EWS वर्ग के लिए आज महत्वपूर्ण दिन है। सुप्रीम कोर्ट के पांच जजों की बेंच ने 3-2 के जजमेंट से EWS आरक्षण के पक्ष में फैसला सुनाते हुए इसे पूरी तरह से वैध करार दिया है। इस फैसले को सुनाने वाले जजों में चीफ जस्टिस यूयू ललित के अलावा जज एस रवींद्र भट, दिनेश माहेश्वरी, जेबी पार्डीवाला और बेला एम त्रिवेदी शामिल रहे हैं। जिन दो जजों ने इस फैसले का समर्थन नहीं किया है उनमें चीफ जस्टिस यूयू ललित और जज एस रवींद्र भट शामिल हैं। इन दोनों जजों ने इस आरक्षण को गलत बताया है। जबकी के बाकी के तीनों जजों ने इस EWS आरक्षण को पूरी तरह से संवैधानिक बताते हुए कहा कि आर्थिक रूप से कमजोर सवर्णों को यह आरक्षण मिलता रहेगा।
कब लागू हुआ था EWS आरक्षण
EWS आरक्षण की व्यवस्था साल 2019 में केंद्र सरकार ने लागू की थी। इसे लागू करने के लिए केंद्र सरकार ने संविधान में 103वां संशोधन किया गया था। 2019 में लागू किए गए EWS कोटा को मौजूदा तमिलनाडु सरकार समेत कई याचिकाकर्ताओं ने संविधान के खिलाफ बताते हुए इसे अदालत में चुनौती दी थी। हालांकि बाद में 2022 में संविधान पीठ का गठन हुआ और 13 सिंतबर को चीफ जस्टिस यूयू ललित, जस्टिस दिनेश महेश्वरी, जस्टिस रवींद्र भट्ट, जस्टिस बेला एम त्रिवेदी और जस्टिस जेबी पादरीवाला की संविधान पीठ ने इस पर सुनवाई शुरू कर दी थी।
याचिकाकर्ताओं ने क्या दिया है दलील
इस मामले में याचिकाकर्ताओं ने दलील दी है कि EWS आरक्षण का मकसद सामाजिक भेदभाव झेलने वाले वर्ग का उत्थान था। लेकिन अगर इसका आधार गरीबी है तो इसमें SC,ST और OBC को भी जगह मिले। इसके साथ ही याचिकाकर्ताओं ने अपनी दलील में कहा है कि EWS कोटा 50 फीसदी आरक्षण की सीमा का उल्लंघन करता है।
सरकार का क्या है इस पर पक्ष
EWS आरक्षण पर सरकार की ओर से कहा गया है कि EWS तबके को सामाजिक और आर्थिक रूप से समानता दिलाने के लिए ये व्यवस्था जरूरी है। केंद्र सरकार की ओर से इस पर कहा गया कि इस व्यवस्था से ना तो आरक्षण पर और ना ही किसी दूसरे वर्ग को इसका नुकसान है। वहीं 50 फीसदी आरक्षण की सीमा की बात पर केंद्र सरकार का कहना है कि जिस 50 प्रतिशत सीमा की बात की जा रही है, वो कोई संवैधानिक व्यवस्था नहीं है। सरकार ने कहा कि ये सुप्रीम कोर्ट के एक फैसले से आया है, तो इस स्थिति में ऐसा नहीं है कि इसके परे जाकर आरक्षण नहीं दिया जा सकता है।
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