों में भारत के मुकाबले मेडिकल की पढ़ाई आसान और किफायती है। साथ ही NEET का एंट्रेंस टेस्ट काफी मुश्किल होता है जिस कारण लाखों छात्र निराश हो जाते हैं। इसी के चलते ये कदम सरकार ने उठाया है। बता दें कि हर साल 8 लाख स्टूडेंट नीट के लिए अप्लाई करते हैं, लेकिन सीट कम होने के कारण कंपटीशन टफ होता है और बस कुछ ही छात्र सफल हो पाते हैं। जानकारी के लिए बता दें कि देश में कुल मेडिकल सीटें करीब 1 लाख हैं। इनमें से ज्यादातर यानी 50 हज़ार से कुछ ज्यादा सीटें सरकारी मेडिकल कॉलेजों की ही हैं।
कई बड़े हॉस्पिटल के साथ हुई बैठक
इस मीटिंग में जसलोक, ब्रिज कैंडी, कोकिला बेन,अपोलो, मेदांता, सत्य साई हॉस्पिटल और अमृता हॉस्पिटल जैसे बड़े हॉस्पिटल शामिल हुए हैं। इस मीटिंग का उद्देश्य देश में ही किफायती रेट्स पर मेडिकल की पढ़ाई उपलब्ध करवाना था। देश में किफायती पैसे में पढ़ाई हो सके इसके लिए प्राइवेट अस्पतालों से रिक्वेस्ट की गई है।
यहां समझें कारण
हर साल देश के सैकेंड़ों छात्र चीन रूस और यूक्रेन एमबीबीएस की पढ़ाई के लिए चले जाते हैं क्योंकि भारत के प्राइवेट मेडिकल कालेज में एमबीबीएस की फीस और एडमिशन की डोनेशन का खर्च मिलाकर 50 लाख से 1 करोड़ तक हो जाता है, जिसे हर आदमी अफोर्ड नहीं कर पाता है। वहीं अगर यूक्रेन की बाक करें तो यहां रहना और पढ़ाई मिलाकर कुल 35 लाख खर्च होते हैं। हालांकि भारत में प्राइवेट कॉलेज में सरकारी कोटे की सीटें होती हैं, लेकिन उनमें एडमिशन इतना आसान नहीं होता है। साथ ही मैनेजमेंट कोटे की सीटों की फीस काफी ज्यादा होती है। बता दें कि इस कदम से भारतीय छात्रों को आने वाले सालों में राहत मिल सकती है।
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