Career Planning: आजकल के पेरेंट्स अपने बच्चों के भविष्य को लेकर बेहद चिंतित रहते हैं। वो अपने बच्चों की फ्यूचर प्लानिंग उनके बचपन से ही शरू कर देते हैं. कुछ पेरेंट्स बच्चों की परवरिश के दौरान कुछ ज्यादा ही सख्त बर्ताव रखते हैं, जिससे बच्चों का मानसिक विकास भी कई तरह से प्रभावित होता है। ऐसा कई बार होता है कि बच्चे पेरेंट्स के मन मुताबिक परफॉर्म नहीं कर पाते हैं। और ऐसे में कई पेरेंट्स अपनी इच्छाओं को अपने बच्चों पर हावी होने देते हैं। लेकिन ऐसा करना बहुत गलत है।
कोशिश करें कि बच्चों पर अपनी अनावश्यक इच्छाएं न थोपें, इससे बच्चों का कॉन्फिडेंस कई हद तक कम हो जाता है। अगर बच्चों ने इस बार परफेक्ट स्कोर नहीं किया तो उन्हें अगली बार बेहतर परफॉर्म करने के लिए मोटिवेट करना ज़्यादा ज़रूरी है। इसके अलावा परेसटस को ऐसी कई टिप्स के बारे में जानकारी होनी चाहिए जिससे उनके बच्चों का फ्यूचर सफल रहे।
समय का महत्व
बच्चों को ये समझाना बेहद ज़रूरी है कि समय कितना कीमती है। साथ ही हर समय एक जैसा कभी भी नहीं रहता। समय अच्छा हो या फिर बुरा बीतता जरूर है, अगर आज बुरा समय है तो कल अच्छा समय ज़रूर आएगा। बच्चों को अगर मोटिवेशन कहानियों के साथ समय की इंपोर्टेंस समझाई जाए तो उनके लिए ये और भी इंटरेस्टिंग हो जाएगा।
एजुकेशनल गोल
पेरेंट्स होने के नाते सिर्फ़ बच्चों की पढ़ाई मैनेज करना काफी नहीं है। बच्चों की पढ़ाई में उनके साथ पूरी ईमानदारी से भागीदारी करें। बचपन से ही उनकी लाइफ और एजुकेशनल गोल सेट करें और ये जानने की कोशिश करें कि वो बड़े होकर क्या करना चाहतें हैं। बच्चों के ड्रीम को पूरा करने में उनकी सहायता करें.
दोस्ती में सब कुछ सिखाएं
बच्चे अपने पेरेंट्स से दूर हैं या पास ये पूरी तरह से पेरेंट्स का व्यवहार पर निर्भर करता है. कुछ पेरेंट्स बच्चों के साथ एक दोस्त की तरह व्यवहार करते हैं, तो वहीं कुछ पेरेंट्स अपने बच्चों के प्रति स्ट्रिक्ट भी होते हैं। बच्चों के साथ अगर एक दोस्त की तरह बेथ कर उन्हें पढ़ाया जाए और उनकी हर प्रॉब्लम को सॉल्व करने में उनकी मदद करें। इस दौरान कोशिश करें की बच्चो पर गुस्सा न करें।
स्मार्ट गैजेट्स के साथ करवाएं पढ़ाई
आजकल के बच्चों को हर चीज प्रैक्टिकली सीखने की जिज्ञासा ज़्यादा रहती है. वो रटी रटाई चीजें भी अब बहुत जल्द भूल जाते हैं। इसी के चलते कई बार बच्चे इस तरह के सवाल पूछ लेते हैं कि उसका जवाब पेरेंट्स के पास भी नहीं होता है। ऐसे में पेरेंट्स इस बात को स्वीकार करें कि उन्हें जवाब नहीं आता है और बच्चों के साथ उनके सवाल का जवाब ढूंढे। बच्चों को चीज़े रटाने की जगह उन्हें गैजेट्स से या मॉडल बनाकर समझाएं, ताकि सिखाई और दिखाई गयी हर चीज़ उनके ज़हन में याद हो जाए।
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