नई दिल्ली। दिल्ली हाईकोर्ट ने बुधवार को केंद्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड (सीबीएसई) द्वारा दसवीं और बारहवीं कक्षा के छात्रों से बोर्ड परीक्षा में पंजीकरण के लिए मांगी गई परीक्षा फीस में बढ़ोतरी के खिलाफ एक याचिका पर नोटिस जारी किया। इस मुद्दे पर पैरेंट्स फोरम फॉर मीनिंगफुल एजुकेशन नामक एक एसोसिएशन की ओर से याचिका दायर की गई थी। याचिका पर सुनवाई करते हुए मुख्य न्यायाधीश डी. एन. पटेल और न्यायमूर्ति प्रतीक जालान की अध्यक्षता वाली हाईकोर्ट की एक खंडपीठ ने सीबीएसई, दिल्ली सरकार और केंद्र सरकार को नोटिस जारी किया है।
वकील पी. एस. शारदा और क्षितिज शारदा के माध्यम से दायर की गई याचिका में सीबीएसई की ओर से परीक्षा शुल्क में की गई दोगुनी वृद्धि को चुनौती दी गई है। याचिका में इस बात पर जोर दिया गया है कि सीबीएसई ने वर्ष 2019-2020 के लिए वर्ष 2017-2018 की तुलना में 10वीं और 12वीं कक्षा की बोर्ड परीक्षा के लिए अपनी परीक्षा शुल्क में दो गुना वृद्धि की और वर्ष 2014-2015 की तुलना में इस शुल्क में कई गुना वृद्धि की गई है।
याचिकाकर्ता ने अपनी याचिका में कहा है कि प्रैक्टिकल विज्ञान और अतिरिक्त विषय विकल्प के मामले में 2400 और एससी/एसटी छात्रों के मामले में 2400 प्रतिशत की वृद्धि कर दी गई है। दलील में कहा गया है कि आर2 (दिल्ली सरकार) के तहत सरकारी और सहायता प्राप्त स्कूलों के गरीब हितधारकों द्वारा मनमाने ढंग से की गई शुल्क वृद्धि को वहन करने में असमर्थ हैं।
दलील में आगे कहा गया है कि यह सामने आया है कि दिल्ली सरकार न केवल पिछले साल के वादे के अनुसार इस मामले को सुलझाने में नाकाम रही है, बल्कि इस साल इसने कठोर शुल्क दायित्व को पूरा करने से इनकार कर दिया है, जिससे इसके स्कूलों में दसवीं और बारहवीं कक्षा के लाखों बच्चों और अभिभावकों को परेशानी का सामना करना पड़ रहा है।
याचिका में कहा गया है कि इससे सीधे तौर पर आर्थिक रूप से कमजोर और समाज के वंचित तबके के बच्चों पर बुरा प्रभाव पड़ेगा।याचिकाकर्ता संगठन ने अदालत से केंद्र सरकार को हस्तक्षेप करने और सीबीएसई को निर्देश देने के लिए कहा है कि शैक्षणिक वर्ष 2020-2021 के लिए दिल्ली सरकार के स्कूलों में पढ़ने वाले बच्चों से शुल्क के मामले में आवश्यक निर्देश पारित करें।
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