सट्टा बाजार के खेल में कैसे 'तितली-कबूतर' बनी दिल्ली पुलिस के लिए सिरदर्द, जानें पूरा मामला
एक पूर्व सट्टा आयोजक ने बताया कि आयोजकों के बीच गैंगवार एक गंभीर समस्या है क्योंकि इससे सड़कों पर खून-खराबा होता है। आयोजकों के साथ पुलिस की मिलीभगत दिल्ली पुलिस के लिए एक पुरानी समस्या रही है।
नई दिल्लीः केवल लॉरेंस बिश्नोई या हिमांशु भाऊ जैसे खूंखार अपराधी ही शहर के पुलिस के लिए परेशानी का सबब नहीं हैं। दिल्ली पुलिस अब 'तितलियों' और 'कबूतरों' से जुड़े मुद्दों से भी जूझ रही है। सट्टा (सट्टेबाजी) रैकेट के लिए जाना जाने वाला 'तितली कबूतर' खेल और इसके आयोजक पुलिस बल के लिए नया सिरदर्द बन गए हैं। टाइम्स ऑफ इंडिया के अनुसार, पिछले सप्ताह, पुलिस ने मध्य दिल्ली में ऐसे दो मॉड्यूल का भंडाफोड़ किया और दो दर्जन लोगों को गिरफ्तार किया, जिनके पास से 2.2 लाख रुपये नकद, 39 मोबाइल फोन, 46 डायरियां, 13 कैलकुलेटर, आठ पेन और तीन मार्कर जब्त किए गए।
पुलिस ने दी ये जानकारी
पुलिस ने 'तितली कबूतर' के कई चार्ट, बैनर और ताश के पत्तों के सेट भी जब्त किए। यहां तितली और कबूतर कोई पक्षी नहीं बल्कि एक कोड वर्ड है। इसे सट्टा रैकेट चलाने वाले लोग इस कोड वर्ड के रुप में इस्तेमाल कर रहे हैं। एक अधिकारी ने कहा कि यह सट्टा बाजार का खेल कुछ हद तक रूलेट जैसा है। दुकान के काउंटर पर एक चार्ट होता है। इसमें तितली, भंवरा, दीया, सूरज, कबूतर की तस्वीरें होती हैं। खिलाड़ी अपनी पसंद की तस्वीर पर पैसे लगाते हैं। गेम का मालिक एक चिट निकालता है। अगर खिलाड़ी की तस्वीर चिट में आती है, तो उसे लगाई गई रकम का 10 गुना दिया जाता है।
अलग-अलग इलाकों में अलग है नाम
'तितली कबूतर' खेल के अलग-अलग इलाकों में अलग-अलग नाम हैं। इसे 'पंती-पकौली' या 'पप्पू प्ले' के नाम से भी जाना जाता है। यह मुख्य रूप से भारत, नेपाल और बांग्लादेश में खेला जाता है। कुछ जगहों पर इसे 'तितली-भंवरा' भी कहा जाता है। एक पुलिस अधिकारी ने बताया कि जीतने वाले को अगर उसकी पसंद की तस्वीर सामने आती है, तो उसे अपनी लगाई गई रकम का 10 गुना मिलना चाहिए, लेकिन वास्तव में ऐसा इतनी आसानी से नहीं होता। पैसे दरअसल भीड़ में से एक या दो लोगों को दिए जाते हैं, जो असल में गेम के मालिक के आदमी होते हैं। इस तरह खिलाड़ी धोखा खा जाते हैं और पैसे हार जाते हैं।
पूर्व पुलिस अधिकारियों ने दी ये जानकारी
दिल्ली पुलिस के सेवानिवृत्त अधिकारियों के अनुसार, पहले ये खेल गांवों में लगने वाले मेलों में आकर्षण का केंद्र होते थे। जैसे-जैसे ये लोकप्रिय होते गए, जुआरियों ने इसे संगठित तरीके से पैसे कमाने के साधन के रूप में इस्तेमाल करना शुरू कर दिया। शहर में जुआरियों द्वारा खेला जाने वाला एक और ऐसा ही सट्टा खेल है 'टेबल कूपन'। इस खेल में तस्वीरों के साथ कई पर्चियां होती हैं और परिणाम तुरंत मौके पर घोषित किए जाते हैं। ये खेल सुबह 10 बजे शुरू होते हैं और देर रात तक चलते हैं।
हालांकि इनमें से ज़्यादातर मार्केट कॉम्प्लेक्स के पीछे या सुनसान गली या फुटपाथ जैसी जगहों पर छोटे-छोटे सेट-अप के ज़रिए चलाए जाते हैं, लेकिन बड़े सेट-अप भी होते हैं। इन रैकेट में ज़्यादा आयोजक और खिलाड़ी शामिल होते हैं। इन रैकेट के मास्टरमाइंड अक्सर ख़तरनाक अपराधी होते हैं जो अपने नेटवर्क को फ़ंड करने के लिए सट्टा रैकेट का इस्तेमाल करते हैं।
इसकी वजह से बढ़ते हैं अपराध
समस्या तब पैदा होती है जब लोग या तो बहुत ज़्यादा नुकसान उठाते हैं या आयोजकों पर धोखाधड़ी का आरोप लगाते हैं। ऐसे में कई लोग पुलिस को सूचना दे देते हैं और फिर पुलिस छापेमारी करती है। कई बार, हारने वाले कुछ लोगों के पास हथियार होते हैं या वे आदतन अपराधी होते हैं और आयोजकों से भिड़ने की कोशिश करते हैं। जब आयोजक हारने वाले खिलाड़ी से पैसे वसूलने की कोशिश करते हैं या किसी नाराज खिलाड़ी का मुकाबला करने की कोशिश करते हैं, तो भी चीजें गड़बड़ा जाती हैं। अगर गोली चल जाती है तो परेशानी खड़ी हो जाती है।