देश में स्वास्थ्य और शिक्षा के क्षेत्र ऐेसे स्तंभ हैं जिनकी मजबूती में निजी क्षेत्र का सबसे बड़ा हाथ है। देश के शहरी क्षेत्रों की शिक्षा व्यवस्था में निजी स्कूलों का महत्वपूर्ण योगदान है। लेकिन ग्रामीण भारत में अभी भी ज्यादातर बच्चों को शिक्षा प्रदान करने की जिम्मेदारी सरकारी स्कूलों पर है। शहरी क्षेत्रों में भी निम्न मध्यम वर्गीय परिवारों के लिए सरकारी स्कूल ही एक मात्र सहारा है।
इस बीच एक मीडिया संस्थान की रिपोर्ट में दावा किया गया है कि शिक्षा मंत्रालय ने देश भर के 50% सरकारी स्कूलों का निजीकरण करने के लिए केंद्र को सिफारिश भेजी है। खबर में बताया गया है कि सरकार मंडियों के बाद स्कूलों को ठेकों पर देने की तैयारी कर रही है। इसके तहत पहले अध्यापकों को ठेके पर निजी स्कूलों को सौंपने की तैयारी कर रही है।
कोरोना संकट के दौर में जहां ज्यादातर निजी स्कूलों ने आनलाइन क्लासेस के ढांचे को अपना लिया है। वहीं इंटरनेट और मोबाइल से दूर गरीब तबका जो सरकारी स्कूलों में जाता है, उसके लिए यह खबर चौंकाने वाली है। स्कूलों को निजी हाथों में सौंपने से ऐसे ही छात्र छात्राओं की मुश्किलें बढ़ सकती हैं।
जानिए क्या है खबर का सच
देश की शिक्षा व्यवस्था को लेकर इस बड़ी खबर को लेकर केंद्र सरकार के पत्र सूचना कार्यालय यानि पीआईबी की फैक्ट चेक टीम ने पड़ताल की। जिसमें पाया गया कि मीडिया संस्थान की खबर में किया गया दावा पूरी तरह से फर्जी है। शिक्षा मंत्रालय द्वारा ऐसी कोई सिफारिश नहीं भेजी गई है। न हीं सरकार की इस प्रकार की कोई योजना है।
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