Delhi News: दिल्ली हाईकोर्ट ने एक गर्भवती अविवाहित महिला को अबॉर्शन कराने की अनुमति देने से शुक्रवार को मना कर दिया। कोर्ट ने महिला को ये कहते हुए मना किया कि असल में ये भ्रूण हत्या के समान है। चीफ जस्टिस सतीश चंद्र शर्मा और न्यायमूर्ति सुब्रह्मण्यम प्रसाद की पीठ ने गर्भपात की अनुमति मांगने वाली महिला की याचिका पर शुक्रवार को सुनवाई की। इस दौरान कोर्ट ने सुझाव दिया कि महिला को बच्चे को जन्म देने तक "कहीं सुरक्षित" रखा जाए और उसके बाद बच्चे को गोद दिया जा सकता है।
"गोद लेने के लिए लोगों की लंबी कतार"
23 सप्ताह की अविवाहित महिला की याचिका पर पीठ ने कहा, "हम यह सुनिश्चित करेंगे कि लड़की को कहीं सुरक्षित रखा जाए और वह बच्चे को जन्म दे सकती है और उसे छोड़ भी सकती है। गोद लेने के लिए लोगों की लंबी कतार है।" अदालत ने कहा कि 36 सप्ताह के गर्भावस्था के लगभग 24 हफ्ते पूरे हो गए हैं। हाईकोर्ट ने कहा, "हम आपको बच्चे की हत्या करने की अनुमति नहीं देंगे। हम माफी चाहते हैं। यह असल में भ्रूण हत्या करने के समान होगा।"
"अविवाहित महिलाओं के लिए गर्भपात कानून भेदभावपूर्ण"
इस दौरान याचिकाकर्ता की ओर से पेश वकील ने कहा कि महिला अविवाहित होने के कारण बहुत मानसिक पीड़ा में है और वह बच्चे का लालन-पालन करने की स्थिति में नहीं है। वकील ने यह भी कहा कि अविवाहित महिलाओं के गर्भपात कराने में कानून में रोक भेदभावपूर्ण है। इस पर उच्च न्यायालय ने कहा कि वह याचिकाकर्ता को बच्चे का लालन-पालन करने पर मजबूर नहीं कर रहा है और उसने वकील से दोपहर के भोजन के बाद उसके सुझावों पर अपनी राय रखने के लिए कहा।
न्यायाधीश बोले- मैं भी मदद करूंगा
अदालत ने कहा, "हम उन्हें बच्चे का लालन-पालन करने के लिए विवश नहीं कर रहे हैं। हम यह सुनिश्चित करेंगे कि उनका प्रसव अच्छे अस्पताल में हो। आपके बारे में किसी को कोई जानकारी नहीं मिलेगी। बच्चे को जन्म दीजिए, कृपया जवाब के साथ वापस लौटे।" मुख्य न्यायाधीश ने कहा, "आप अपने मुवक्किल से पूछिए। भारत सरकार या दिल्ली सरकार या कोई अच्छा अस्पताल पूरी जिम्मेदारी उठाएगा, मैं भी मदद करने की पेशकश कर रहा हूं।"