मध्य प्रदेश की शिक्षा व्यवस्था बदहाल, 6000 सरकारी स्कूलों में एक-एक टीचर के जिम्मे 5-5 क्लासेस; शिक्षा मंत्री कर रहे इनकार
सरकार शिक्षा व्यवस्था को लेकर बड़े-बड़े दावे करती है, लेकिन जमीनी स्तर पर सच्चाई कुछ और ही है। इंडिया टीवी की इस रिपोर्ट में पढ़े मध्य प्रदेश के 6000 सरकारी स्कूलों का सच...
मध्य प्रदेश के सरकारी स्कूलों में शिक्षा के स्तर को लेकर हमेशा से सवाल उठते रहे हैं हालांकि सरकार की तरफ से एमपी की शिक्षा व्यवस्था को बेहतर बनाने के दावे तो किए जाते रहे हैं, लेकिन सच्चाई यह है कि एमपी के सरकारी स्कूलों में शिक्षकों की कमी को ही सरकार अब तक दूर नहीं कर पाई तो शिक्षा के स्तर को कैसे सुधारे? स्कूल चलो हम समेत तमाम नारों के साथ स्कूल शिक्षा विभाग अभियान चलता है बच्चों को स्कूल तक ले जाने का लेकिन प्रदेश के ज्यादातर जिले ऐसे हैं जहां कई स्कूलों में सिर्फ एक ही शिक्षक है जिसके ऊपर पहली से 5वीं कक्षा तक की पढ़ाई की जिम्मेदारी है।
क्या है स्कूलों का हाल?
ग्रामीण इलाकों में चल रहे सरकारी स्कूलों का हाल जानने इंडिया टीवी की टीम भोपाल से 25 किलोमीटर दूर दौलतपुर ठिकरिया गांव पहुंची। यहां हमें गुलाब सिंह मीणा मिले जो बच्चों को पढ़ा रहे थे। पूछने पर उन्होंने बताया कि स्कूल को 2 टीचर अलॉट है। दूसरे टीचर बीएड की पढ़ाई के चलते स्कूल नहीं आते लिहाजा उनके ऊपर ही पहली से पांचवीं कक्षा तक के बच्चों को पढ़ाने का दारोमदार है। गुलाब सिंह की मानें तो किसी एक शिक्षक के लिए यह संभव ही नहीं है कि वो एक साथ इतनी क्लासेस को पढ़ाए और कोर्स भी पूरा कर दे। असली समस्या तब आती है जब उन्हें अचानक से छुट्टी लेना पढ़ जाती है तो ऐसे में स्कूल बिना शिक्षक के ही रहता है और उस दिन छात्रों की पढ़ाई का नुकसान हो जाता है।
अब जरा भोपाल जिले के रातीबड़ गांव का भी हाल जान लीजिए। यह भी इकलौती टीचर पहले से पांचवीं तक के 19 बच्चों को पढ़ाने का मुश्किल काम करते दिखाई दी, इंडिया टीवी से बातचीत में कहा यह संभव ही नहीं सारे बच्चों का कोर्स एक साथ पूरा कर दें अगर हम छुट्टी ले ले तो आफत, यहां बच्चे भी पढ़ने नहीं आते हैं।
शिक्षा अधिकारी भी मान रहे शिक्षकों की कमी
राजगढ़ जिले के झंझारपुर के स्कूल के हालात भी ऐसे ही हैं यहां के मीडिल स्कूल में एक शिक्षक छठवीं, 7वीं और 8वीं के बच्चों को पढ़ा रहा है। उन्होंने कहा कि यहां दो गेस्ट टीचर तैनात हैं पर वह पढ़ाने आते ही नहीं है इसलिए अकेले पढ़ाना पड़ता है। इस मामले पर राजगढ़ के शिक्षा अधिकारी करण सिंह भिलाला ने कहा कि राजगढ़ जिले में 26 स्कूलों में एक भी शिक्षक नहीं है वहीं 244 ऐसी शालाएं हैं जिनमें एक शिक्षक के द्वारा बच्चों को पढ़ाया जा रहा है।
क्या कह रहे आंकड़ें?
अब तक आपने मध्यप्रदेश का एजुकेशन मॉडल जान लिया, अब जरा आंकड़ों पर नज़र डालतें हैं। शिक्षा विभाग के पोर्टल के मुताबिक, मध्यप्रदेश के 47 जिलों में सिंगल टीचर स्कूल हैं। पूरे प्रदेश में ऐसे स्कूलों की संख्या 6,858 है। शिवपुरी जिले में सबसे ज्यादा 420 सिंगल टीचर वाले स्कूल हैं। वहीं, सतना और रीवा जिले में भी सिंगल टीचर स्कूलों की संख्या 400 से ज्यादा है। जबकि हैरानी की बात यह है कि प्रदेश के 46 जिलों के 1,275 स्कूल ऐसे हैं जहां एक भी शिक्षक नहीं है। राज्य में 79000 शिक्षकों की कमी है।
मध्यप्रदेश शासकीय शिक्षक संगठन के उपेंद्र कौशल बताते हैं कि प्रदेश में 70 से 80 हजार शिक्षकों की कमी है जिसके चलते स्कूल चलो अभियान जैसे कार्यक्रम फ्लॉप हो रहे हैं एक शिक्षक पहले से 5वीं तक के बच्चों को न पढ़ा पाता है ना उन्हें अच्छी शिक्षा दे पता है।"
शिक्षा मंत्री कर रहे इनकार
इस बारे में जब हमने स्कूल शिक्षा मंत्री उदय प्रताप सिंह से बात की कि कई स्कूलों में एक ही शिक्षक हैं जिससे छुट्टी लेने पर स्कूल बंद हो जाते हैं ऐसे में मंत्री जी ने कहा मैं आपकी बात से सहमत नहीं हूं। आगे उन्होंने बताया कि हम कोशिश कर रहे हैं कि बच्चों को अच्छी से अच्छी शिक्षा दें। 80000 शिक्षकों की कमी पर उन्होंने कहा बच्चों की संख्या शिक्षकों की उपलब्धता ध्यान में रखकर हम काम कर रहे हैं जल्दी शिक्षकों की भर्ती भी निकालेंगे।
कांग्रेस ने घेरा
वहीं, इस पूरे मामले में कांग्रेस के मीडिया प्रभारी मुकेश नायक ने मोहन सरकार को घेरते हुए कहा है कि जिस राज्य में पिछले 20 सालों से एक ही पार्टी की सरकार है और वह अब भी शिक्षकों की कमी को पूरा नहीं कर पा रही है तो जाहिर है उनके पास शिक्षा को लेकर कोई सोच ही नहीं है और यही वजह है कि प्रदेश में शिक्षक वर्ग बुरी तरह से प्रताड़ित है।
बता दें कि मध्यप्रदेश में सरकार जल्द ही 70 हजार पदों पर अतिथि शिक्षकों की भर्ती करने वाली है यानी सरकार को इतना तो मालूम है कि प्रदेश में शिक्षकों की कमी है। अब सवाल यह है कि आखिर ऐसी क्या मजबूरी है कि सरकार शिक्षकों के पदों पर भर्ती से बचती आ रही है?
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