Delhi News: नार्थ ईस्ट दिल्ली के खजूरी खास थाना इलाके में प्रतिबंधित संगठन PFI से जुड़े 2 लोगों पर दिल्ली पुलिस ने UAPA एक्ट के तहत केस दर्ज किया है। इन दोनों की पहचान इसरार अली और मोहम्मद समून के रूप में हुई है और उन पर 120B, 153A IPC और 10/13 UAPA के तहत कार्रवाई की गई है। इन दोनों को गिरफ्तार कर लिया गया है और PFI में इनकी भूमिका की जांच की जा रही है।
इससे पहले शाहीनबाग थाने में भी पिछले गुरुवार को पीएफआई और उससे जुड़े 7 संगठनों के खिलाफ UAPA के तहत एफआईआर दर्ज हुई थी और 4 लोगों को गिरफ्तार किया गया था।
शाहीन बाग इलाके में किया था हंगामा
गौरतलब है कि सरकार ने पीएफआई पर 28 सितंबर को पांच साल के लिए प्रतिबंध लगा दिया था। इसके बाद पीएफआई के समर्थकों व सदस्यों ने शाहीनबाग इलाके में हंगामा किया था। दिल्ली पुलिस ने इसे लेकर 30 लोगों को हिरासत में लिया था। दिल्ली पुलिस ने जामिया नगर, शाहीनबाग व न्यू फ्रेंड्स कॉलोनी इलाके में धारा 144 लगा दी थी। दक्षिण-पूर्व जिला पुलिस अधिकारियों के अनुसार इस मामले में पीएफआई के खिलाफ शाहीनबाग थाने में यूएपीए के तहत मामला दर्ज किया गया था। पीएफआई का हैड ऑफिस शाहीनबाग में था, इस मामले की जांच एसीपी बदरपुर जोगिंदर जून को सौंपी गई है।
गृह मंत्रालय ने 28 सितंबर को PFI को किया बैन
बता दें कि, गृह मंत्रालय ने 28 सितंबर को पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया (PFI) और उसके सहयोगियों को गैरकानूनी गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम, 1967 के तहत पांच साल के लिए बैन कर दिया था। यूपी, कर्नाटक और गुजरात की सरकारों के आग्रह और एनआईए, ईडी, पुलिस की राष्ट्रव्यापी कार्रवाई के तुरंत बाद बैन लगा दिया गया था।
पीएफआई की विचारधारा क्या है?
पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया यानी PFI 22 नवंबर 2006 को तीन मुस्लिम संगठनों के मिलने से बना था। इनमें केरल का नेशनल डेमोक्रेटिक फ्रंट (NDF), कर्नाटक फोरम फॉर डिग्निटी (Karnataka Forum for Dignity) और तमिलनाडु का मनिता नीति पसरई साथ आए। 16 फरवरी, 2007 को बेंगलुरु में तथाकथित 'एम्पॉवर इंडिया कॉन्फ्रेंस' के दौरान एक रैली में पीएफआई के गठन की औपचारिक रूप से घोषणा की गई थी।
पीएफआई ने कभी चुनाव नहीं लड़ा
2009 में सोशल डेमोक्रेटिक पार्टी ऑफ इंडिया (SDPI) पीएफआई से बाहर हो गई, जिसका उद्देश्य मुसलमानों, दलितों, पिछड़े वर्गों और आदिवासियों सहित सभी नागरिकों की उन्नति और समान विकास और सभी नागरिकों के बीच सत्ता को निष्पक्ष रूप से शेयर करना था। पीएफआई एसडीपीआई की राजनीतिक गतिविधियों के लिए जमीनी कार्यकर्ताओं का मुख्य प्रदाता है। जबकि पीएफआई ने कभी चुनाव नहीं लड़ा।