Coronavirus Lockdown: पहली ट्रेन दिल्ली पहुंची, यात्रियों के सामने आगे की यात्रा के लिए वाहन मिलने का संकट
देश के विभिन्न हिस्सों में फंसे लोगों को लाने के लिए आंशिक रूप से रेल सेवा शुरू होने के बाद बुधवार को नयी दिल्ली पहुंची पहली ट्रेन से गुजरात और राजस्थान से सैकड़ों यात्री यहां पहुंचे और आगे की यात्रा के लिए स्टेशन के बाहर परिवहन के साधन तलाशते नजर आए।
नयी दिल्ली: देश के विभिन्न हिस्सों में फंसे लोगों को लाने के लिए आंशिक रूप से रेल सेवा शुरू होने के बाद बुधवार को नयी दिल्ली पहुंची पहली ट्रेन से गुजरात और राजस्थान से सैकड़ों यात्री यहां पहुंचे और आगे की यात्रा के लिए स्टेशन के बाहर परिवहन के साधन तलाशते नजर आए। अहमदाबाद, पटना आौर मुंबई से विशेष ट्रेनें बुधवार को सुबह नौ बजे नयी दिल्ली रेलवे स्टेशन पहुंचीं। भारतीय रेलवे ने 12 मई से ऐसी यात्री ट्रेन सेवाओं की शुरुआत की। कोरोना वायरस के कारण लगाए लॉकडाउन के कारण हफ्तों से ये सेवाएं बंद चल रही थीं। रेलवे अधिकारियों ने बताया कि सभी यात्रियों की अनिवार्य जांच की गई तथा प्रवेश एवं निकास केंद्रों और ट्रेनों में उन्हें सैनिटाइजर दिया गया।
ज्यादातर यात्रियों की रेल यात्रा सुचारू रही लेकिन घर पहुंचने की उनकी खुशी उस समय फीकी पड़ गई जब वे स्टेशन के बाहर सड़कों पर उतरे और उन्हें आगे की यात्रा के लिए परिवहन का कोई साधन नहीं मिला। आगे की यात्रा के लिए उन्हें कोई बस, कैब या परिवहन का कोई अन्य साधन नहीं मिला। भारी भरकम सामान लिए कई यात्री रेलवे स्टेशन के बाहर असंमजस की स्थिति में खड़े रहे जबकि कुछ स्थानीय कैब चालकों को विभिन्न राज्यों में उनके घरों तक ले जाने के लिए मनाने की कोशिश करते दिखे।
एक व्यक्ति ने स्टेशन पर पहुंचे एक चालक से कहा, ‘‘अगर तुम हमें रुड़की (करीब 200 किलोमीटर दूर) लेकर चलोगे तो हम तुम्हें 6,000 रुपये तक दे सकते हैं।’’ यह कैब चालक एक परिवार को लेने पहुंचा था जिसने पहले से ही उसकी टैक्सी बुक कराई थी। एक अन्य व्यक्ति एक रिक्शा चालक को उसे आनंद विहार तक ले जाने के लिए कहता दिखाई दिया। अपनी पत्नी और तीन साल के बेटे के साथ साबरमती ट्रेन से पहुंचने वाले विष्णु (24) ने कहा कि उसने अहमदाबाद स्टेशन तक पहुंचने के लिए एक टेम्पो चालक को 1,800 रुपये दिए।
उसने कहा, ‘‘मेरे एक रिश्तेदार ने 1,750 रुपये में हमारे लिए टिकट बुक कराया। हमें पश्चिम दिल्ली में रवि नगर जाना था लेकिन घर पर परिवार के पास कोई वाहन नहीं है।’’ उत्तम नगर निवासी रत्नाकर ने बताया कि उसे दिल्ली में सार्वजनिक परिवहन का साधन उपलब्ध न होने के बारे में कोई अंदाजा नहीं था। वह बिहार के बेगूसराय जिले में अपने गांव गया था। लगभग 60 वर्ष की आयु के उसके पिता ने कहा कि अगर वे पैदल चलना शुरू करेंगे तो शाम तक घर पहुंच जाएंगे। उन्होंने कहा, ‘‘जब कोई बस या मेट्रो नहीं चलाई तो उन्होंने ट्रेन चलाना शुरू क्यों कर दिया?’’
अहमदाबाद से पहली ट्रेन से यहां पहुंचे अविरल माथुर ने कहा कि दिल्ली सरकार को विशेष ट्रेनों से यात्रा कर रहे लोगों के लिए कम से कम बसें तो चलानी चाहिए थी। उन्होंने कहा, ‘‘कोई निजी टैक्सी मिलना तो नामुमकिन सा है और अगर आपको मिल भी गई तो वे बहुत ज्यादा किराया ले रहे हैं।’’ मुंबई से यहां पहुंचे मोहम्मद तौफीक आलम (26) ने कहा कि यह निराशाजनक है कि केंद्र या दिल्ली सरकार ने उन लोगों के बारे में नहीं सोचा जिन्हें दिल्ली से अपने गृह नगर की यात्रा करनी पड़ेगी। कुछ महिलाएं अपने बच्चों के लिए पानी मांगने के वास्ते पुलिसकर्मियों से मदद मांगते हुए भी दिखीं।
मुंबई से लौटे सिराज अली ने कहा, ‘‘लोगों के लिए पानी, भोजन या शौचालय का कोई इंतजाम नहीं है जबकि उन्हें अपने घर पहुंचने से पहले अब भी सैकड़ों किलोमीटर की दूरी तय करनी पड़ेगी।’’ बढ़ई का काम करने वाले अली और उनके दो दोस्त घर जाने के विकल्पों पर चर्चा कर रहे हैं। उन्होंने कहा, ‘‘हमारे पास दो महीनों से काम नहीं है। हमारे नियोक्ता ने हमें पैसे नहीं दिए। हमने अपने दोस्तों और परिवार वालों से कुछ पैसा भेजने के लिए कहा था ताकि हम ट्रेन की टिकट खरीद सकें।’’
अली ने कहा, ‘‘हमें मालूम नहीं था कि दिल्ली से कोई बस नहीं मिलेगी। अब बरेली के लिए बस या ट्रेन सेवाएं बहाल होने तक फुटपाथ ही हमारा घर होगा।’’ जयपुर के एक होटल में काम करने वाले 14 लोगों का समूह भी ऐसी ही परेशानी में घिरा रहा। उत्तराखंड में खटीमा के अशोक टम्टा (22) ने कहा कि उन्हें कोई अंदाजा नहीं है कि वह कैसे अपने घर पहुंचेंगे। टम्टा की आठ अप्रैल की शादी थी। उन्होंने बताया कि जयपुर के जिस होटल में वह काम करता था वह बंद हो गया जिससे वह बेरोजगार हो गया। उसने कहा, ‘‘हमारे पास वापसी के अलावा कोई विकल्प नहीं था। जब ट्रेन सेवाएं शुरू हुई तो हमने एक बार सोचा भी नहीं और टिकट बुक करा लिया तथा यात्रा के लिए तैयार हो गए।’’
पिथौरागढ़ के उसके दोस्त और सहकर्मी दीपक कुमार ने कहा कि अगर उन्हें परिवहन का कोई साधन नहीं मिला तो वह सड़कों पर सोएंगे और पैदल चलकर अपने गृह राज्य पहुंचेंगे। जयपुर में काम करने वाले चेन्नई के तीन लोगों का समूह भी इनमें से एक था जो स्टेशन के बाहर इंतजार कर रहा था। फुरकान (26) ने बताया कि सड़क पर बाहर इंतजार करने के अलावा उनके पास कोई विकल्प नहीं है। सिर्फ इतनी राहत है कि आसमान में बादल छाए हैं। उसके दोस्त गिलानी (26) ने बताया कि उन्होंने बीती रात भोजन किया था और अब उनके पास खाने को कुछ नहीं है। उन्होंने कहा, ‘‘हालात मुश्किल होते जा रहे हैं लेकिन हमें भरोसा है कि हम अपने घर पहुंच जाएंगे।’’