दिल्ली दंगे: उमर खालिद को कोर्ट ने दी जमानत, कहा- किसी को अनिश्चितकाल तक जेल में नहीं रखा जा सकता
फरवरी 2020 में दिल्ली में हुए दंगों के दौरान खजूरी खास इलाके में हुई हिंसा के मामले में JNU के पूर्व छात्रनेता उमर खालिद को अदालत ने गुरुवार को जमानत दे दी।
नई दिल्ली: फरवरी 2020 में दिल्ली में हुए दंगों के दौरान खजूरी खास इलाके में हुई हिंसा के मामले में JNU के पूर्व छात्रनेता उमर खालिद को अदालत ने गुरुवार को जमानत दे दी। कड़कड़डूमा स्थित अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश विनोद यादव की कोर्ट ने खालिद को जमानत देते हुए कहा कि केवल हिंसा में शामिल लोगों की पहचान के लिए खालिद को अनिश्चिकाल तक जेल में रखा नहीं जा सकता। बता दें कि दिल्ली पुलिस ने पिछले साल नवंबर में सप्लीमेंट्री चार्जशीट दायर कर उमर खालिद को इस मामले में आरोपी बनाया था। दंगों से जुड़े मामले में उमर खालिद को पहली बार जमानत मिली है।
अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश विनोद यादव ने आदेश में कहा, ‘वादी (खालिद), घटना के दिन वारदात स्थल से संबद्ध किसी सीसीटीवी फुटेज/वायरल वीडियो में नजर नहीं आ रहा है। मौके पर मौजूद रहने के तौर पर वादी की शिनाख्त किसी सरकारी गवाह या पुलिस के गवाह के जरिये नहीं हो पाई है।’ अदालत ने कहा कि यहां तक कि वादी के मोबाइल फोन की ‘कॉल डिटेल रिकार्ड’ (CDR) घटना के दिन वारदात स्थल पर नहीं पाई गई। अदालत ने कहा कि वादी को महज उसके खुद के बयान के आधार पर इस विषय में संलिप्त कर दिया गया। अदालत ने अभियोजन की यह दलील भी खारिज कर दी कि खालिद मोबाइल फोन पर सह-आरोपी ताहिर हुसैन और खालिद सैफी के निरंतर संपर्क में था।
इस मामले में प्राथमिकी कांस्टेबल संग्राम सिंह के बयान पर दर्ज की गई थी। हालांकि, खालिद को इस मामले में जमानत मिल गई है लेकिन जेएनयू के इस पूर्व छात्र को अभी जेल में ही रहना पड़ेगा। दरअसल, खालिद कुछ अन्य मामलों में भी आरोपी है, जिनमें एक मामला गैर कानूनी गतिविधि (रोकथाम) अधिनियम के तहत आपराधिक साजिश का है।
बता दें कि दिल्ली पुलिस ने फरवरी में शहर के उत्तरी-पूर्वी हिस्से में हुई सांप्रदायिक हिंसा के 'षड्यंत्र' से संबंधित मामले में नवंबर 2020 में उमर खालिद के खिलाफ पूरक आरोप पत्र दायर किया था। पुलिस ने उमर खालिद, शरजील इमाम और एक अन्य आरोपी फैजान खान के खिलाफ कठोर गैर-कानूनी गतिविधियां (निवारण) अधिनियम की संबंधित धाराओं के तहत दर्ज इस मामले में अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश अमिताभ रावत के समक्ष आरोप पत्र दाखिल किया था। उनपर, दंगे, गैर-कानूनी तरीके से एकत्रित होने, आपराधिक साजिश, हत्या, धर्म, भाषा, जाति इत्यादि के आधार पर शत्रुता को बढ़ावा देने और भारतीय दंड संहिता की अन्य धाराओं के तहत आरोप लगाए गए हैं। इन अपराधों के तहत अधिकतम मृत्युदंड की सजा दी जा सकती है।
मुख्य आरोप पत्र सितंबर में पिंजरा तोड़ की सदस्यों तथा जेएनयू की छात्राओं देवांगना कालिता और नताशा नरवाल, जामिया मिल्लिया इस्लामिया के छात्र आसिफ इकबाल तन्हा और छात्र कार्यकर्ता गुलफिशा फातिमा के खिलाफ दायर किया गया था। अन्य आरोपी जिनका आरोप पत्र में नाम है उनमें कांग्रेस की पूर्व पार्षद इशरत जहां, जामिया समन्वय समिति के सदस्य सफूरा जरगर, मीरान हैदर और शिफाउर्रहमान, आम आदमी पार्टी के निलंबित विधायक ताहिर हुसैन, कार्यकर्ता खालिद सैफी, शादाब अहमद, तसलीम अहमद, सलीम, अहमद, सलीम मलिक, मोहम्मद सलीम खान और अतहर खान शामिल हैं। उत्तर-पूर्वी दिल्ली में नागरिकता कानून में संशोधनों के समर्थकों और विरोधियों के बीच हिंसा के बाद 24 फरवरी को सांप्रदायिक झड़पें शुरू हुई थीं, जिसमें 53 लोगों की मौत हो गई थी और करीब 200 लोग घायल हो गए थे।