Children Rights In India: बच्चों को बच्चा ना समझें, भारत का संविधान उन्हें भी देता है बड़े अधिकार
तारीख 11 दिसंबर साल 1992 को बच्चों के लिए सबसे अहम दिन माना जाता है। ऐसा इसलिए क्योंकि इसी दिन भारत ने बच्चों के अधिकारों से संबंधित अंतर्राष्ट्रीय मानव अधिकारों के कानूनों को अपना समर्थन देते हुए स्वीकार किया था। इसी के अनुच्छेद 54 तहत बच्चों को कुल 41 विशिष्ट अधिकार दिए गए हैं।
कई बार आपने लोगों को कहते हुए सुना होगा कि 'इस देश का संविधान हमें यह अधिकार देता है'। लेकिन क्या कभी किसी बच्चे को यह कहते हुए सुना है कि इस देश का संविधान उसे क्या अधिकार देता है या उसके क्या मानव अधिकार हैं। शायद नहीं! वह इसलिए क्योंकि बच्चों को उनके अधिकारों के बारे में शायद ही कभी बताया जाता हो। हालांकि, बाल दिवस के मौके पर हम आपको बताएंगे कि आखिर बच्चों को इस देश का संविधान क्या अधिकार देता है और उनके क्या मानव अधिकार हैं। सबसे बड़ी बात की अगर देश के हर बच्चे को उसका अधिकार दे दिया गया तो, इस देश का भविष्य ऐसे ही उज्ज्वल हो जाएगा।
बच्चों को मिलने वाले 41 विशिष्ट अधिकार
तारीख 11 दिसंबर साल 1992 को बच्चों के लिए सबसे अहम दिन माना जाता है। ऐसा इसलिए क्योंकि इसी दिन भारत ने बच्चों के अधिकारों से संबंधित अंतर्राष्ट्रीय मानव अधिकारों के कानूनों को अपना समर्थन देते हुए स्वीकार किया था। इसी के अनुच्छेद 54 तहत बच्चों को कुल 41 विशिष्ट अधिकार दिए गए हैं। इनमें हैं-
- एक बच्चे की परिभाषा
- बच्चों के साथ कोई भेदभाव नहीं
- बाल हितों की रक्षा का अधिकार
- बाल अधिकारों को लागू करना
- मां बाप की जिम्मेदारियों का मार्गदर्शन
- जिंदा रहना और विकसित होने का अधिकार
- नाम और राष्ट्रीयता का अधिकार
- पहचान के संरक्षण का अधिकार
- मां बाप के साथ रहने का अधिकार
- पारिवारिक एकता का अधिकार
- अपहरण से बचाव का अधिकार
- बच्चों के विचार का अधिकार
- अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अधिकार
- वैचारिक एवं धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार
- मिलने जुलने की स्वतंत्रता का अधिकार
- गोपनीयता की रक्षा का अधिकार
- सूचनाओं के उचित साधन का अधिकार
- मां बाप की जिम्मेदारी का अधिकार
- लापरवाही व दुर्व्यवहार से रक्षा का अधिकार
- अनाथ बच्चों की रक्षा का अधिकार
- बच्चों का गोद लेना
- शरणार्थी बच्चों की देखभाल का अधिकार
- दिव्यांग बच्चों के लिए उचित व्यवस्था का अधिकार
- स्वास्थ्य सेवाओं का अधिकार
- स्थानान्तरित बच्चों की नियमित देखभाल का अधिकार
- सामाजिक सुरक्षा का अधिकार
- अच्छे जीवन स्तर का अधिकार
- शिक्षा की व्यवस्था का अधिकार
- शिक्षा सम्पूर्ण विकास के लिये का अधिकार
- अल्पसंख्यक आदिवासी बच्चों की संस्कृति का अधिकार
- खेल और सांस्कृतिक गतिविधियों का अधिकार
- बाल श्रमिकों की सुरक्षा का अधिकार
- नशीले पदार्थों से बचाव का अधिकार
- यौन शोषण से बचाव का अधिकार
- बेचने भगाये जाने पर रोक का अधिकार
- अन्य शोषणों से बचाव का अधिकार
- यातना और दासता पर रोक का अधिकार
- सेना में भर्ती पर रोक का अधिकार
- पुनर्वास और देखरेख के साथ किशोर न्याय का प्रबंध
कुछ अधिकारों को खास तौर पर जानिए
शिक्षा का अधिकार
यह कुछ जरूरी अधिकारों में से एक है, इसके तहत हर बच्चे को शिक्षा पाने का अधिकार है। हर प्रदेश का यह कर्तव्य है कि वह अपने हर बच्चे के लिये प्राथमिक स्तर की शिक्षा बिल्कुल मुफ्त और अनिवार्य करे। राज्यों के लिए यह जरूरी है कि बच्चों को वह माध्यमिक स्कूलों में प्रवेश दिलवाए। अगर संभव हो तो हर बच्चे को उच्च शिक्षा भी दिलवाए। इसके साथ यह भी सुनिश्चित किया जाए कि स्कूलों में अनुशासन बच्चों के आत्मसम्मान को चोट पहुंचाने वाला ना हो। राज्यों का यह कर्तव्य है कि वह ऐसी शिक्षा बच्चों को दे जो उनके जीवन के लिये उनमें समझ, शान्ति और सहनशीलता विकसित करे।
स्वास्थ्य का अधिकार
शिक्षा के बाद जो दूसरा सबसे बड़ा अधिकार है, वह है अच्छे स्वास्थ्य का अधिकार। भारत में बच्चों को उच्चतम स्वास्थ्य और चिकित्सा सुविधाएं पाने का पूरा अधिकार है। हर राज्य को निर्देश है कि वह अपने यहां बच्चों के प्रारंभिक स्वास्थ्य की रक्षा और शिशुओं की मृत्यु दर कम करने पर विशेष बल देगा।
अच्छे जीवन स्तर का अधिकार
41 विशिष्ट अधिकारों में से बच्चों को मिला एक अधिकार यह भी है कि हर बच्चे को अच्छा जीवन स्तर मिले। एच अच्छे जीवन स्तर से मतलब यह है कि जिसमें उसका पर्याप्त मनसिक, शारीरिक, बौद्धिक, नैतिक और सामाजिक विकास हो सके।
दुर्व्यवहार से रक्षा का अधिकार
बच्चे को उपेक्षा,गाली,दुर्व्यवहार से बचाये जाने का अधिकार है। राज्य का यह कर्तव्य है वह बच्चों को हर तरह के दुर्व्यवहार से बचाये। पीड़ित बच्चों के सुधार,उचित उपचार के लिये उचित सामाजिक कार्यक्रम चलाये जाने चाहिए।
किशोर न्याय का अधिकार
यह अधिकार उन बच्चों के लिए है, जिनसे अज्ञानतावश कोई अपराध हो गया हो। तो ऐसे में अपराध करने वाले बच्चों के साथ ऐसा व्यवहार होना चाहिए जिससे उनके आत्मसम्मान, योग्यता, विकास को बल मिले। जो उन्हें समाज के साथ फिर से जोड़े। इसके साथ ही जहां तक संभव हो ऐसे बच्चों को कानूनी कार्यवाहियों या संस्थागत परिवर्तनों से बचाना चाहिए।