PFI: पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया पर केंद्र सरकार के द्वारा प्रतिबंध लगाने के बाद विभिन्न राज्यों में उनके सदस्यों पर पुलिस की कार्रवाई जारी है। दिल्ली पुलिस ने सोमवार को PFI के चार सदस्यों को गिरफ्तार किया है। दिल्ली पुलिस ने पीएफआई पर प्रतिबंध लगाने के बाद पहली गिरफ्तारियां की हैं।
मीडिया में आई रिपोर्ट के अनुसार दिल्ली पुलिस ने सोमवार को PFI के 4 सदस्यों की गिरफ्तारी की। हालांकि गिरफ्तार किये गए लोगों की पहचान गुप्त रखी गई है। बता दें कि पुलिस ने कुछ दिन पहले पीएफआई के खिलाफ शाहीनबाग थाने में गैर-कानूनी गतिविधि रोकथाम अधिनियम (यूएपीए) के तहत मामला दर्ज किया था।
शाहीन बाग़ इलाके में किया था हंगामा
गौरतलब है कि सरकार ने पीएफआई पर 28 सितंबर को पांच साल के लिए प्रतिबंध लगा दिया था. इसके बाद पीएफआई के समर्थकों व सदस्यों ने शाहीनबाग इलाके में हंगामा किया था। दिल्ली पुलिस ने इसे लेकर 30 लोगों को हिरासत में लिया था। दिल्ली पुलिस ने जामिया नगर, शाहीनबाग व न्यू फ्रेंड्स कॉलोनी इलाके में धारा 144 लगा दी थी। दक्षिण-पूर्व जिला पुलिस अधिकारियों के अनुसार इस मामले में पीएफआई के खिलाफ शाहीनबाग थाने में यूएपीए के तहत मामला दर्ज किया गया था। पीएफआई का हैड ऑफिस शाहीनबाग में था, इस मामले की जांच एसीपी बदरपुर जोगिंदर जून को सौंपी गई है।
Image Source : fileAction continues on members of PFI
गृह मंत्रालय ने 28 सितंबर को PFI को किया बैन
आपको बता दें कि, गृह मंत्रालय ने 28 सितंबर को पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया (PFI) और उसके सहयोगियों को गैरकानूनी गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम, 1967 के तहत पांच साल के लिए बैन कर दिया। यूपी, कर्नाटक और गुजरात की सरकारों के आग्रह और एनआईए, ईडी, पुलिस की राष्ट्रव्यापी कार्रवाई के तुरंत बाद बैन लगा दिया गया।
पीएफआई की उत्पत्ति और विचारधारा
पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया यानी PFI 22 नवंबर 2006 को तीन मुस्लिम संगठनों के मिलने से बना था। इनमें केरल का नेशनल डेमोक्रेटिक फ्रंट (NDF), कर्नाटक फोरम फॉर डिग्निटी (Karnataka Forum for Dignity) और तमिलनाडु का मनिता नीति पसरई साथ आए। 16 फरवरी, 2007 को बेंगलुरु में तथाकथित 'एम्पॉवर इंडिया कॉन्फ्रेंस' के दौरान एक रैली में पीएफआई के गठन की औपचारिक रूप से घोषणा की गई थी।
पीएफआई ने कभी चुनाव नहीं लड़ा
2009 में सोशल डेमोक्रेटिक पार्टी ऑफ इंडिया (SDPI) पीएफआई से बाहर हो गई, जिसका उद्देश्य मुसलमानों, दलितों, पिछड़े वर्गों और आदिवासियों सहित सभी नागरिकों की उन्नति और समान विकास और सभी नागरिकों के बीच सत्ता को निष्पक्ष रूप से शेयर करना था। पीएफआई एसडीपीआई की राजनीतिक गतिविधियों के लिए जमीनी कार्यकर्ताओं का मुख्य प्रदाता है। जबकि पीएफआई ने कभी चुनाव नहीं लड़ा।
पीएफआई ने खुद को अल्पसंख्यकों के संगठन के रूप में प्रस्तुत किया
सिमी पर प्रतिबंध के बाद उभरे, पीएफआई ने खुद को अल्पसंख्यकों और समाज के हाशिए के वर्गों के अधिकारों का समर्थन करने के लिए एक संगठन के रूप में प्रस्तुत किया। इसने अक्सर मुख्यधारा की पार्टियों की कथित जनविरोधी नीतियों को निशाना बनाया, हालांकि ये पार्टियां (कर्नाटक में कांग्रेस, बीजेपी और जद-एस) एक-दूसरे पर चुनावों के दौरान मुस्लिम वोटों को मजबूत करने के लिए पीएफआई से समर्थन लेने का आरोप लगाते रहे।