Delhi MCD Election: दिल्ली नगर निगम (एमसीडी) चुनाव में वोटिंग की रफ्तार बेहद सुस्त चल रही है। रविवार को अपराह्न ढाई बजे तक 30 प्रतिशत मतदान दर्ज किया गया। दोपहर 12 बजे तक 18 प्रतिशत मतदान हुआ था। इस चुनाव में मुख्य तौर पर भारतीय जनता पार्टी (भाजपा), आम आदमी पार्टी (आप) और कांग्रेस के बीच त्रिकोणीय मुकाबला है। मतदान सुबह आठ बजे शुरू हुआ था जो शाम साढ़े पांच बजे समाप्त होगा। राज्य निर्वाचन अधिकारी (एसईसी) के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा, ‘‘अपराह्न ढाई बजे तक दिल्ली के सभी 250 वार्ड में लगभग 30 फीसदी मतदान हो चुका था। सभी वार्ड में मतदान प्रक्रिया सुचारू रूप से चल रही है। अब तक किसी अप्रिय घटना की सूचना नहीं है। अब चार बजे तक 45 फीसदी वोटिंग हो चुकी है।
ज्यादातर पोलिंग बूथों पर सन्नाटा
दिल्ली के ज्यादातर पोलिंग बूथों पर सुबह से ही सन्नाटा बिखरा है। वोटिंग में जो उत्साह दिखना चाहिए था वह नहीं दिख रहा है। हलांकि दिल्ली नगर निगम (एमसीडी) चुनाव में 1.45 करोड़ से अधिक मतदाता अपने मताधिकार का उपयोग करने के पात्र हैं। कुल 1,349 उम्मीदवार चुनाव मैदान में हैं। राज्य निर्वाचन आयोग के अधिकारियों द्वारा साझा किए गए आंकड़ों के अनुसार, दिल्ली में मतदाताओं की कुल संख्या 1,45,05,358 हैं जिनमें 78,93,418 पुरुष, 66,10,879 महिलाएं और 1,061 ट्रांसजेंडर व्यक्ति हैं। मतों की गिनती सात दिसंबर को होगी। अधिकारियों ने मतदान के लिए दिल्ली में 13,638 मतदान केंद्र स्थापित किए हैं। फरवरी 2020 के दंगों के बाद राष्ट्रीय राजधानी में होने वाला यह पहला निगम चुनाव भी है और अधिकारियों द्वारा साझा किए गए आंकड़ों के अनुसार 493 स्थानों पर 3,360 बूथ संवेदनशील के रूप में चिह्नित किए गए हैं। निर्वाचन अधिकारियों ने कहा कि मतदाताओं के गुणवत्तापूर्ण अनुभव के लिए दिल्ली में सभी विधानसभा क्षेत्रों को कवर करने वाले 68 मॉडल मतदान केंद्र और इतने ही ‘पिंक’ मतदान केंद्र स्थापित किए गए हैं। आधिकारिक आंकड़ों के अनुसार, 100 और उससे अधिक आयु के 229 मतदाता हैं और 80 से अधिक लेकिन 100 वर्ष से कम आयु के 2,04,301 मतदाता हैं।
वोटिंग कम होने से किसे फायदा और किसे नुकसान
चुनाव विश्लेक देवेन्द शुक्ला के अनुसार ढाई बजे तक सिर्फ 30 फीसद मतदान होना काफी चिंताजनक है। उन्होंने कहा कि अब आखिरी दो घंटे में मतदान फीसद बढ़ा है। 4.00 बजे तक 45 फीसदी मतदान हो चुका है। फिर भी यह उम्मीद से कम है। उनका कहना है कि आमतौर पर कम मतदान से सत्तारूढ़ दल को फायदे की उम्मीद रहती है। जबकि अधिक मतदान होने पर सत्तारूढ़ दल को नुकसान होने की आशंका रहती है।