दिल्ली हाईकोर्ट के सामने हाल ही में एक जनहित याचिका सुनवाई के लिए आई, जिसमें केवल कॉमन लॉ एडमिशन टेस्ट (CLAT-UG), 2023 के आधार पर पांच वर्षीय इंटेग्रेटेड लॉ कोर्सेज में एडमिशन देने के दिल्ली यूनिवर्सिटी के फैसले को चुनौती दी गई। दिल्ली यूनिवर्सिटी के वकील द्वारा याचिका पर जवाब देने के लिए समय मांगने के बाद मुख्य न्यायाधीश सतीश चंद्र शर्मा और न्यायमूर्ति संजीव नरूला की पीठ ने इसे 17 अगस्त को आगे की सुनवाई के लिए सूचीबद्ध किया।
एडमिशन की मांग
याचिका में शिक्षा मंत्रालय (एमओई) द्वारा शुरू की गई कॉमन यूनिवर्सिटी एंट्रेंस टेस्ट (सीयूईटी) यूजी 2023 के माध्यम से पांच वर्षीय इंटेग्रेटेड लॉ कोर्सेज में एडमिशन की मांग की गई है। इसमें कहा गया है कि एकेडमिक ईयर 2023-24 के लिए सेंट्रल यूनिवर्सिटीज में सभी ग्रेजुएट प्रोग्रामों में एडमिशन के लिए MoE द्वारा CUET-UG 2023 की शुरुआत की गई थी।
शिक्षा के अधिकार का उल्लंघन
दिल्ली यूनिवर्सिटी के कैंपस लॉ सेंटर में कानून के छात्र याचिकाकर्ता प्रिंस सिंह ने दावा किया कि यूनिवर्सिटी ने विवादित नोटिफिकेशन जारी करते समय "पूरी तरह से अनुचित और मनमानी शर्त" थोपी है कि पांच वर्षीय इंटेग्रेटेड लॉ कोर्सेज में एडमिशन पूरी तरह से CLAT- UG 2023 रिजल्ट में योग्यता के आधार पर आधारित होगा। जो संविधान के आर्टिकल 14 के तहत समानता के अधिकार और आर्टिकल 21 के तहत शिक्षा के अधिकार का उल्लंघन है। याचिका में कहा गया है कि शर्त में किसी भी समझदार अंतर का अभाव है और लॉ फैकल्टी में पांच वर्षीय एकीकृत कानून पाठ्यक्रमों में एडमिशन के उद्देश्य के साथ इसका कोई तर्कसंगत संबंध नहीं है।
(इनपुट- पीटीआई)
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