Delhi News| नौकरशाही की लालफीताशाही औपनिवेशिक मानसिकता का प्रतीक: दिल्ली हाई कोर्ट
Delhi News: दिल्ली हाई कोर्ट ने कहा है कि नौकरशाही की लालफीताशाही औपनिवेशिक मानसिकता है और एक विकसित राष्ट्र बनने में यह सबसे बड़ी बाधा है।
Delhi News: दिल्ली हाई कोर्ट ने कहा है कि नौकरशाही की लालफीताशाही औपनिवेशिक मानसिकता है और एक विकसित राष्ट्र बनने में यह सबसे बड़ी बाधा है। अदालत ने इस बात का उल्लेख किया कि यह उचित समय है कि इस तरह की मानसकिता छोड़ दी जाए और नागरिकों को भारी नुकसान पहुंचाने वाली प्रवृत्तियों से मुक्त कराया जाए। हाई कोर्ट की यह कड़ी टिप्पणी एक किसान की याचिका पर सुनवाई के दौरान आई, जिसकी एक वैकल्पिक भूखंड आवंटित करने की अर्जी दिल्ली विकास प्राधिकरण (DDA) के पास 35 वर्षों से लंबित है।
'न्यायपालिका पर बढ़ गया है बोझ'
अदालत ने कहा कि यह परेशान करने वाला है कि इस तरह का रुख संबद्ध अधिकारियों ने अख्तियार किया और कर्तव्य निवर्हन में उनकी नाकामी देशभर के उच्च न्यायालयों में कई याचिकाएं दायर किए जाने का कारण बनी हैं। इससे अदालतों में लंबित मामलों की संख्या बढ़ गई है और न्यायपालिका पर बोझ बढ़ गया है। न्यायमूर्ति चंद्रधारी सिंह ने सोमवार को जारी किये गए एक आदेश में कहा, ‘‘आज, भारत अपनी आजादी का अमृत काल मना रहा है। नौकरशाही की लालफीताशाही औपनिवेशिक मानसिकता का प्रतीक है और लक्ष्य को हासिल करने में एक बड़ी बाधा है। ’’
'सिस्टम लोगों की शिकायतों को लेकर बहुत कम परेशान है'
हाई कोर्ट ने कहा कि उसने अपने पहले के आदेश में यह अफसोसजनक टिप्पणी की थी कि स्थिति एक दुखद हालात को दर्शाती है। साथ ही, यह न्यायपालिका की त्रासदी है कि इस देश के नागरिकों का प्रतिनिधित्व महज कागज पर सिमट कर रहा गया है और प्रणाली का अपनी मंद गति से बढ़ना जारी है। वह (प्रणाली) लोगों की शिकायतों को लेकर बहुत कम परेशान है। अदालत ने कहा कि नतीजतन, उनकी अर्जियां दशकों तक फाइल के अंदर ही रह गईं।
अदालत ने छह हफ्तों का दिया वक्त
उल्लेखनीय है कि ईश्वर सिंह नाम के एक किसान ने उच्च न्यायालय का रुख कर कहा था कि मैदानगढ़ी में उसकी जमीन का डीडीए ने 1987 में अधिग्रहण कर लिया था। हालांकि उसे मुआवजा मिल गया था लेकिन एक वैकल्पिक भूखंड के लिए उसकी अर्जी अब तक लंबित है। उच्च न्यायालय ने अगस्त में अपने आदेश में अधिकारियों को अर्जी पर 15 दिनों के अंदर फैसला करने का निर्देश देते हुए कहा था कि ऐसा करने में नाकाम रहने पर संबद्ध अधिकारियों को खुद को अदालत के समक्ष उपस्थित करना होगा। अदालत ने कहा कि उसकी टिप्पणी के बावजूद वे किसान की अर्जी पर फैसला करने में नाकाम रहें और इस पर ध्यान नहीं दिया गया, जबकि संबद्ध अधिकारियों को आत्मावलोकन करना चाहिए था। मंगलवार को डीडीए के उपाध्यक्ष और सचिव, भूमि एवं भवन विभाग अदालत में पेश हुए, जिसने उन्हें अर्जी पर फैसला करने के लिए छह हफ्तों का वक्त दिया।